शनिवार, 22 अगस्त 2015

सुर-२३४ : "तुलसी जयंती...!!!"


श्रावण मास
शुक्ल पक्ष सप्तमी तिथि
आई ‘तुलसी जयंती’
जिसने बहाई धरती पर
रामभक्ति की वो पावन नदी
जिसमें नहाकर बने
हर भक्त अंतर से पवित्र
समाई इसमें राम चरणों की धूलि
आशीषों की भरमार  
इसके कण-कण में हैं बसी
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मित्रों...,

शायद ही कोई हिंदू घर ऐसा हो जिसमें कि ‘श्रीरामचरित मानस’ जैसी पारसमणि न हो जिसके स्पर्श मात्र से हर काया कंचन में बदल जाती हैं और कुछ ऐसी शक्ति हैं इसमें कि अनपढ़-गंवार भी इसे सस्वर प्रेम से गाता हैं शब्दों की ऐसी पावन सरिता इसमें बसी जो अनवरत निर्विरोध कल-कल कर यूँ बहती जाती हैं कि मन के हर मैल या पाप को धोकर उसे भगवान श्रीराम का मंदिर बना देती हैं तभी तो सदियाँ गुजरने पर भी कोई इसे भूला नहीं बल्कि दिनों दिन इसकी महत्ता बढती ही जा रही हैं क्योंकि ऐसे आदर्श सत्यवान सहज-सरल पर दृढ चरित्र अब लुप्त होते जा रहे हैं तो ऐसे में ये परम पावन कथा इस घोर कलयुग में भी लोगों का न सिर्फ़ रिश्तों पर विश्वास कायम रखती हैं बल्कि उनके मन में अपने कर्मपथ पर अथक अडिग चलते हुये सफ़लता के प्रति किसी आशंका के जगने पर उसे मिटा उसकी जगह आशा की डगमगाती लौ को पुनः स्थिर करती हैं कि गर, पास न हो ऐश्वर्य या अपार सम्पत्ति तब भी केवल आत्मबल और अच्छे व सच्चे मित्रों की मदद से भी अपने से ताकतवर एवं शक्तिशाली शत्रु का मुकाबला किया जा सकता हैं क्योंकि मन वचन कर्म की ताकत से हर मुश्किल को आसान बनाया जा सकता हैं

‘रामबोला’ का बाल्यकाल जितना कष्टप्रद और कठिनाइयों भरा था उतना ही ‘तुलसीदास’ बनने पर भी उनको कष्टों का समाना करना पड़ा लेकिन ह्रदय में अपने आराध्य श्रीराम की भक्ति का जो सूरज जगमगा रहा था उसने उनको हर बुरे वक्त में रास्ता दिखाया बल्कि उनकी भक्ति का तो वो आलम था कि भगवान स्वयं हर मोड़ पर उनके साथ खड़े हुये और इसी अलौकिक साहस के बल पर उन्होंने मुग़ल शासक ‘अकबर’ महान के साथ-साथ उनसे इर्ष्या करने वाले पंडितों का भी सामना किया और आजीवन अपनी कलम से सृजन करते हुये साहित्य को अनमोल विरासत सौंप गये जिससे कि हिंदी साहित्य सदा धनवान बना रहेगा और हर एक पाठक उन्हें पढ़कर अपने जीवन को धन्य बना सकेगा केवल ‘मानस’ ही नहीं बल्कि ‘हनुमान चलीसा’ का जो प्रभाव जनमानस पर हैं उसे भी कमतर नहीं आँका जा सकता क्योंकि हर एक बालक बचपन से ही उसका पाठ करता और इतनी गेयता उसके शब्दों में कि अपने आप ही वो याद हो जाता और जब कोई उसे बोलता तो धाराप्रवाह बोलता ही जाता ये सिर्फ़ माँ सरस्वती के वरदान और भगवान् श्रीराम की असीम उपासना का ही फल हैं कि उन्होंने अवधि बोली में ही जो कुछ भी लिख दिया वो खुद ही पारसमणि में परिवर्तित हो गया और आज भी उनमें वो तासीर हैं कि उनके वाचन से उपासक का भी कायाकल्प हो जाता तो आज उसी महाकवि भक्त शिरोमणि ‘गोस्वामी तुलसीदास’ की जयंती पर उनको कोटि-कोटि नमन... :) :) :) !!!         
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२२ अगस्त २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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