शुक्रवार, 26 जून 2015

सुर-१७७ : 'नशा करता कमज़ोर... न सहो इसका ज़ोर...!!!"

‘नशा’
करना हैं तो
करो ‘पढ़ाई’ का
खुद को और
दुनिया को बदलने का
देश-समाज को
कुछ देकर जाने का
लेकर हर ‘कश’
जीवन की कशमकश का
बेफ़िक्र उड़ा दो धुंये में
हर एक दुःख-तकलीफ़ को
पीकर घूंट-घूंट साँसों की हाला
हो जाओ मस्त-मगन चूर
‘कर्म’ के मादकपन में
जिससे सिर्फ़ अपना ही नहीं
औरों का भी जीवन संवार सको
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मित्रों...,

आज फिर एक बार ‘२६ जून’ को हर साल की तरह ‘अंतर्राष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस’ आ गया लेकिन उसका वो व्यापक असर नज़र नहीं आ रहा क्योंकि हमारे यहाँ किसी खाद्य पदार्थ में कोई घातक या अमानक तत्व प्राप्त हो जाये तो उसे तो बड़ी आसानी से प्रतिबंधित कर दिया जाता हैं लेकिन यही इसी देश में उससे भी अधिक खतरनाक बोले तो जहरीले मादक पदार्थों को नज़र न आने वाली छोटी-सी सूचना बोले तो ‘वैधानिक चेतवानी’ के साथ बाज़ार में उतारने के लिये सरकार और क़ानून की तरफ़ से ठेका दिया जाता इसलिये तो इंसान खुलेआम बड़ी शान से उन्हें खरीदकर सरकार को उसका हिस्सा देकर बड़े मजे से सीना तानकर उसका सेवन करता और घर जाकर अपने परिजनों पर न सिर्फ़ रौब गांठता बल्कि उनके द्वारा विरोध किये जाने पर उन पर लात-जूतों की बरसात भी करता कहने का मतलब कि नशीले पदार्थों के ये जानलेवा ‘साइड इफ़ेक्ट्स’ हैं जिनका प्रभाव उसे अपनाने वालों के अलावा उनके आस-पास रहने वालों को भी भुगतना पड़ता और यदि आंकड़ों के दृष्टिकोण से बात की जाये तो शायद, यही पाया जायेगा कि ज्यादातर ‘अपराधों’ और ‘घटनाओं’ के पीछे यही एकमात्र ‘अपराधी’ नज़र आयेगा जो किसी भी इंसान के भीतर जाकर उसे एकाएक ‘इंसान’ से ‘शैतान’ बना देता हैं और वो जो उसके पूर्व सभ्य या शरीफ़ ‘मानव’ नज़र आ रहा था अचानक उसके ‘सिंग’ उग आते हैं और देखते ही देखते वो ‘दानव’ में तब्दील हो जाता हैं ।

भले ही उसके उतरने के बाद उसे अपनी गलती का अहसास हो भी जाता हो लेकिन इस दौरान उसके हाथों-पैरों से जो भी अकृत्य हो जाता हैं उसका खामियाज़ा तो सामने वाले को उठाना ही पड़ता क्योंकि अगला तो खुद को नशे में घोषित कर हर एक नाकाबिले माफ़ी हरकतों के लिये भी ‘माफ़ी’ का हकदार बन जाता और सारा दोष उस निर्दोष के ही सर मढ़ा जाता जो भी उसके हत्थे चढ़ जाता हैं रोज-रोज इतने सारी अपराधिक मामलों के ख़ुलासे के बाद और ‘नशा विरोध’ के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ अनेक अभियान चलाने के बाद भी स्थिति जस की तस हैं जो ज़ाहिर करती हैं कि आदमी का अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं जिसकी वजह से वो हर वो काम करता जिनके लिये उसे मना किया जाता अतः यदि वो स्वयं पर ही काबू पाये और अपने आप को इस तरह के माहौल और लोगों से दूर रखते हुये जीवन गुज़ारे तो न सिर्फ खुद भी जीवन का सुख पा सकता बल्कि अपनी आश्रितों को भी खुशियाँ बाँट सकता जिसका ‘नशा’ सभी नशों से न सिर्फ़ बढ़कर हैं बल्कि रोज-रोज बढ़ता ही जाता और दुगुना होकर वापस भी मिलता फिर भी जो इसके आदि हो चुके हैं वो न तो सुनते न ही समझते उनको तो बस, एक ही धुन कि किसी भी तरह इंतजाम हो जाये चाहे फिर किसी की जान ही क्यों न चली जाये तो ऐसे ही व्यसनी व्यक्तियों को सुझाव देने हेतु आज के दिन के अवसर पर पंक्तियाँ रची गयी हैं----       

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कभी घर में
क्लेश-कलह होने पर
उसकी गहराई में जाकर
उसे सुलझाकर देखें ।
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कभी प्रेम में
असफ़ल होने पर
किसी और की दास्तान
सफ़ल बनाकर देखें ।
...
कभी ख़ुशी में
होशोहवास ना खोकर
उसे दूसरों के साथ यूँ ही
बेवजह बांटकर देखें ।
...
कभी गम में
अपना दुःख भूल के
किसी और के बहते आंसू
अपने हाथों से पोंछकर देखें ।
...
कभी किसी काम में
गर निराशा मिल जायें तो
एक दिन को ही सही
ख़ुद को जरा टटोलकर देखें ।
...
कभी परेशानी में
घबराकर मरना चाहो तो
अपने से भी दुखी को
थोड़ा करीब से जाकर देखें ।
...
कभी फैशन में
दिखावा करने की जगह
नशा मुक्ति का पाठ
पढ़ें और पढ़ाकर भी देखें ।
...
कभी तन्हाई में
जब कोई भी सहारा न मिले 
तब किसी अनाथ, बेसहारा का
अकेलापन बांटकर देखें ।
...
कभी जुदाई में
किसी की याद तडफाने लगे
तो किसी बेघर, बंजारे के संग
चार पल बिताकर देखें ।
...
कभी मिलन में
खुबसूरत से पलों को
बरबाद न कर के
हर क्षण को जीकर देखें ।
...
कभी गरीबी में
दाने-दाने को अभाव हो 
तो कर्ज़ लेकर पीना छोड़
उस से आँख मिलाकर देखें ।
...
कभी अमीरी में
शान-ओ-शौकत छोड़कर  
झूठी शान से आगे बढ़ के
किसी की भूख मिटाकर देखें ।
...
कभी नशे में
सड़क पर पड़े न होकर
होश-ओ-हवास में ही
अपने घर को जाकर देखें ।
...
कभी फुर्सत में
प्रकृति के निकट 
अपने परिवार के संग
एक दिन तो जाकर देखें ।
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इस उम्मीद के साथ आज के दिन की शुभकामनायें कि... यदि किसी एक ने भी इन पंक्तियों को आत्मसात कर लिया तो ये सार्थक हो जायेगी... :) :) :) !!!   
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२६ जून २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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