शनिवार, 20 जून 2015

सुर-१७१ : "थोड़ा-सा योग... जीवन में देता बड़ा ज्यादा सहयोग...!!!"


साधू-संतों
ऋषि-मुनियों
तपस्वी-अवतारों की
पावन भूमि में
जन्मे साधक अनेक
देकर गये वो
स्वस्थ निरोगी दीर्घायु
जीवन जीने के मंत्र
अपनाकर जिनको हम
बन सकते हैं ‘योगी’
धर्म-कर्म के संग
जब हो जाये योग का
थोड़ा-सा ही संयोग
तो मिलेगा प्रकृति का भी
हमको भरपूर सहयोग
जो बना देगा देह ऊर्जावान
और भाग जायेंगे हर रोग
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मित्रों...,

कल सुबह २१ जून २०१५ को निकलने वाला सूरज एक इतिहास बनाने जा रहा हैं क्योंकि प्रखर होती किरणों के साथ ये संपूर्ण विश्व के कथानक में अपनी रौशनी से ऐसी सुनहरी इबारत लिखने जा रहा हैं जिससे एक बार फिर हमारे देश का नाम सारी दुनिया में गूंजेगा जब सबके मस्तक इस पवित्र भूमि के ऋषि-मुनियों और तपस्वियों की साधना के अविष्कार जादुई छड़ी समान चमत्कारी ‘योग’ के तेजस्वी सूर्य के समक्ष झुकेंगे उसे नमन करते हुये अपने जीवन को संतुलित बनाने के लिये इस सहज-सरल लेकिन प्रभावी व्यायाम की सभी गतिविधियों का अनुसरण करेंगे ताकि वे भी हमारे प्राचीन साधू-संतो के उस दीर्घायु और निरोग रहने के रहस्य से अपने तन-मन की सुप्त काबिलियत को जगाकर खुद को नूतन ऊर्जा से भर अति उत्साह से काम्याबी के एक-एक सोपान चढ़ते हुये अपनी मंजिल तक बड़ी आसानी से पहुंच सफ़लता का परचम लहराकर अपनी जीत का जश्न मना सके इसलिये तो यदि हम ‘योग’ को जादुई चिराग़ की संज्ञा भी दे तो गलत न होगा क्योंकि ये वाकई में अपनी तिलस्म से ‘योगी’ का कायाकल्प करने की सामर्थ्य रखते हैं

‘योग’ एक ऐसा अल्फाज़ हैं जिसके मायने ही हैं ‘जोड़ना’ या ‘संयुक्त करना’ तो फिर जिसके भी साथ इसका संयोग बन जाये वो अपने आप ही उस क्रिया विशेष के परिणाम में कुछ अंश अधिक बढ़ा देगा इसलिये तो इसके जितने भी स्वरूप हैं वो हमें आशा से अधिक लाभ देते हैं और हमारे जीवन में थोड़ा या ज्यादा लाभांश जोड़ देते हैं यदि हम इनको अपनाते समय तनिक सावधानी और सारे नियम-कायदों का न सिर्फ़ ध्यान रखें बल्कि उन्हें नजरअंदाज़ न करें तो ये हमारे लिये अत्यंत लाभकारी बन सकते हैं वरना, हमारी जरा-सी भी गलती से ये हानि की वजह भी बन सकते हैं क्योंकि इन्हें करने के कुछ उचित-अनुचित तरीके और समय-तालिका होती हैं तो साथ ही साथ इनको करते हुये खान-पान के अलावा ऋतुओं का भी ध्यान रखा जाता हैं और उसके अनुसार ही सावधानी रखी जाती हैं ताकि वे बदलते हुये मौसम से हमारे मिज़ाज का सही तालमेल बिठा सके अतः उनका उसी तरह से पालन न करने पर वे फ़ायदा पहुँचाने की बजाय नुकसान कर देते हैं ।  

यूँ तो हमारे यहाँ ‘पतंजलि’ को ‘योग दर्शन’ का संस्थापक माना जाता हैं लेकिन इसकी उत्पत्ति का सहस्त्रों बरस पुरानी हैं और परम योगी भगवान श्रीकृष्ण ने ‘श्रीमद्भागवद्गीता’ में स्वयं अपने श्रीमुख से इसकी महिमा का गान करते हुये इसके सभी भेदों का विस्तार से वर्णन किया हैं जिनमे से हम किसी भी प्रकार के योग को अपनाकर देह के सभी चक्रों को जागृत कर जीवन को ‘वायु’ सा गतिमान, अग्नि सा तेजोमय, पानी सा पारदर्शी, आकाश सा विशाल और धरती सा सहनशील बना सकते हैं यानी कि देह के सभी पंच तत्वों की तासीर को उसके वास्तविक रूप में सक्रिय बनाकर ख़ुद को महज़ माटी का पुतला नहीं बल्कि अद्भुत अलौकिक जिसे आज की भाषा में ‘सुपर हीरो’ बोलते हैं बना सकते हैं... क्योंकि ये हमारी सोयी हुई सभी शक्तियों को जगा देता हैं और हमें साधारण से असाधारण बना देता हैं... यही हैं ‘योग’ का हमारे जीवन में ‘महायोग’... :) :) :) !!!  
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२० जून २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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