मंगलवार, 23 जून 2015

सुर-१७४ : "चैलन जिंदगी की सालगिरह आई... दिल से बधाई...!!!"

आज
के दिन ही
पिछले साल
हुआ था आगाज़
एक नये चैनल का
जो लाया धारावाहिक
दिखाने और सोचने का
इक नया-नया नज़रिया
इसलिये तो इतनी जल्दी
बन गया वो सबका पसंदीदा
महज़ उसका नाम ही ‘ज़िंदगी’ नहीं
वो तो हैं भी जीने का अलहदा तरीका
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मित्रों...,

जब से हिंदुस्तान में ‘दूरदर्शन’ की शुरुआत हुई तब से ही हमने जाना कि घर बैठे-बैठे ही एक छोटे से परदे पर सारी दुनिया को न सिर्फ़ देखा जा सकता हैं बल्कि मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञानवर्धन भी किया जा सकता हैं तभी तो उस दौर में जब ये आया इसका बड़ा ही भव्य स्वागत हुआ और देखने वालों ने ‘कृषि दर्शन’ या ‘मूक समाचारों’ जैसे कार्यक्रमों को भी ख़ुशी-ख़ुशी देखा क्योंकि ये सब उनके लिये एकदम अलग था और हम लोगों को तो चाहिये ही मनोरंजन तो फिर जब वो इतनी आसानी से मुहैया हो तो कहना ही क्या हम तो हो गये उसके अंध मुरीद और उसके सुनहरे काल में हमें एक से एक बेहतरीन उच्च दर्जे के धारावाहिक धार्मिक. ऐतिहासिक और साहित्यिक धारावाहिक मिले जिन्हें हम आज तलक भी भूल नहीं पाये यहाँ तक कि वो विज्ञापन भी अब तक जेहन में गूंजते हैं जिसके जिंगल्स को हम समझे भले ही नहीं फिर भी मजे से गाते थे और उसके बाद आया ‘केबल टी.वी.’ का एक उन्मादी दौर हमने उसका भी खुले दिल से अभिनंदन किया और उसके तड़क-भड़क ग्लैमर के सामने सादगी भरे मुफ़्त में मिलने वाले ‘दूरदर्शन’ को अलविदा कर दिया लेकिन जैसा कि होता हैं जब शुरूआती नशा उतरता हैं तो पता चलता हैं कि हमने क्या खोया और क्या पाया और अब ये आलम हैं कि आसानी से दिन-भर प्रसारित होने वाले इन कार्यक्रमों में भी हमारी कोई दिलचस्पी नहीं रही जबकि दूरदर्शन में तो हम सब कुछ देख लिया करते थे और गीतों के दीवाने तो ‘चित्रहार’ या ‘रंगोली’ का पूरे सप्ताह इंतजार करते थे पर, अब २४ घंटे ७ दिन मिलने वाला अबाधित डिजिटल प्रसारण भी आकर्षित नहीं करता और धारावाहिकों का ये हाल कि वे अनंत काल तक चलते रहते जब तक कि दर्शक ही नकार न दे और उनमें भी न तो कोई नयापन न ही कोई संदेश और न ही कोई सार्थकता पर मिज़ाज को बदलने के लिये लोग उसे देखते हैं तभी तो टी.आर.पी. बढ़ती हैं उसके अलावा दर्जनों भर चैनल्स हर तरह का मिज़ाज रखने वाले दर्शकों के लिये जब भी जो भी मन हो देख लो फिर भी उनके प्रति वो आकर्षण नहीं जो उस समय ‘एंटीना’ की दिशा बदलते हुये खर-खर के साथ भी आते ‘प्रोग्राम’ को देखते हुये हमने महसूस की हैं क्योंकि जैसी कि हमारी फ़ितरत हैं ‘ये दिल मांगे मोर’ तो आते रहते नये-नये शो और चैनल भी जिसका एक सौगात हैं पिछले साल आज ही के दिन २३ जून १०१४ को ‘ज़ी’ टी.वी. द्वारा पड़ोसी देश के धारावाहिक को प्रदर्शित करने के लिये शुरू किया गया एकदम नया चैलन ‘ज़िंदगी’             

सास-बहू के उबाऊ ‘सीरियल्स’ और एक जैसे मनोरंजन से उकताये टी.वी. के दीवानों को लिये तो ये बहुत ही खुबसूरत दिल लुभाने वाला तोहफ़ा साबित हुआ हैं जिसने आते ही देखने वालों को अपनी भाषा, अदायगी, पहनावे, बोलचाल और सभ्यता-संस्कृति के अलहदा अंदाज़ से ऐसा अपना बनाया कि उसे उसमें अपने किसी बिछड़े भाई का ही अक्स नज़र आया तभी तो सबने उसे दिल से अपनाया क्योंकि इसमें सिर्फ़ कहानी या किरदारों की ही नवीनता नहीं थी बल्कि इसकी अल्प अवधि ने भी सबको अपनी तरफ़ खिंचा क्योंकि सालों-साल चलने वाले लेकिन कहानी के रूप में एक इंच भी न बढ़ने अजगरी सीरियल से सब घबराये हुये थे ऐसे में जब ये छोटे-छोटे मगर जज्बाती और मानवीय संवेदनाओं से भरपूर हवा के ताज़गी भरे झोंके की तरह ये सरहद पार से आये तो ‘केबल टी.वी.’ के बोर करते कार्यक्रमों से होते बेजान दर्शकों की साँस में साँस आई और उसे अपने पड़ोसियों के रहन-सहन देखने के अलावा उनकी नफ़ासत भरी जुबान की चाशनी का ज़ायका भी मिला जिसने ये भी बताया कि उस तरफ़ के लोगों में इंसान बसते हैं जो हम जैसा ही महसूसते हैं और उनके यहाँ भी कुरीतियाँ या कुछ अंधविश्वास हैं तो कट्टरता भी कम नहीं फिर भी इनमें आला दर्जे के लेखकों की कहानियों और गीत-संगीत के साथ-साथ ही विविधता भी हैं तभी तो सबको जब इतनी अधिक ‘वैरायटी’ मिली तो वो इसका मुरीद बन गया ये और बात हैं कि कुछ कार्यक्रम बोझिल भी हैं लेकिन उनकी समय-सीमा निर्धारित होने से यदि उन्हें न भी देखा जाये तो जल्द उनके स्थान पर कोई नई कहानी आ जाती हैं और अभी कुछ कार्यक्रमों पर लोगों ने धार्मिक उन्माद फ़ैलाने के आरोप भी लगाया फिर भी कोई भी बात इनको न देखने की वजह नहीं बन सकती क्योंकि जब भी समय मिलता या व्यक्ति सुकूं के चंद पल टी.वी. के साथ  बिताना चाहता तो ये उसके लिये उम्दा विकल्प पेश करता हैं और इसके अलावा इसमें चकाचौंध करने वाली चमक-दमक या तेज-तेज आवाज़ में बोलने वाले अर्थहीन संवाद भी नहीं और न ही भडकीले मेकअप का तड़का हैं शायद, इसलिये भी जिनको शांति की तलाश हैं वो इसे पसंद करता हैं पर, इस तारीफ़ का ये मतलब कतई नहीं कि हम अपने सब काम छोड़कर इसे ही देखते रहे या इसके अतिरिक्त सब बेकार चैनल हैं बस, इतना ही बताना था कि जिनको भी संवेदनशील जज्बात से भरी हुई कथायें अच्छी लगती हैं उनके लिये तो इससे बेहतर कोई और झरोखा नहीं जहाँ हर तरह के रिश्ते-नाते से बने बेहतरीन नज़ारे देखने मिलते हैं

एक साल के अंदर ही उसने इतने सारे धारावाहिक प्रदर्शित कर दिये कि उसके प्रति सबकी अपेक्षायें और विश्वसनीयता भी बढ़ गयी... हर मुद्दे, हर विषय पर अनोखी दिल को छूती कहानी ने सोचने का नज़रिया भी बदला तो नयापन भी दिया... तो आज 'जिंदगी' की वर्षगांठ पर उसे दिल से बधाई... जो हमारे लिये ख़ुशी की कुछ नई वजहें लाई.. :) :) :) !!!            
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२३ जून २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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