सोमवार, 15 जून 2015

सुर-१६६ : "लघुकथा : एसिड अटैक...!!!"


जब से ‘देवयानी’ की शादी तय हुई थी वो बेहद खुश थी और पूरे जोश-खरोश से उसकी तैयारी में जुटी हुई थी उसके माता-पिता ने भी तो बड़े अच्छे घर में उसका रिश्ता किया था तो वो तो एकदम निश्चिंत होकर अपनी सहेलियों के साथ शोपिंग में जुटी थी देखते-देखते वो दिन भी गुजर गये और वो शुभ दिन आ गया जिसका सबको इंतजार था अपने दिल में अरमान दबाये और आँखों में हजारों सपने सजाये वो अपने पिया के घर आ गयी लेकिन सारी रात दरवाजे पर निगाहें गड़ाये ही कट गयी और सुबह ‘राजन’ जल्दी में आये और फ्रेश होकर फिर जाने लगे तो उसने हिम्मत कर इतना ही पूछ लिया---‘जी, कुछ हो गया हैं क्या आप रात में भी आये नहीं ?’ बस, इतना पूछना था कि राजन एकदम से बौखला उस पर बरस पड़ा---‘तुमसे शादी हो गयी अब और कुछ होने को बाकी नहीं रहा... सिर्फ़ आज की नहीं मेरी तो हर रात अब बाहर ही गुज़रेगी... तुम मेरी नहीं मेरे माता-पिता की पसंद हो तो अब रहो उनके ही साथ,,, मैंने उनकी आज्ञा का पालन कर दिया और अब मैं अपनी मन की करूंगा इसलिये मैं जिसे चाहता था उसके ही पास जा रहा हूँ’    

‘देवयानी’ को लगा जैसे उसका सारा वजूद उसकी तेजाबी बातों के छींटों से जल रहा हैं... इतना बड़ा धोखा ये बात यदि उसने पहले ही बता दी होती तो कोई और रास्ता निकाला जा सकता था लेकिन अब तो यदि वो वापस आ भी जाये तो जो तकलीफ़ उसने दी हैं उसके निशाँ तो मिटने से रहे... उसे समाज की इस रवायत और परिवारों के झूठे उसूलों के बीच  अपनी जिंदगी पिसती नज़र आ रही थी   
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१५ जून २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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