गुरुवार, 6 अगस्त 2015

सुर-२१७ : "गर, हो भी जाये इश्क़ नाकाम... न होना बदनाम...!!!"

प्यार में
कब मिला
हर किसी को
वफ़ा का सिला
फिर भी न समझे
प्रेमी कि भूल उसको
बेकार ही न करें
क़िस्मत से कोई गिला
बेहतर हो कि छोड़कर
प्रेम का पुराना सिलसिला
बना लो ज़िंदगी का
कोई ऐसा नया फलसफ़ा 
जो करें सबका भला ॥
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मित्रों...,

मणिकाने सुबह का अलार्म होते ही बिस्तर छोड़ा और काम में लग गयी... जल्दी-जल्दी नाश्ता रेडी कर उसे टेबल पर लगाने के बाद भी उसने देखा कि उसकी षोडशी बिटिया परिधिअब तक उठकर आई नहीं जबकि रोज तो इतने समय तक वो चिल्लाने लगती थी फिर भी ये सोचकर कि शायद, अभी तैयार न हो पाई हो तो दूसरे काम में लग गयी और अपने पति रोनितका लंच बॉक्स बनाने लगी इतने में रोनितब्रेकफ़ास्ट के लिये डायनिंग टेबल पर आये तो परिधिको न देखकर मणिकासे पूछने लगे तो जैसे वो एकाएक चौंक गयी कि अरे, अब तक तो वो घर के बाहर निकल जाती थी पर, आज तो कोई खबर नहीं और झट उसके कमरे में पहुंची तो देखा वो सो रही थी उसे आवाज़ लगाईं पर जवाब न पाकर जब नजदीक जाकर देखा तो लगा कि कुछ गड़बड़ हैं पर, जब उसे छुआ तो काँप गयी और मुंह से चीख निकल गयी क्योंकि वो एकदम ठंडी पड़ी हुई थी । उसकी चीख सुनकर रोनितदौड़कर कमरे में आया और उसने देखा कि मणिकाके हाथ में परिधिका खून से सना हाथ था जिसे लिये वो रो रही थी तो उन्होंने पास आकर स्थिति को समझा तो उनके हाथ बेड पर रखा हुआ एक लेटर आया जिसमें लिखा था कि---

मेरे प्यारे मम्मी... पापा...

आप दोनों मेरे लिये हमेशा से दुनिया के सबसे अच्छे मम्मी-पापा रहे हो और मुझे प्यार भी बहुत ज्यादा करते हो इसलिये जो भी संभव था आपने सब कुछ मेरे लिये किया लेकिन मैं आपके उस प्रेम और परवरिश की लाज न रख पाई तभी तो आप सबसे छुपाया कि मुझे एक लड़के से बेइंतेहा प्यार हो गया था पर, उसने मुझे धोखा दिया और आज उसने मुझे कहा कि वो किसी और को चाहने लगा जिसे मैं बहुत कोशिशों के बाद भी न तो इसे सह पा रही हूँ और न ही सब लोगों से कह पा रही हूँ इसलिये चुपचाप सबको छोड़कर जा रही हूँ ये जानते हुये भी कि आप दोनों इस सदमे को झेल नहीं पायेंगे फिर भी क्या करूं कुछ भी मेरे वश में नहीं बस, यही कहूँगी प्लीज सिर्फ़ आख़िरी बार अपनी इस लाडो को माफ़ कर दीजियेगा ।

आपकी गंदी बेटी
परिधि’...

उसे पढ़कर और सामने अपनी इकलौती लाड़ली बेटी को बेजान देखकर मणिकाबेहोश हो गयी ऐसे में रोनितने जैसे-तैसे खुद को और उसको संभाला डॉक्टर को फोन किया जिसने आकर जाँच की तो पता लगा कि उसकी बेटी ही नहीं बल्कि बीबी भी उसे छोड़कर इस दुनिया से चली गयी हैं और एक पल में ही हंसता-खेलता परिवार बर्बाद हो गया पर, इसे रोका जा सकता था यदि परिधिने अपने माता-पिता को सब कुछ बताया होता या ये भी मुमकिन न था तो कम से कम खुद को ही संभाल लिया होता और अपने परिवार के साथ-साथ अपनी शिक्षा का मान रख लिया होता तो शायद उस झटके से उबरना आसान होता पर, अमूमन कच्ची उमर के कच्चे-पक्के प्रेम का ऐसा ही अंजाम देखने में आता हैं जो एक साथ कई जिंदगियों को अपने शिकंजे में कस कोई बड़ी तबाही का कारण बन जाता  हैं ।

अतः ये समझना नितांत जरूरी हैं कि कभी-कभी प्यारमें किसी मोड़ पर टूटन का सामना करना पड़ सकता हैं तो ऐसे में यदि उस का कोई हल नज़र न आये तो भी इस तरह अपने जीवन को समाप्त कर लेना या उसके शौक में डूबे रहना या अपनी जीवन गाड़ी को थाम लेना कोई अक्लमंदी नहीं बल्कि जो हो गया गर, उसे बदल पाना संभव नहीं तो बेहतर हैं कि खुद को ही बदल ले बेशक इसमें कुछ वक़्त लगेगा पर, जब वो वक बीत जायेगा तो अहसास होगा कि उस मुश्किल वक्त से लड़कर आपने समझदारी का परिचय दिया... माना कि प्यारजिंदगी की जरूरत और रब की सबसे खुबसूरत नेमत हैं और प्रेमियों की साँसें इसी से चलती हैं तभी तो इसके बिना वो जी नहीं पाते पर, न जाने कितने लोग हैं जो इसके बिना भी जी रहे जिनको न मिली वो दूसरों को दे रहे और जिन पालकों ने हमें जनम दिया निःस्वार्थ प्रेम किया उनसे ये बेवफ़ाई तो निसंदेह अपने भगवान से ही दगा करना हैं... तो गर, कभी किसी के साथ ऐसा कुछ हो जाये तो वो अपनी जान देने या रोते रहने  की बजाय उसे दूसरों को जीवन देने के लिये समर्पित कर दे भले ही बेमन से ही सही बाद में ख़ुशी अपने आप ही मिलने लगेगी... केवल कोशिश करने की जरूरत हैं बाद में सब कुछ अपने आप ही होने लगेगा... और ये मायूसी के दिन भी सहजता से गुजर जायेंगे... तो याद रखना कि यदि मिले इश्क़ में नाकामी... तो कुछ भी ऐसा न कर कि हो बदनामी... जिंदगी तो हैं ही फ़ानी... आज नहीं तो कल हैं जानी... फिर क्यूँ व्यर्थ गंवानी... :) :) :) !!!
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०५ अगस्त २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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