सोमवार, 3 अगस्त 2015

सुर-२१५ : "आया सावन का प्रथम सोमवार... दो अपने सपनों का आकार...!!!"

कालों के काल
कहलाते ‘महाकाल’
टाल देते भय
मृत्यु दोष अकाल
देख सकते वो
आज कल त्रिकाल
पूजते सब भक्त
सुबह दोपहर सांयकाल
आया उनका पावन
फलदायी श्रावण मास काल
आओ सजाये सब
अभिषेक सामग्री से पूजा थाल
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मित्रों...,

आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ‘चातुर्मास’ की धार्मिक महत्ता को केवल साधक गण ही अनुभूत कर सकते हैं क्योंकि वे तो भक्ति-उपासना के लिये इस समय की प्रतीक्षा करते हैं जब प्रकृति भी नव पल्लव धारण कर नव निर्माण में जुट जाती हैं और चारो तरफ हरियाली का अद्भुत प्राकृतिक चित्रण होता हैं जिससे हर किसी का मन भी मयूर की भांति नृत्य करने लगता हैं और इंसानी काया भी स्वयं इस बदलते परिवेश के साथ साम्य स्थापित करने को प्रयासरत रहती जो कि इस ख़ुशहाल वातावरण में बेहद सहज-सरल होता क्योंकि हम कुदरत से ही संचालित होते हैं जो इस वक्त अपना नूतन सृजन करने में जुटी होती हैं तथा हर धरती पर गिरा या बिखेरा गया बीज अंकुरित होकर किसी नये पौधे को जन्म देता तो कहीं रोपा गया पौधा वृद्धि कर आगे बढ़ने लगता तो किसी कोने में जो पौधा वृक्ष बन चुका हैं वो भी नवीन सुकोमल पत्तों और खुबसूरत पुष्पों से श्रृंगार कर सुंदरता की प्रत्यक्ष मिसाल बन जाता जिसे देखकर सिर्फ़ ईश्वर के उपासक ही नहीं बल्कि हर सृजनकर्ता किसी नई रचना के संधान में जुट जाता तभी तो अमूमन इस समय कलमकारों की कलम भी स्वतः ही उठ जाती और पता नहीं चलता कब कोरे सफों को हर्फों से भर कुछ कह जाती और इसी समय चित्रकार या मूर्तिकार की उँगलियों की हरकत से कोई कल्पना साकार हो जाती याने कि हर हुनरमंद की कला मुखर हो अपने चरम पर पहुंच जाती जिसकी वजह इस काल का यूँ उपजाऊ होना हैं जिसमें नन्हे कीट-पतंग से लेकर महाकाय शरीरी जीव भी किसी नव-निर्माण की प्रक्रिया में जुट जाते हैं तो फिर ऐसे में हाथ में हाथ रखकर बैठने वाला निरा आलसी ही होगा जिसके भीतर कुछ भी नया करने की कोई इच्छा अंगड़ाई नहीं लेती, जिसकी ज्ञानेंद्रियों में कर्म की कोई तरंग हिलोर नहीं लेती वरना तो जिसे भी और जिधर भी नज़र उठाकर देखो सब में कायाकल्प होता दिखाई देता हैं तो फिर हर किसी को इस ऊर्जावान उपजाऊ मौसम का लाभ लेना चाहिए जहाँ हर एक शय कर्मरत होते हुये हमें ये कह रही कि आओ तुम भी इस रचना कर्म में जुट जाओ हमारी ही तरह कुछ बनाओ और जो नहीं बना सकते तो जो बना हैं उसे ही सुधार लो कहने का मतलब कि चुपचाप बैठे न रहो इस कायनात की तरह ख़ामोशी से सतत अपनी उस भूमिका का निर्वाह करो जिसके लिये आपको ये मानव का चोला दिया गया हैं

आज भारतीय पंचांग के सबसे पावन ही नहीं फलदायी महीने ‘सावन’ का प्रथम सावन सोमवार हैं जो मुख्य रूप से सृष्टि के पालक महाकाल त्रिकालदर्शी ‘भगवान् भोलेनाथ’ को समर्पित हैं और जो लोग भले ही सारा साल सोमवार का व्रत न करते हो वो भी इस महीने में पड़ने वाले हर सोमवार को उपवास करते जिससे कि भक्ति के पावन काढ़े से वो भी अपने अंतर्मन के कलुषों को मिटा शुद्ध हो जाये और फिर आने वाले दिनों में अधिक उत्साह से अपनी भावी योजनाओं को आकार दे सके और जो लोग व्रत नहीं भी करते तो वो भी इन दिनों कम से कम उनके मंदिर जाकर प्रभु के दर्शन कर अपने अंतर कोशों में ऊर्जा का भंडारण करते जो उसे आगे के दिनों में उसके कामों में सहायक बनती और वर्तमान में भी उसके गिरते मनोबल को साहस का ईधन देकर जिलाती इसलिये किसी भी आध्यात्मिक क्रिया को चाहे वो ध्यान, पूजन, कर्मकांड, जप, अभिषेक, रुद्री निर्माण, आरती, पाठ, मनन हो साधक की उपचारक विधि माना गया हैं जो उसकी शारीरिक या मानसिक रुग्णावस्था का इलाज़ कर उसे इस तरह स्वास्थयवर्धक बनाती हैं कि वो अपने भूत, भविष्य, वर्तमान सभी को बेहतर बना सकता हैं । आज के दिन केवल प्रकृति ही नहीं बल्कि सभी अपने-अपने तरीके से ‘भगवान शिव’ का ‘अभिषेक’ करते और सभी शिवालयों में विशेष पूजा-अर्चना होती इसके अलावा ‘श्रीरामचरितमानस’ का पाठ भी किया जाता और भक्त लोग पार्थिव पूजन कर रुद्री निर्माण करते जिसमें सभी लोग स्वेच्छा से सहभागी बनते और पुण्यलाभ उठाते क्योंकि ये सब न उसे परम शांति का अहसास कराते बल्कि उसकी आत्मिक शक्ति को भी बढ़ाते जिससे कि वो हर तरह के हालातों का सहजता से मुकाबला कर सके तो सबको इस बरसते गरजते प्राकृतिक संपदा और मानवीय संवेदनाओं को बढ़ाते सावन के मौसम और इसमें आने वाले जगतपिता शिवशंकर के आराध्य दिवस ‘सोमवार’ की मंगल कामनायें... इस कामना के साथ कि सब मिलकर सृजन की प्रक्रिया में हाथ बढ़ाये जिससे हमारी दुनिया थोड़ी और सुंदर हो जाये... :) :) :) !!!
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०३ अगस्त २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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