गुरुवार, 4 जून 2015

सुर-१५५ : "जाने क्या ढूंढता हैं ये मेरा दिल... ???"

जिंदगी...
चाहती कुछ
अलहदा
तब एक बैचेनी
परेशां करती हमेशा
बुलाती हैं अपने पास
कोई सदा
देती हैं क़िस्मत  
किसी को कम
तो किसी को ज्यादा
फिर भी सुकूं मिलता उसे
सीख ली जिसने भी
जीने की अदा
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मित्रों...,

जीवन में सबको उस बेकली से नहीं गुज़रना पड़ता जिससे चंद लोग बेतरह परेशान होते और उसकी वजह से उन्हें कभी भी, कहीं भी, किसी भी पल चैन नहीं मिलता अक्सर तो उन्हें ये भी इल्म नहीं होता कि वास्तव में उनको चाहिये क्या ??? पर... कुछ होता भीतर जो उसे किसी भी करवट आराम से सोने नहीं देता तभी तो अमूमन लोग इस तरह के व्यक्तियों से मिलकर उन्हें पागल या सनकी करार दे देते क्योंकि उन्हें लगता कि ये सामान्य नहीं हैं... ये उनकी तरह नहीं हैं जब सब लोग मजे करते या छोटी-छोटी खुशियों में बहल जाते ये बड़ी-से-बड़ी सौगात पाकर भी निर्विकार रहते हैं... ऐसे में उनका ये ख्याल लाज़िमी हैं कि सामने वाला विचित्र प्राणी हैं जो इस दुनिया का नहीं बल्कि किसी और ही ग्रह से आया हैं जबकि हक़ीकत ये होती कि वो भी उनकी ही तरह एक साधारण मानव ही होता पर उसकी आत्मा को जिस अदृश्य शक्ति की तलाश होती उसे वो सबको समझा पाने में कठिनाई महसूस करता और बस... इसलिये सब उसे समझ नहीं पाते हैं

‘पृथ्वी’ पर विचरने वाले समस्त प्राणी इसी ग्रह के रहने वाले हैं तो किसी को दूसरे ग्रह का प्राणी कहकर उसकी अलौकिक तमन्ना को यूँ खारिज़ कर देना उचित नहीं बल्कि उसे तो समझने की जरूरत हैं पर, सब में इतना धैर्य कहाँ कि वो अगले को उतना वक़्त दे पाये या उसकी कैफियत का अंदाज़ा ही लगा पाये सबको अपनी ही फ़िक्र हैं... सब अपने आप में अपने काम में गुम हैं और वो यहाँ होकर भी किसी दूसरी दुनिया की तलाश में खोया हुआ हैं उसे तो खुद की ही खबर नहीं हैं पर, जिसने भी इस बैचेनी का श्राप या वरदान जो भी कहे पाया हैं वास्तव में उसने ही कुछ अनोखा कर दिखाया हैं क्योंकि ये भी सही हैं कि वो सच में किसी और ही जगत का बाशिंदा हैं... और, जिस दिन अपनी भटकन का सबब जान लेता हैं तो उस दिन वहां अपना मकाम भी बना ही लेता हैं... ये हर किसी को नहीं हासिल होता हैं वो तो खुदा जिस पर मेहरबान होता हैं केवल वही उसे पा लेता हैं... ये तो उस नेमत का चमत्कार होता हैं... जो उसके अंदर बेकली बढ़ाती हैं... उसे जीना सिखाती हैं... :) :) :) !!!
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०४ जून २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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