सोमवार, 8 जून 2015

सुर-१५९ : "कर्म के साथ... किस्मत भी हो साथ... तो बन जाये बात...!!!"

‘कर्म’
और...
‘क़िस्मत’
दोनों लगते
एक ही सिक्के के
दो पहलू हैं
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गर...
साथ हो
कोई ‘एक’ तो
‘दूजा’ मुंह मोड़ लेता हैं
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महज़...
चंद लोगों को ही
उन दोनों का
अद्भुत फलदायी संयोग
हासिल होता हैं
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मित्रों...,

‘अदिति’ अपने घर के धार्मिक वातावरण के कारण बचपन से ही पूजा-पाठ और धर्मग्रन्थों के अध्ययन के अलावा सत्संग में भी समय व्यतीत करती और उसके साथ-साथ ही अपनी पढ़ाई-लिखाई एवं अन्य शौकों को भी समय देती क्योंकि समय के प्रबंधन और अनुशासन के मंत्र उसे अपने परिवार से ही मिले थे जिसकी वजह से उसकी दिनचर्या उसकी हमउम्र सहेलियों से एकदम जुदा और बेहद व्यवस्थित थी लेकिन इतनी मेहनत और हर तरह के नियमों का पालन करने के बावज़ूद भी उसका परिणाम उसके बेहिसाब काम और अथक परिश्रम के सामने कमतर ही साबित होता जिसने न चाहते हुये भी उसके मन में ‘कर्मयोग’ के प्रति प्रश्न उत्पन्न कर दिये थे जिसे उसने अपने जीवन का सिद्धांत बना लिया था

हर बार निराशा के सागर में गिरने के बाद भी वो अपनी सकरात्मक सोच से उसे तैरकर पार कर ही लेती फिर भी उसे कभी भी कर्मफल अपनी आशा के अनुरूप नहीं मिला जिसने उसे सोचने मजबूर कर दिया कि केवल कर्म करने से ही सब कुछ नहीं होता कहीं न कहीं तकदीर का होना भी जरूरी होता हैं क्योंकि अपने आस-पास ही उसने अपनी कई सहेलियों को देखा जो न उसकी तरह मेहनती या पढ़ाकू थी पर, हमेशा न सिर्फ़ अव्वल आती बल्कि आज बहुत-सी तो अच्छे पदों पर सुशोभित थी जबकि उसने कई प्रतियोगी परीक्षा और साक्षात्कार देकर भी यही महसूस किया कि काश, आज भाग्य ने उसका भी साथ दिया होता तो वो भी अपने लक्ष्य को हासिल कर लेती जो हमेशा ही उससे एक कदम दूर रह गया

उसके साथ ये समस्या नहीं थी कि उसने अपनी तरफ से कहीं भी कोई भी कमी छोड़ी हो बल्कि उसने तो सब कुछ बढ़कर करने पर भी यही पाया कि उसके और काम्याबी के दरम्याँ जरा-सा फ़ासला शेष रह ही गया... जिसने न चाहते हुये भी उसे उस पक्ष के समक्ष घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया कि जिसे उसने सदैव ही ‘कर्म’ से कम समझा और उसे सबकी वो बातें अर्थहीन लगती जिसके आधार पर बनी अपनी सोच को वो अपने अनवरत अथक परिश्रम से सिद्ध न कर सकी सबने उसे समझाना चाहा कि कहीं न कहीं तुम्हारी कोशिशों या तुम्हारे मार्ग के चुनाव में गलती होगी पर अगली बार हर गलती से सबक लेकर फूंक-फूंककर कदम रखने से भी उसे ये मानना पड़ा कि न तो केवल ‘कर्म’, न ही केवल ‘क़िस्मत’ बल्कि दोनों से ही सफ़लता मिलती हैं और जिनके सितारे बुलंद होते उनको तो बिना हाथ हिलाये भी सब कुछ मिल जाता जबकि कुछ लोग आजीवन हाथ-पाँव चलाते रहते फिर भी दामन ख़ाली और पैरों में छाले नज़र आते हैं          

किसी को ताउम्र इंतजार का अभिशाप मिलता... तो किसी को बिना मांगे ही सब कुछ पाने का वरदान मिलता... :) :) :) !!!
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०८ जून २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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