मंगलवार, 16 जून 2015

सुर-१६७ : "न हुआ ऐसा फनकार... जैसे थे हेमंत कुमार...!!!"

हर गीत
हर संगीत
हो गया अमर
जब वो रचा गया
हेमंत दाके हूनर से
आज भी कायम
जादू उन नगमों का
जो बने थे बरसों पहले
कि उनको गाने और
उनकी धून बनाने वाला
सरगम का पारखी
सरस्वती का साधक पुत्र था ॥
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मित्रों...,

१६ जून १९२० को भगवान भोलेनाथ की पावन नगरी वाराणसीमें जन्मे हेमन्त कुमार मुखोपाध्यायजिन्हें कि हम हेमंत दाके नाम से जानते हैं हिंदी फ़िल्मी इंडस्ट्री के एक बेहतरीन बल्कि यूँ कहें कि अलहदा आवाज़ के मालिक और मधुर संगीत के जनक थे जिन्होंने पार्श्व गायक के रूप में अपनी पुरकशिश दिल को छूती आवाज़ से ही नहीं बल्कि अपनी बेमिसाल धुनों से रचे संगीत से भी उस दौर के बड़े से बड़े फनकारों के बीच रहते हुये ही अपना एक ऐसा मुकाम स्थापित किया कि इतने बरस बीत जाने के बाद भी उनका वो जादू आज तलक भी ज्यों का त्यों बरकरार हैं क्योंकि जब भी कभी कोई भी माँ सरस्वती का पुजारी या हुनरमंद अपनी कुदरती कला जिसे कि हम ईश्वर प्रदत्त उपहार मानते हैं की  सच्चे मन और पूर्ण समर्पण के साथ साधना करता हैं तो उससे उकेरा गया कृतित्व हर किसी को अपना दीवाना बना लेता हैं और उसकी हर एक रचना सदियों-सदियों तक अपना वजूद कायम रख पाने में सफल होती हैं यही वजह हैं कि यदि उस समय में उस कला के और भी उपासक हो तब भी हर कलाकार को अपनी तपस्या के अनुसार अपना तयशुदा स्थान जरुर हासिल होता हैं और उसके त्यागसेवा समर्पण के भाव को देखकर सारी कायनात भी उसकी मदद करती हैं ।

हालाँकि हेमंत दाबांग्ला भाषा के गायक और रविंद्र संगीतके जानकार होने के साथ-साथ अद्भुत संगीतकार थे लेकिन हिंदी फिल्मों में उन्होंने न सिर्फ़ अपने लिये जगह बनाई बल्कि ऐसा बनाई कि एक लंबा अंतराल गुज़र जाने के बाद भी कोई भी उनको उस स्थान से हटा नहीं पाया उनकी आवाज़ में मधुरता के साथ-साथ ही एक अलग ही खिंचाव था जिसके कारण सुनने वाला न सिर्फ सुनते ही उस आवाज़ को ही पहचान लेता बल्कि उसकी तरफ खिंचा चला आता जब भी कोई तन्हाई में कभी सुनता कि तुम पुकार लो... तुम्हारा इंतज़ार हैं...तो उसे लगता जैसे सचमुच दूर कहीं कोई उसे ही पुकार रहा हैं और बरबस ही वो उस स्वर की दिशा में बिना किसी डोर के ही  खिंचा चला जाता इतनी गहराई हैं उस आवाज़ में कि सुनने वाला डूब-सा जाता हैं और जब वो सुनता याद किया दिल ने कहाँ हो तुम... झूमती बहार हैं कहाँ हो तुम... ?” तो उसे लगता कि कोई उसे ही बुला रहा हैं और वो तुरंत अपने प्रिय के करीब पहुंचना चाहता... यदि कही उसे बजता सुनाई देता जाग दर्दे इश्क़ जाग... तो महसूस होता जैसे कोई उसे ही जगा रहा हैं... जब कभी उसके कानों में ये स्वर लहरियां आती जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला... हमने तो जब कलियाँ मांगी काँटों का हार मिला...तो उसे लगता जैसे कोई दुखियारा अपने दर्द से उसे रुला ही देगा... और हैं अपना दिल तो आवारा... न जाने किस पे आयेगा...गीत ने तो न जाने कितने नौजवानों को अपना दीवाना बनाया और उसने इसे गुनगुनाया ।

जब किसी का प्रियतम रूठा तो उसने उसने मनाने के लिये यही गीत गाया... बेक़रार कर के हमें यूँ न जाइये आपको हमारी कसम लौट आइये...और किसी हसीना की तीखी नजरों को देखकर तो हर किसी के होंठो पर यही गीत चला आया... ज़रा नज़रों से कह दो जी निशाना चूक न जाये...और जब उसने अपनी प्रिय को डरा-सहमा देखा तो उसे यूँ समझाया... ये नयन डरे-डरे...और जब किसी प्रेमी-प्रेमिका का एकांत में मिलन हुआ तो उन्होंने अपने प्रेम का यूँ इज़हार किया... नैन सो नैन नाही मिला... देखत सूरत आवत लाज गुइया...और इंसाफ की डगर पर बच्चों दिखाओ चल के...तो हम सब आज भी अपने नौनिहालों को सुनाते हैं उन्हें सही मार्ग पर चलने प्रेरित करते हैं... और अनुपमा फिल्म में गाया उनका एक संजीदा गीत... या दिल की सुनो दुनिया वालों या मुझको अभी चुप रहने दो...और छोटा सा घर होगा बादलों की छाँव में...सुनकर तो हर किसी ने अपनी आशियाने का ख्वाब देखा होगा... और जब कभी भी कहीं छूपा लो यूँ दिल में प्यार मेरा के जैसे मंदिर में लौ दिये की....गीत बजता सुनाई दिया तो मन के भीतर प्रेम की पवित्र ज्योति प्रज्वलित होने का आभास हुआ... और नरसी मेहताफिल्म का दर्शन दो घनशयाम नाथ मेरी अंखियाँ प्यासी रे...तो ऐसा भक्तिमय भजन कि सुनते ही श्रोता आँख मूंदकर भक्ति में लीन हो जाता...और जब कभी गंगा आये कहाँ से... गंगा जाये कहाँ रे...सुनता तो गंगा का कल-कल स्वर उसके कानों में गूंजने लगता... और आनंद मठमें उनका गाया वंदे मातरमतो सर्वकालिक कृति हैं जिसे भूल पाना नामुमकिन हैं... और उस महान कलाकार को भी जिसका आज जन्मदिवस हैं... उसके इस योगदान के लिये मन से... शत-शत नमन... :) :) :) !!!
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१६ जून २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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