सोमवार, 1 जून 2015

सुर-१५२ : "नर्गिस थी वो अदाकारा... जैसा फिर कोई नहीं आया...!!!"

बनकर
‘मदर इंडिया’
वो हो गयी अमर
किया जीवंत
रजत पर्दे पर
अभिनय का शाहकार
जो फिर बन गया इतिहास
आज तक करते सब याद
‘नर्गिस’ ने बनाया वो मुकाम 
भूला न कोई उनका नाम
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मित्रों...,

हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन मे दीदावर पैदा

कितनी सत्य लगती ये पंक्तियाँ जब जिक्र होता किसी ऐसी हस्ती का जिसने कि दुनिया में अपने काम से न सिर्फ़ अपना नाम बनाया बल्कि जिसके जाने के बाद भी सबके जेहन से उसका ख्याल मिट न पाया तभी तो उसकी याद आते ही सबने फिर उसका ही गुण गाया आज भी एक ऐसी ही शख्सियत का जन्मदिन आया तो ‘गूगल’ ने भी ‘डूडल’ बनाकर उसे मनाया कि सारे विश्व में जिसने अपने अभिनय का परचम फ़हराया जी हाँ हम बात कर रहे हैं... ‘मदर इंडिया’ के नाम से सारी दुनिया में जानी जाने वाली अदाकारा ‘नर्गिस’ की जो एक ऐसी ही महानतम अभिनेत्री थी जिसने फ़िल्मी दुनिया के चमन में ‘नर्गिस’ के फूल की तरह ही खिलकर सारे चमन को अपनी बेमिसाल खुबसूरती और अभिनय से अपना मुरीद बना लिया और फ़िल्मी इतिहास में अपना नाम अमिट स्याही से दर्जा करवा लिया था जिसकी वजह से आज भी जब पुराने ज़माने या हिंदी सिनेमा के आगाज़ की बात होती तो चंद नाम स्वतः ही उभरकर आते हैं जिन्होंने इसे अपने अनवरत अथक परिश्रम से इस तरह से अंजाम दिया कि वो छोटा-सा घरेलू कारोबार आज वैश्विक स्तर का व्यवसाय बन गया हैं और अब तो विदेशी कंपनियां भी हमारे यहाँ आकर फ़िल्में बनाने में सहयोग दे रही हैं अपना पैसा लगा रही हैं जबकि कभी लोग इसे सम्मान की नज़र से नहीं देखते थे अतः इसे इस स्थिति तक लाने का श्रेय भी उन कलाकारों को ही जाता हैं जिन्होंने इसे ये मुकाम दिलाने अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया तो फिर हम किस तरह से उन्हें विस्मृत कर सकते हैं इसलिये जब-जब उनका स्मृति दिवस आता मन उनकी यादों में खो जाता

हमने अपने बचपन में ‘जोगन’ नाम से ‘दूरदर्शन’ पर एक फिल्म देखी थी जिसमें इस शीर्षक को ‘नर्गिस’ ने इस तरह से साकार किया कि आज भी आँखों में उसका वो जोगनिया स्वरुप बसा हुआ हैं जो अपने मूक प्यार को दिल में ही दबाये खामोश चली जाती हैं और नायक ‘दिलीप कुमार’ नम आँखों में इंतजार और बेबसी लिये खड़े रह जाते हैं ये दृश्य और वो दोनों फिल्म खत्म होने के बाद भी नजरों के सामने खड़े रह जाते हैं उसके बाद तो ‘नर्गिस’ की कई फ़िल्में देखी जिनमें ज्यादातर उनके रुपहले पर्दे के मुकम्मल जोड़ीदार ‘राज कपूर’ के साथ थी जिन्होंने अपने लाजवाब आपसी तालमेल और प्रेमिल अभिव्यक्ति से हर एक कहानी को हक़ीकत में ढाल दिया और ये फ़िल्मी जोड़ी भी इस तरह अमर हो गयी कि आज भी एक का नाम दूजे के बिना अधूरा लगता हैं क्योंकि हमें उसे साथ सुनने और देखने की आदत हो चुकी हैं जब भी बारिश होती तो दोनों छाता लगाये ‘प्यार हुआ इकरार हुआ...” गाते दिखाई देते हैं तो कभी ‘नर्गिस’ अपने प्रियतम की ‘आवारा’ कहकर भागती नजर आती हैं तो कभी दौडकर वो राज कपूर की बाहों में यूँ गिर जाती हैं कि ‘राज कपूर’ के फ़िल्मी प्रोडक्शन का  का बैनर बन जाती हैं और कभी “राजा की आयेगी बारात...” गाकर अपने प्रेमी का मनोबल बढ़ाती हैं तो कभी ‘विद्या’ बनकर ‘श्री चार सौ बीस’ बनकर भटके अपने प्रिय को सही राह पर लाती हैं... तो कभी ‘चोरी-चोरी’ की उनकी नोंक-झोंक दिल धड़का देती हैं तो कभी ‘राज-दिलीप’ के बीच तीसरा कोण बनकर फ़िल्मी दुनिया का पहला-पहला प्रेम-त्रिकोण बना देती हैं याने कि सिर्फ़ एक कलाकार के साथ ही इतने विविध रंग बिखेर अभिनय का ‘इंद्रधनुष’ बना देती हैं कि हर कोई न सिर्फ़ देखता रहा जाता हैं बल्कि उसमें ही खो जाता हैं वो प्रेरणा बनकर दिमाग पर इस कदर छा जाती हैं कि निर्माता-निर्देशक उसे लेकर तरह-तरह के किरदार रचता कि उसकी प्रतिभा को सबके सामने ला पाये और एक ही फिल्म में उसे इतना कुछ करने का अवसर मिलता कि वो भी सहजता से उसे यूँ निभाती कि फिर वो कोई कल्पना नहीं बल्कि जीवंत पात्र बन जाती

ये उनकी अदाकारी का ही आलम था कि सिर्फ़ आम जनता ही नहीं बल्कि उस दौर के बड़े-बड़े नेता-मंत्री तक उनके दीवाने थे यहाँ तक कि रुसी अदाकार ने भी उनके साथ काम करने के लिये ‘परदेसी’ नाम की फिल्म का निर्माण किया तो हर ख़िताब ने उसे पाकर खुद को गर्वित महसूस किया... १ जून ९२९ को कलकत्ता में जन्म लेने वाली ‘फ़ातिमा रशीद’ उर्फ़ ‘नर्गिस’ ने १९४३ में महबूब खान की फिल्म ‘तकदीर’ से अपना फ़िल्मी सफ़र शुरू करने वाली ‘नर्गिस’ ने १९५७ में उनकी ही फिल्म ‘मदर इंडिया’ से अपनी वैश्विक छवि निर्मित की जिसने सबको अपनी गिरफ्त में ले लिया... और फिर ये ही उसका पर्याय बन गया... तो आज उसी ‘मदर इंडिया’ को जन्मदिन की शुभकामनायें... :) :) :) !!
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०१ जून २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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