रविवार, 14 जून 2015

सुर - १६५ : "विश्व रक्तदान दिवस... ले सभी 'रक्तदान' का संकल्प...!!!"

‘लहू’
वो नहीं जो
बस, रगों में
दौड़ता ही रह जाये  
बल्कि...
जब वक़्त पड़े तो
सिर्फ़ अपने ही नहीं
दूसरों के भी काम आये
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मित्रों...,

आज हम सब ही रक्त के विभिन्न समूहों से न सिर्फ परिचित हैं बल्कि उसके बारे में पूरी जानकारी भी रखते हैं जिसका श्रेय जाता हैं १४ जून १८६८ में जन्मे ऑस्ट्रियाई जीवविज्ञानी ‘कार्ल लेण्डस्टाइनर’ को जिन्होंने रगों में बहने वाले लहू में उपस्थित उस विशेष तत्व ‘अग्गुल्युटिनिन’ की पहचान की जिसके कारण हर एक व्यक्ति का खून भले ही एक जैसा दिखाई दे लेकिन उसकी आंतरिक संरचना भिन्न होती हैं जिसकी वजह से किसी भी व्यक्ति का रक्त किसी भी अन्य व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता क्योंकि सबका ‘ब्लड ग्रुप’ अलग-अलग होता हैं अतः उन्होंने चिकित्सा जगत को एक अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी से अवगत कराते हुये रक्त को ए, बी, ओ में विभक्त कर अपना महान योगदान दिया और उनकी इस बहुउपयोगी खोज के कारण १९३० में उनको ‘शरीर विज्ञान’ में ‘नोबेल पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया और आज के दिन उनके जन्मदिवस को ही यादगार बनाने के लिये ‘विश्व रक्तदान दिवस’ के रूप में मनाया जाता हैं । संपूर्ण जगत में ऐसे अनगिनत लोग हैं जिनको जीवित रहने के लिये रक्त की आवश्यकता होती हैं जिसकी वजह कुछ भी हो सकती हैं... कभी उनकी कोई बीमारी तो कभी कमजोर आर्थिक स्थिति या कभी कोई दुर्घटना अतः ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ ने ऐसे लोगों की ज़िंदगी को बचाने के लिये ही १९९७ से १४ जून को ‘विश्व रक्तदान दिवस’ घोषित किया और इसके प्रति लोगों में बनी भ्रामक या मिथ्या धारणाओं को तोड़कर उनमें जागरूकता पैदा करने के लिये कार्यक्रम एवं सेमिनार आयोजित करना शुरू किये जिससे कि कोई भी रक्त के अभाव में अपने अनमोल जीवन को गंवा न दे ।

हम सभी ये बात जानते हैं कि शरीर को गतिमान बनाये रखने में रक्त की कितनी अहम् भूमिका होती हैं क्योंकि उससे ही तो देह के समस्त अंग सुचारू रूप से अपना कार्य करते रहते हैं और हम इसे दान कर किसी का जीवन बचाने का पावन काज भी कर सकते हैं लेकिन इसके बावजूद भी लोगों में इसके प्रति कई तरह की भ्रांतियां फैली हुई हैं हमारे यहाँ कि ‘रक्तदान’ से उनका शरीर कमज़ोर हो सकता है और साथ ही ये भी कि शरीर में से  दिये गये रक्त को बनने में अधिक समय लगता हैं जिसकी वजह से हमारे यहाँ लोग इससे कतराते हैं या इसके बारे में सुनकर दान करने से हिचकते हैं । जबकि हकीकत यही है कि मानव देह में रक्त के निर्माण का कार्य सदैव चलता रहता हैं जिसके कारण ‘रक्तदान’ करने से किसी को भी कोई हानि नहीं पहुँचती बल्कि लाभ ही होता हैं क्योंकि चिकित्सकों का ये कहना हैं कि जो व्यक्ति नियमित ‘रक्तदान’ करते हैं उनको हृदय सम्बन्धी बीमारियां कम ही होती हैं । फिर भी यदि किसी के मन में संशय हो तो वो जान ले कि ‘रक्तदान’ के विषय में ‘चिकित्सा विज्ञान’ कहता है कि--- “कोई भी स्वस्थ्य व्यक्ति जिसकी उम्र १६ से ६० साल के मध्य हो तथा जिसका शारीरिक वजन ४५ किलो से अधिक न हो और साथ ही साथ जिसे ‘एच.आई.वी.’, ‘हेपाटिटिस बी’ या ‘सी’ जैसी खतरनाक बीमारी न हुई हो वो ‘रक्तदान’ कर सकता है तथा एक बार में जो ३५० ‘मिलीग्राम’ रक्त दिया जाता है उसकी पूर्ति शरीर में मात्र चौबीस घण्टे के भीतर ही हो जाती है” ।

इसके अलावा चिकित्सा विज्ञान ये भी कहता हैं कि ‘मानव रक्त की संरचना ऐसी होती है कि उसमें उपस्थित ‘रेड ब्लड सेल’ तीन माह में अपने आप ही मर जाते हैं, लिहाज़ा प्रत्येक स्वस्थ्य व्यक्ति तीन माह में एक बार रक्तदान कर सकता है’ और सभी जानकारों के कथन हैं कि ‘आधा लीटर रक्त तीन लोगों की जान बचा सकता है’ तो फिर हम सभी को जो भी सक्षम हैं आगे बढ़कर इस पुनीत यज्ञ में अपने लहू की आहुति देना ही चाहिये ताकि इसके माध्यम से हम किसी का जीवन बचाने का पुण्य कार्य कर सके... :) :) :) !!!
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१४ जून २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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