सोमवार, 29 अप्रैल 2019

सुर-२०१९-११९ : #सिर्फ_कला_नहीं #नृत्य_में_खूबियां_कई



कहने को तो 'नृत्य' एक कला, एक साधना और मन के भावों की अभिव्यक्ति की एक विधा होती है लेकिन, यदि इसको गहराई से समझे और जाने तो पता चलता कि ये उससे भी बढ़कर बहुत कुछ है जिसमें अनगिनत खूबियां छिपी हुई है यदि कोई व्यक्ति इसमें निपुण हो जाये तो वो एक साथ अनेक क्रियाओं को संपादित कर सकता है और साथ ही अपने मनो-मस्तिष्क को भी सयंत रखते हुये एक शांत जीवन व्यतीत कर सकता है क्योंकि, ये महज़ कला का एक प्रकार नहीं बल्कि, सम्पूर्ण तन-मन को सयंमित करने की एक वैज्ञानिक विधि भी है

जिसे यदि अपनी ज़िंदगी में शामिल कर लिया जाये तो इसके नियमति अभ्यास से ईश्वर की आराधना के साथ-साथ ध्यान, व्यायाम, टाइम व स्ट्रेस मैनेजमेंट जैसे टास्क भी अपने आप हो जाते और फिर दूसरी किसी एक्सरसाइज या कसरत की आवश्यकता नहीं रहती है इसमें समस्त शारीरिक व मानसिक क्रियाएं समाहित जो साधक को बाहरी, आंतरिक, भौतिक व आध्यात्मिक सभी स्तरों पर इस तरह कुंदन की भांति तपा देती है इसके माध्यम से वो एक साथ कई सारे कामों को करते हुए तनाव रहित भी रह सकता जरूरत केवल इसे अपने आप में एक संपूर्ण कला के रूप में अपनाने की है

जिसके बाद व्यक्ति में ऊर्जा व अदृश्य शक्तियों का जागरण होता जो उसे अपनी सीमाओं से परे जाकर असीमित व असाधारण करने की अतिरिक्त शक्ति देता है इसलिये तो इसे करने से पूर्व ईश्वर का आशीष भी प्राप्त किया जाता और अपनी इस कला का प्रदर्शन उसकी सूक्ष्म उपस्थिति को महसूस करते हुये उसे ही समर्पित किया जाता है जिससे कि यह ईश्वरीय प्रसाद सम बन जाता और देखने वालों को भी इससे उसी दैवीय अनुकम्पा की अनुभूति होती अहसासों की जिन परतों से गुजरकर वो अंतस के गहन भावों को अपने हाव-भाव के जरिये प्रदर्शित करता है

शायद, तभी तो समस्त प्रकृति उसकी हर शय किसी अनंत शक्ति के समक्ष नृत्यरत दिखाई देती है यही नहीं हमारे ईश्वर भी आनंदित हो या क्रोध में अपने भीतर की उस अवस्था को नाचकर ही दर्शाते हैं ‘नटराज’ यदि हमारे यहाँ नृत्य के देवता कहलाते तो ‘वीणापाणि शारदा’ सभी कलाओं की देवी मानी जाती जिनको नमन कर के ही इसका शुभारंभ किया जाता है आज ‘विश्व नृत्य दिवस’ पर यदि हम अपने शास्त्रीय नृत्यों को सहेजने का संकल्प ले और उसे प्रचारित-प्रसारित करने का बीड़ा उठाये तो इनसे दूर हो रही नई पीढ़ी जो पाश्चात्य डांस फॉर्मेट में डूबकर अपनी धरोहर से दूर हो रहे वे भी इसके प्रति जागरूक होकर इसके सच्चे प्रचारक बन सकेंगे और देश-विदेश में इसका नाम रौशन कर गुरुऋण से मुक्त हो सकेंगे

आखिर, गुरुदक्षिणा मात्र ही तो अपने गुरुदेव से प्राप्त अमूल्य शिक्षा का मूल्य चुकाना नहीं होता उसे आगे बढ़ाना भी तो एक शिष्य का फर्ज बनता है ।

#World_Dance_Daye_29_April

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
अप्रैल २९, २०१९

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