शनिवार, 13 जून 2015

सुर-१६४ : "बेशक जाये शहर... पर, लौटकर जरुर आये घर...!!!"

जाकर
गाँव से शहर
लग गये
जिनको पर
फिर वो लौटकर
वापस न आये घर
राह तकते ही रह गये दर
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मित्रों...,

कजरीको कभी दरवाजे... तो कभी दरख्त के नीचे खड़े होकर पथ निहारते देख उसकी सास ने आवाज़ लगाई... अरे ओ बहुरिया भीतर आ जा दामोदारन आने वाला... लगता हैं अब तो उसने अपने बूढ़े माँ-बाप के साथसाथ अपनी नई-नवेली दुल्हन को भी बिसरा दिया... पर, ‘कजरीका मन ही नहीं मानता था और वो रोज रास्ते पर आकर खड़ी हो जाती... धीरे-धीरे उस पेड़ के पत्तों की तरह समय भी झरता चला गया लेकिन उसका इंतजार न खत्म हुआ और इस बीच उसके सास-ससुर ने भी उम्मीद का दामन छूटते ही उसका साथ छोड़ दिया पर, वो अकेली ही उसकी बाट जोहती रही ।

भले ही कजरीकोई काल्पनिक पात्र हो लेकिन आज भी ऐसी कई स्त्रियाँ और परिवार हैं जिनके घर का कोई सदस्य कभी पढ़ने, तो कभी कमाने परदेश को जाता लेकिन फिर वापस न आता और उसके रिश्तेदार उसका रास्ता ही तकते रह जाते । अक्सर लोग महानगर जाकर उसकी चकाचौंध में भटक अपने यहाँ आने का उद्देश्य भूल जाते जिसकी वजह से वे अपने साथ-साथ अपने परिजनों को भी धोखा देते कई बार तो वे गलत मार्ग पर भी चले जाते और यदि ऐसा न भी हो तो काम्याब होकर भी वो वापस न जाना चाहते क्योंकि उन्हें उस छोटी जगह में अपना भविष्य नज़र नहीं आता ।

आज के समय में जबकि तकनीकी रूप से हर जगह संपर्क में बने रहना आसान हो गया हैं परदेसियों का ये कदम गलत लगता और ये भी ख्याल आता कि यदि सब इसी तरह सोचने लगे तो फिर अपना वो देश गाँवजिसकी पहचान ही नहीं उसकी आधारशिला भी हैं एक दिन अपना वो अक्स ही भूल जायेगा ।

अतः हम आधुनिक बने... आगे भी बढ़े... पर जमीन से जुड़े रहें... अधर में लटके त्रिशंकु न बन जाये... अपनी सभ्यता-संस्कृति से विलग न हो जाये... किसी का अंतहीन इंतज़ार बनने की जगह उसका सुनहरा भविष्य बन उसका और अपना जीवन संवार अपनी भूमि को ख़ुशहाल बनाये... तब ही परदेस जाना... नया सीख पुराने को न भूलना... अपनी जड़ों की और लौटना सार्थक होगा... यही तो हमारी रवायत भी हैं... हैं न... :) :) :) !!!      
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१३ जून २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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1 टिप्पणी:

Hayat Singh ने कहा…

अतः हम आधुनिक बने... आगे भी बढ़े... पर जमीन से जुड़े रहें... अधर में लटके त्रिशंकु न बन जाये... अपनी सभ्यता-संस्कृति से विलग न हो जाये... किसी का अंतहीन इंतज़ार बनने की जगह उसका सुनहरा भविष्य बन उसका और अपना जीवन संवार अपनी भूमि को ख़ुशहाल बनाये... तब ही परदेस जाना... नया सीख पुराने को न भूलना... अपनी जड़ों की और लौटना सार्थक होगा... यही तो हमारी रवायत भी हैं..