रविवार, 21 जून 2015

सुर-१७२ : "बदल रही पिता की छवि... 'पितृ दिवस' में लगती भली...!!!"

ज्यों
निकले
राजमहल से
'राम' वन की और...
...
त्यों
निकले
प्राण तन से
'दशरथ' के वैकुंठ की और...
...
जुदाई
प्रिय पुत्र की
यूँ हृदय को बेध गयी
काया पिता की
जल बिन मछली सी
बेतरह तड़फ गयी ।
...
पितृ प्रेम की
पराकाष्ठा और क्या होगी
कि सिर्फ़ कहा नहीं
अपने बेटे को
‘जिगर का टुकड़ा’
बल्कि उसके वियोग में
देकर अपने प्राणों की आहुति
जता दिया दुनिया को
कि केवल एक माँ ही नहीं
एक पिता भी अपनी संतान को
जान से प्यारा समझता हैं
और जिसके स्नेह में वो भी तो
प्राणों का त्याग कर सकता हैं ।।
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मित्रों...,

भले ही किसी भी संतान के जन्म से लेकर उसके लालन-पालन में ‘माँ’ की भूमिका सर्वोपरि होती हो लेकिन ‘पिता’ को भी हम इस मामले में एकदम उपेक्षित नहीं कर सकते हैं या उसे केवल घर की समस्त आर्थिक जिम्मेदारी का ही हिस्सेदार नहीं मान सकते जैसा कि आजकल की भाषा में बच्चे उन्हें ‘ए.टी.एम. मशीन’ कहते हैं चूँकि हमारे यहाँ कि ‘पितृसत्तात्मक’ व्यवस्था के कारण ‘जननी’ को घर के अंदर और ‘जनक’ को घर के बाहर की सभी जिम्मेदारियों को वहन करने की एक तयशुदा परिपाटी बना दी गयी और सदियों से इसका ही अनुसरण करने के कारण हम भी ऐसा ही समझने लगे और ये भूल गये कि एक पिता भी तो माँ के समान ही सहज-सरल और वात्सल्य का प्रतीक बन सकता हैं पर, आज ऐसा भी देखने में आ रहा कि जिस तरह ‘माताओं’ ने घर की दहलीज़ पार कर ‘पिताओं’ के कंधें से कंधा मिलाते हुये उनकी पीठ के बोझ को अपने सर पर लेकर उनके कदम से कदम मिलाकर चलने का फैसला किया जिससे कि आमदनी या कमाई करने का काम केवल आदमियों का ही एकमात्र अधिकार या क्षेत्र नहीं समझा जाता उसी तरह ‘पिताओं’ ने भी रसोई के अंदर पांव रखकर न सिर्फ़ खाना बनाने जैसे छोटे-मोटे कामों में हाथ बंटाया बल्कि पालने-पोसने जैसी केवल माँ की ही एकमात्र जिम्मेदारी समझे जाने वाले काम को भी अपनाकर उस जगह पर अपना भी नाम लिखवाया भले ही ‘माँ की ममता’ का कोई उचित और मानक पुरुषवाची शब्द या विकल्प या संज्ञा न हो लकिन फिर भी पिता ने उसे अपने स्नेह से भरने में कोई कमी नहीं छोड़ी हैं तभी तो अब वो अपनी उस पुरानी परंपरावादी स्थायी छवि को बदल पाने में भी सफल हुआ हैं जिसके कारण उसे अब तक गुस्सैल रोबीला, अनुशासित, गंभीर और सदा डांटने-डपटने वाला समझकर बच्चे दूरी बनाकर रखते थे लेकिन अब तो उसने बच्चों के साथ बराबरी से खेलते और उससे दोस्तों की तरह व्यवहार करने वाली एक बिल्कुल नवीनतम इमेज गढ़ी हैं जो उम्मीद जगाती हैं

नये जमाने के साथ उसने भी अपने आपको अपने तौर-तरीकों को बदला हैं जिससे उसकी संतान ने भी उन दोनों के बीच की दूरी को मिटाकर और उस दायरे को तोड़कर उसके साथ दोस्ताना रिश्ता बनाया हैं इस तरह अब तो माता-पिता बराबरी से अपने बच्चों को पाल रहे हैं और ये दर्शा रहे हैं कि भले ही वो संतान की जनम नहीं देते लेकिन उस दर्द और पीड़ा को महसूस हैं और ये भी मानते हैं कि रातों को जागने का काम केवल उसकी जन्मदात्री का नहीं बल्कि जन्मदाता का भी काम हैं तभी तो नेपी बदलने जैसे काम को करने भी उन्हें कोई हिचक नहीं तो फिर क्यों न बच्चे भी उनसे उसी तरह रूठे या अपनी मांगें पूरी करने कहे जैसा कि बिंदास वो अपनी माँ से कहते हैं... ‘पापा’ का ये ‘अपडेट’ हुआ स्वरुप सबको लुभाने वाला अपने करीब लाने वाला हैं इसलिये तो देखो सब कितने बेझिझक होकर अपने ‘डेड’ के साथ आज ‘फ़ादर डे’ मना रहे हैं... उनके लिये विशेष पार्टी का आयोजन कर रहे हैं और कुछ अनोखा गिफ्ट उनको पेश कर रहे हैं... तो इसी ख़ुशी में और इज़ाफा करते हुये सभी को ‘पितृ दिवस’ की हार्दिक शुभकामनायें... :) :) :) !!!!     
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२१ जून २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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