बुधवार, 17 जून 2015

सुर-१६८ : "पुरुषोत्तम मास... करता पापों का नाश...!!!"

बड़े भाग
नर तन पाया
जिससे परोपकार
और पुण्य करने का
शुभ अवसर हाथ आया
ये भी हो जाते
अनंत गुना फलदायी
जब आता परम पावन
कल्याणकारी पुरुषोत्तम मास
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मित्रों...,

शायद... आप जानते होंगे कि इस साल १६ जून २०१५ से १७ जुलाई २०१५ तक अधिमासया पुरुषोत्तम मासया खरमासहैं जो कि बड़ा ही पुण्यदायी होता हैं पर, ये किस तरह से निर्धारित होता हैं या कब-कब आता हैं और इसमें हमें किस तरह की दिनचर्या का पालन करना चाहिये आज उसी पर लिखने का प्रयास किया हैं ।

सनातन हिंदू धर्म की मान्यता और पंचांग के अनुसार काल के मापन करने के लिये सूर्यऔर चंद्रकी गति का आकलन किया जाता हैं तथा 'चन्द्रमा' के भ्रमण को जांचने से 'माह' की गणना का निर्धारण होता हैं जब उसके भ्रमण के कारण अमावस्याया पूर्णिमाआती हैं तो एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या तक अथवा एक पूर्णमासी से दूसरी पूर्णमासी तक की अवधि ही एक महीनाकहलाती है और चंद्रमाका ये महीना लगभग 29.53दिनों का होता है और चन्द्र माससे बने एक चन्द्रवर्षमें लगभग 354.36दिन होते हैं । यह अंतर 32.5माह के बाद यह एक चंद्र माहके बराबर हो जाता है जिसे समायोजित करने के लिए हर तीसरे वर्ष में एक अधिक मास का प्रावधान रखा गया हैं । ये भी मान्यता हैं कि एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या के बीच कम से कम एक बार सूर्य की संक्रांति होती है जो कि कुदरत का नियम है और जिस माह में सूर्य संक्रांतिनहीं होती वह अधिक मासहोता है तथा इसी प्रकार जिस माह में दो सूर्य संक्रांति होती है वह क्षय मासकहलाता है जो कि कभी-कभी ही होता है साथ ही ऐसा भी माना जाता हैं कि संक्रांति वाला माह शुद्धमाह जबकि बिना संक्रांति वाला माह मल मासमाना जाता वैसे तो इन दोनों ही मासों में मांगलिक कार्यवर्जित माने जाते हैं परंतु, धर्म-कर्म के कार्य पुण्य फलदायी होते हैं।

इसी प्रकार हमारे यहाँ सालकी गणना सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के भ्रमण के अनुसार की जाती है चूँकि यह एक सर्वमान्य खगोलशास्त्रीय तथ्य है कि सूर्य 30.44दिन में एक राशि को पार कर लेता है और यह अवधि सूर्य का एक सौर महीनाकहलाती है और जैसा कि हम जानते हैं कि राशियाँ बारह होती हैं तो ऐसे बारह महीनों को मिलाकर बना समय जो कि लगभग 365.25दिन होता हैं एक सौर वर्षकहलाता है । इस तरह हम देख रहे हैं कि चंद्रऔर सौरवर्ष के पंचांग में लगभग 10.87दिन का अंतर आ जाता है जो कि धीरे-धीरे बढ़ते-बढ़ते तीन साल के अंतराल में पूरे एक महीने का हो जाता है और इस तरह हिंदू धर्म में हर तीसरे साल बारह के स्थान पर तेरह महीने हो जाते हैं और इस बढ़े हुए माह की वजह से गणना में त्रुटि न हो अतः भारतीय आचार्यों ने खगोलीय वैज्ञानिक विधि से चन्द्रएवं सौरमापदंडो में तालमेल स्थापित करने के लिये बढ़े हुये 'अधिमास' को जोड़ने की विधि का विकास किया जिससे कि उसके द्वारा पड़ने वाली तिथियों से निर्धारित होने वाले हमारे व्रत, उत्सव आदि का सम्बंध चन्द्र तिथियों से ही बना रहे जिसका प्रचलन वैदिक काल से ही है।

इस तरह ये तो हम समझ गये कि यह अधिक मासवास्तव में सौरऔर चंद्रमास को एक समान लाने की एक गणितीय प्रक्रिया है परंतु केवल इसे इतना ही मान लेना इसकी महत्ता की कमतर आंकना हैं क्योंकि इस 'अधिक मास' का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व माना गया है तथा इसे 'अधिमास', 'मलमास', 'संसर्प', 'अंहस्पति', 'पुरुषोत्तममास' आदि कई नामों से जाना जाता हैं चूँकि यह एक अतिरिक्त महीना है तो इसे अधिमासया अधिक मासकहा जाता हैं और इस अवधि में सूर्यऔर गुरुदोनों ग्रहों का मिलान होने के कारण ही इसे मलमासकी संज्ञा दी गयी है और किसी भी विवाह संस्कार के लिए सूर्यऔर गुरु’ (वृहस्पति) दोनों ही ग्रह का होना बहुत जरुरी होता है इसीलिए मल मासमें विवाह कार्य नहीं होते है । कहते हैं कि जो भी धार्मिक या काम्य कर्म अधिकमास से पहले ही आरंभ किए जा चुके हैं उन्हें इस माह में किया जा सकता है और यदि घर में कोई व्यक्ति अत्यधिक बीमार है तो उसकी रोग की निवृति के लिये भी जप या अनुष्ठान किया जा सकता है इसके साथ ही ऐसे संस्कार भी किए जा सकते हैं जो एक नियत अवधि में समाप्त हो रहे हों और इस पुण्य काल में 'भागवत' कथाके सुनने का भी विशेष महत्व है । देवी भागवत पुराणके अनुसार 'मलमास' में किए गये सभी शुभ कर्मो का अनंत गुना फल प्राप्त होता हैं अतः साधक लोग इस अवधि में दिवंगतों की शांति और कल्याण के लिए पूरे माह जल सेवाका संकल्प ले सकते है और ख़रबूज़ा, आम, तरबूज़ सहित अन्य मौसमी फलों के अलावा मिट्टी के कलश में जल भर कर दान करने से भी पुण्य मिलता हैं । हमारे यहाँ तो पुरानी मान्यता को मानने वाले बहुत से लोग इस पुरे महीने में ही कड़े व्रत-नियम का पालन करते हैं और इस पूरी अवधि में वे जमीन पर ही सोते और केवल एक समय सादा भोजन ही करते क्योंकि माना जाता हैं कि इस मास में पराया अन्न और तामसिक भोजन का त्याग करना चाहिये और व्रत रखते हुए भगवान पुरुषोत्तमअर्थात विष्णुका श्रद्धापूर्वक पूजन करते हुये मंत्र जाप करना चाहिये साथ-साथ ही प्रतिदिन एक नियत समय पर मलमास माहात्म्यकी कथा का श्रद्धापूर्वक पाठ करना चाहिये और जब अधिकमास समाप्त हो तो व्रती को स्नान, श्रद्धानुसार दान कर व्रत का उद्यापन करके ब्राह्मणों को भोजन करा अनुष्ठान पूर्ण करना चाहिये ।

इस अधिक मास का नाम पुरुषोत्तम मासपड़ने की भी एक बेहद रोचक कथा हैं कहते हैं कि जब अतिरिक्त दिनों के योग से अधिक मास ने जनम लिया तो उसका कोई भी स्वामी नहीं था जिसके कारण उसे निंदनीय माना गया अतः वह बड़ी उम्मीद लेकर सृष्टि पालक भगवान विष्णुजीके वैकुंठ धामगया और अपनी व्यथा सुनाई जिसे सुनकर भगवान श्रीकृष्णने उसे अपनी शरण में लेते हुए कहा---हे मलमास मेरे अंदर जितने भी सद्गुण हैं वह मैं तुम्हें प्रदान कर रहा हूं और साथ ही मेरा विख्यात नाम 'पुरुषोत्तम' भी मैं तुम्हें दे रहा हूं और आज से मैं ही तुम्हारा स्वामी हूँअतः अब से इसे पुरुषोत्तम मासके नाम से जाना जाये । महान संतों का कहना है कि पुरुषोत्तम मासमें की गई साधना हमें ईश्वर के बहुत नजदीक ले आती हैं और भगवान श्री हरि की कृपा से श्री हरि धाम की प्राप्ति भी होती हैं... इसलिये सभी लोग इस पुण्यदायी महीने का लाभ उठाये और जितना हो सके पुण्य कमाये.. तो बोले... श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे... हे नाथ नारायण वासुदेव... :) :) :) !!!
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१७ जून २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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