बुधवार, 3 जून 2015

सुर-१५४ : "लघुकथा : प्यार का सबक" !!!

___//\\___ 

मित्रों...,


‘आशी’ यही समझती थी कि ‘सिद्धार्थ’ कभी अपने वादे से मुकरेगा नहीं और हमेशा यूँ ही हर कदम उसके साथ-साथ चलेगा इसलिये तो अपने घरवालों से छूपकर उसने न सिर्फ़ उससे प्यार किया बल्कि उसके कहे अनुसार हर वो काम किया जिससे कि उनका रिश्ता और अधिक मजबूत हो सके क्योंकि जीवन भर प्यार को ही तो तरसी थी तो उसे खोने का तसव्वुर भी नहीं कर सकती थी अतः उसकी हर बात को आँख मूंदकर मानती रही लेकिन उसे पता ही नहीं चला कब उसने उसकी मौजूदगी में ही अपना दूसरा ठिकाना ढूंढ लिया आज भी वो अंजान ही रहती गर, ‘राबिया’ ने भरी महफ़िल में उसे अपने पति से न मिलाया होता

उसे लगा सारी दुनिया घूम रही हैं और फिर अचानक वो उस जगह पहुँच गयी जहाँ उन दोनों ने एक साथ मिलकर अपने प्यार का पहला कदम रखा था पर, अब वो जमीन उसे लिये नीचे धंस रही हैं उसका वजूद धीरे-धीरे मिटटी हो रहा हैं... वो उसी पल कब्र में बदलती कि तभी उसे याद आया कि वो जिंदा हैं और बस, दुनिया थम गयी... वो बड़े आत्मविश्वास से ‘सिद्धार्थ’ के पांव के नीचे से जमीन खींचकर एक सबक लिये अपनी पुरानी दुनिया में लौट गयी जहाँ अब कोई भी दूसरा उसे प्यार के नाम पर ठग नहीं सकता था        
______________________________________________________
०३ जून २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
--------------●------------●

कोई टिप्पणी नहीं: