शुक्रवार, 7 अगस्त 2015

सुर-२१९ : "छंदमुक्त पाठशाला... आई लेकर भावों की हाला...!!!"

कहने को तो
आकाश-सी फैली
विशाल ये दुनिया हैं
रहते अनगिनत लोग भी यहाँ
जो अपरिचित एक-दूजे से
पर, तकनीक के महीन तारों
हवा में तैरते अदृशय सिग्नल से
जुड़ जाते एक ही पल में
ढह जाती अजनबियत की दीवारें
माना कि चंद बुरे लोग हैं
लेकिन ढूंढो तो अच्छे भी बहुत हैं
यूँ तो करने फ़िज़ूल टाइम-पास
या करने बकवास वार्तालाप
तकने वालों की भी हैं तादाद
फिर भी जिस किसी ने इस मंच की
उपयोगिता को पहचान लिया
उसने कुछ तो सार्थक कर्म किया ॥
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मित्रों...,

जिस तरह...
सिक्के के दो पहलु होते हैं_______‘हेड-टेल
व्यक्ति दो तरह के होते हैं_______’अच्छे-बुरे
किसी खेल के दो दल होते हैं_____‘पक्ष-विपक्ष
कर्म भी अलग-अलग होते हैं______‘सार्थक-निरर्थक
सोच के भी दो नजरिये होते हैं____‘सकारात्मक-नकारात्मक

उसी तरह इनका परिणाम भी दो ही तरह से हासिल होता हैं जयया पराजय’... जो कि किसी भी व्यक्ति के जीवनऔर जमानेको अपनी तरह से जानने एवं समझने के सलीके पर निर्भर करता  हैं और ये दृष्टिकोण उसके संस्कारों से स्वतः ही आकार लेता हैं तभी तो चंद लोगों को एक ही माहौल, एक समान अवसर और एक जैसा ही सब कुछ हासिल होने पर भी कोई तो सफ़लता के शिखर पर पहुंच जाता जबकि कोई दूसरा गर्त में गिर जाता क्योंकि वो उन सभी चीजों को उस तरह से इस्तेमाल नहीं कर पाता जैसा कि विजेताने किया तो ज़ाहिर हैं उसके सीने पर न केवल अपराजितका तमगा लटकेगा बल्कि उसे सदा नाकामयाबीका दंश भी झेलने मजबूर होना पड़ेगा क्योंकि उसने न केवल रब की दी गयी सबसे अनमोल शय जीवनको बेसबब ही गंवा दिया बल्कि  उसे दी गयी बेशकीमती नेमत समयका भी सही तरीके से उपयोग नहीं किया तो बेकार कामों का नतीज़ा भला किस तरह से जायज़ हो सकता हैं ।

इसलिये सिर्फ़ लक्ष्य का निर्धारण ही सफ़लता तय नहीं करता बल्कि हर किसी को ये ज्ञान होना भी जरूरी हैं कि उसने अपनी मंजिल को पाने के लिये जो पथ चुना हैं वो किस तरह हैं क्योंकि वो भले ही लंबा हो लेकिन यदि आप उस पर सत्य-ईमानदारी के अस्त्र-शस्त्रों के साथ कठिन परिश्रम, अनवरत चलते रहने, किसी हालत में न झुकने के संकल्प को लेकर चलना प्रारंभ करते हैं तो ठोस राहत भरी कामयाबी खुद चलकर करीब आ जाती हैं लेकिन जहाँ आपने शोर्टकटअपनाया और बेईमानी का कवच पहनकर, भ्रष्टाचार की तलवार से राह के शत्रुओं को मार गिराया तो भी कभी-कभी आपको कामयाबी मिल जाती हैं लेकिन वो स्थायी नहीं होती और न ही उसमें सुकून के पल होते हैं और अंत तो बेहद ही अप्रत्याशित अतः सिर्फ पनघट की नहीं बल्कि जीवन की डगरिया भी न सिर्फ़ बड़ी उबाड़-खाबड़ बल्कि कठिनाई भरी होती हैं जिसमें घुटने टेक देने वालों को कोई नहीं पूछता सिर्फ जीतने वालों की ही जय-जयकार होती हैं । 

आज का दौर जो तकनीकी युगके नाम से जाना जाता हैं जहाँ पर कि हर तरह के काम को चुटकियों में करने वाली बात को अमली जामा पहना दिया गया हैं अतः अब सब कुछ बैठे-बैठे एक क्लिक पर हाज़िर हो रहा हैं तो ज़ाहिर हैं कि ख़ाली दिमाग शैतान का घरभी तो चरितार्थ होना ही हैं ऐसे में जब लोगों के पास सुविधाओं के साथ-साथ फुर्सत के पल भी बढ़ गये हैं तो जिन लोगों का जेहन जिस तरह के विचारों से भरा हुआ हैं ये उसका उसी तरह से उपयोग करते हैं क्योंकि अब इंटरनेटके महाजाल में उससे जुड़े संपूर्ण ब्रम्हांड के उपयोगकर्ताओं के व्यक्तिगत आंकड़े भी उपलब्ध हैं जिसे चुराकर अपराधिक प्रवृति के लोग उनका दुरपयोग करते हैं और जिसके कारण इस समय के सबसे बड़े वैज्ञानिक चमत्कार आभासी दुनियाजहाँ पर कि रिश्ते-नातों को निभाने के लिये एक सामाजिक मंच प्रदान किया गया हैं कई तरह के अपराधों को अंजाम दिया जा रहा हैं तो ऐसे में जब कोई इसे सार्थक तरह से इस्तेमाल करे तो उसे सबके सामने लाना ही चाहिये और यही इसकी सार्थकता हैं ।

तारों के इसी जाल में तरगों से संचालित एक और छोटा-सा गुप्त कोना हैं जिस कि व्हाट्स एप्पके नाम से जाना जाता हैं पर, जब से हमने इस का दीदार किया तो जानकर अफ़सोस हुआ कि ज्यादातर लोग इसे केवल साधारण बातों का आदान-प्रदान या चित्रों को भेजने के लिये ही इसका उपयोग कर रहे लेकिन कुछ ऐसे भी जो कि अपने ही नहीं बल्कि दूसरों के भी हुनर को तराशने के लिये यहाँ ऐसे समूह का निर्माण कर रहे जिसके जरिये विशेषज्ञों को एक जगह जोड़कर उनके ज्ञान का विस्तार कर रहे हैं ऐसे ही एक समूह से जुड़ने का सुअवसर हमें भी मिला २९ अक्टूबर २०१४ को जिसका नाम हैं छंदमुक्त पाठशालाजो कि मध्यप्रदेशके सागरजिले में रहने वाले एक साहित्यिक प्रेमी अखिल जैन जीका शाहकार हैं जो कि उन्होंने आज से एक साल पूर्व आज ही के दिन याने कि ७ अगस्त २०१४ को बनाया और बड़े ही अनुशासित ढंग से उसका संचालन कर रहे हैं जहाँ पर कि एक तयशुदा समय पर ही रचना को प्रेषित किया जाता हैं जिसके लिये विषय या पंक्ति का निर्धारण भी उसके सदस्यों के द्वारा ही किया जाता हैं और उसके अलावा साहित्यिक परिचर्चा, हास-परिहास, धार्मिक त्यौहार, राष्ट्रीय पर्व को मनाने के साथ-साथ अन्य गतिविधियों का भी समय-समय पर आयोजन किया जाता हैं ।

आज उसी पाठशाला का पहला जन्मदिन हैं तो इस शुभ अवसर पर पाठशाला की तरफ़ से सभी सदस्यों को रिटर्न गिफ्टके रूप में उनके द्वारा ही लिखी गयी रचनाओं से सजी 'उत्कर्ष प्रकाशन' से प्रकाशित भावों की हालानामक काव्य-संग्रह का उपहार दिया जा रहा हैं  जिसका आवरण पृष्ठ मेरी एक प्रिय मित्र Arti Varma​  ने केवल मेरे एक फोन कॉल पर वो भी एक ही दिन में उसी तरह से डिजाईन किया जैसा कि मैंने सोचा था तो उनका <3 से शुक्रिया...   इसमें संग्रह में  अभी तो केवल इक्कीस रचनाकारों को ही स्थान दिया गया हैं लेकिन भविष्य में सभी को मौका दिया जायेगा और इसके अतिरिक्त कई अन्य योजनाओं को भी मूर्त रूप दिया जायेगा जो इस समूह के एडमिन जी की अथक मेहनत और सभी सदस्यों के निरंतर कुछ नया करने के प्रयासों का ही परिणाम हैं कि एक ही साल में उसने अपने आभासी दुनिया के सृजन को वास्तविक दुनिया में भी प्रकाशित करने का गौरव हासिल किया जो ये बताता हैं कि जहाँ पर कि अधिकांश लोग इसी व्हाट्स एप्पको महज़ मनोरंजन का साधन समझते हैं वही कुछ लोग यहाँ रहकर इस तरह का सार्थक कर्म कर रहे हैं और भीड़ से अलग कुछ अनूठा कर खुद को नहीं बल्कि दूसरे लोगों को भी लाभान्वित कर रहे हैं यदि मित्रों आप भी काव्य में रूचि रखते हैं और इस समूह का सदस्य बनाने के इच्छुक हैं तो इसके एडमिन-अखिल जैन जीसे उनके नंबर 09300934766 संपर्क कर सकते हैं जहाँ आप देखेंगे कि किस तरह देश ही नहीं विदेश तक से लोग जुड़कर अपनी प्रतिभा का परिचय दे रहे हैं... आज उसी छंदमुक्त पाठशालाकी पहली सालगिरह पर सभी सहभागियों को <3 से बधाई और मेरी ये तुच्छ शब्दांजलि... :) :) :) !!!     
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०७ अगस्त २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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