शुक्रवार, 19 जून 2015

सुर-१७० : "रमज़ान का पाक़ महिना... लाता खुशियों का सफ़ीना...!!!"

एक-एक
रोज़ा देता
तन-मन को
अपार बल
जीने का हौंसला
जिससे बनता रोज़ेदार
नेक और धर्म का पक्का
दुनिया में वो लाता
चैन-अमन का सुखद पैगाम
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मित्रों...,

हिंद की अनेक विशेषताओं में से एक हैं... ‘अनेकता में एकता’ क्योंकि यहाँ सभी धर्मो के लोग एक साथ रहते हैं जिनके रीति-रिवाज़, बोलचाल, पहनावा, खान-पान और तीज-त्यौहार भले ही अलग-अलग हैं पर, हम सबके प्रति समभाव रखते हुये सभी की खुशियों एवं गम में शिरकत करते हैं... जिससे कि हमारा ये देश जो कि विश्व पटल पर धर्म-निरपेक्षता और आपसी सद्भाव के लिये जाना जाता हैं... वो ऐसे किसी भी अवसर के आगमन पर दुनिया के सामने अपनी उस छवि को और अधिक स्पष्ट तौर पर प्रस्तुत कर मज़बूत कर सके ताकि संपूर्ण जगत में ये संदेश प्रसारित हो कि जहाँ कम से कम आबादी वाले और सिर्फ़ एक ही मज़हब को माने वाले बसते हैं वहां भी उतना चैन व अमन नहीं हैं जितना कि प्रेम और दोस्ताना इस विशाल गुलशन में खिले विविध पुष्पों के बीच हैं आज भी एक ऐसा ही मुबारक मौका हैं क्योंकि आज से इस्लाम धर्म के सबसे पवित्र माने जाने वाले महीने ‘रमज़ान’ का आगाज़ हुआ हैं जो कि इस्लामिक कैलेंडर का नौवा महीना है और इसे इस मज़हब के सर्वाधिक पाक महीनों में गिना जाता है क्योंकि ये माना जाता हैं कि इस माह में ही इस्लाम धर्म के के पैगाम और अपने मानने वालों के लिये आयतों को समेटे धर्मग्रंथ ‘कुरआन’ का अवतरण हुआ था उनका अतः इस धर्म को मानने वाले सभी अनुयायियों को इन दिनों में पूरे नियम-कायदे से ‘रोज़ा’ जिसे कि हम ‘व्रत’ या ‘उपवास’ कहते हैं रखते हुये अपने धर्म में बताई गयी नसीहतों का पालन करने की हिदायत दी जाती हैं

‘रोज़ा’ एक अरबी लफ्ज़ हैं जिसका अर्थ ‘रुकना’ होता हैं यानी कि तमाम बुराइयों से रुकना या परहेज़ करना इसलिये ये माना जाता हैं कि ‘रोज़ा’ का मतलब सिर्फ़ भूखे-प्यासे रहकर केवल शरीर को ही नहीं साधना हैं बल्कि अपनी ‘रूह’ और ‘मन’ को भी अपने नियंत्रण में रखना हैं जिससे कि हमारी वजह से गलती से भी किसी का दिल न दुखे अतः अपनी समस्त कर्मेन्द्रियों और ज्ञानेन्द्रियों को भी काबू रखने की सलाह दी जाती हैं इसलिये रोजादारों को हमेशा ये ध्यान रखना चाहिये कि महज़ इन दिनों ही नहीं बल्कि सदैव अपनी ज़बान से ग़लत या बुरा नहीं बोलना चाहिये, अपनी आँख से कभी ग़लत नहीं देखना चाहिये, अपने कान से ग़लत नहीं सुनना चाहिये, अपने हाथ-पैर तथा शरीर के अन्य हिस्सों से कोई भी गलत कार्य नहीं करना चाहिये और हर वक़्त केवल रब की इबादत करते रहना चाहिये इसलिये हम सबको ही इस मुबारक महीने में किसी भी तरह के झगडे़ या गुस्से से बचने की कोशिश करना चाहिये और यदि किसी से हमारा कोई पुराना झगड़ा या रंजिश हैं तो आगे बढ़कर उससे माफ़ी मांगकर अपने रिश्ते को मज़बूत कर लेना चाहिये और इसके साथ ही इस महीने में एक निश्चित रकम या सामान भी अनाथ-दरिद्रों में बांटने को कहा गया हैं इस बार तो इस पाक महीने का महत्व और भी अधिक बढ़ गया हैं क्योंकि इस समय ही ‘पुरुषोत्तम मास’ भी तो चल रहा हैं जो क़ुदरत का अद्भुत संगम या बोले करिश्मा हैं... तो सबको एक साथ ही चलने वाले संयम के इन सबसे पवित्र दिनों की मुबारकबाद... जिनसे होता हम सबका जीवन शाद ओ आबाद... :) :) :) !!!
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१९ जून २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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1 टिप्पणी:

Hayat Singh ने कहा…

समसामयिक जागरूक करती पोस्ट ... बेशक शब्दों का बड़ा चमत्कार न दिखे यहाँ पर मगर इन सरल शब्दों से बुने इस लेख की महत्ता को किसी भी द्रष्टि से कम आंकना आपकी भूल कहलाएगी...