रविवार, 30 अगस्त 2015

सुर-२४२ : "काव्य-कथा --- बालहठ...!!!"

___//\\___ 

मित्रों...,

काव्यकथा : बालहठ’ !!!
~~~~~~~~~~~~~~~~
बालपनजब किसी जिद पर अड़ जाता हैं तो फिर किसी की भी कहाँ सुनता हैं... वो तो बस, अपनी कहता हैं और हर हाल में उसे मनवा कर ही रहता हैं... फिर चाहे कोई भी क्यों न आ जाये उसे समझाने किसी की न चलती उसके आगे... न हो यकीन तो जरा एक नज़र यहाँ डाले---

●●●----------
देखकर...
उस गरीब बच्चे के
कटे हुये होंठ
नन्हा शौर्यबोल पड़ा---
मम्मा... मम्मा...
मेरे होंठ ऐसे क्यूँ नहीं ?’

सुनकर ये बात
माँ ने झट उसे गले लगाया
हौलें से कानों में बुदबुदाया---
फिर न कभी भी
ऐसा कहना मेरे लाल
भगवान् ने करें कि
किसी भी बच्चे का हो
ऐसा बुरा हाल।  

तभी भीतर से
उसके पिता आ गये
देखकर वो दृश्य
लगे उसे समझाने---
बेटा, ये कोई
सामान्य बात नहीं
बल्कि एक बीमारी हैं 
गर, उसके माता-पिता
उसका इलाज़ करवा सकते तो
उसके होंठ ऐसे न होते

फिर भी जब न वो माना
गाता रहां वही गाना 
तो वहीँ पलंग पर बैठी
उसकी दादी लगी जोर से कहने--- 
अरे, ये सब तो
जन्मों का हेर-फेर हैं 
तू न ऐसे जिद कर
मेरे लाडले मुन्ने
तुझमें न कोई भी खोट हैं
तू तो एकदम स्वस्थ हैं
वो अभागा तो भुगत रहा
अपने पिछले कर्मों का फल हैं

हर किसी ने 
अपनी-अपनी तरह से
उस मासूम को समझाया 
पर, बालहठ किसी भी तर्क से
उनकी बातों में न आया 
वो तो अपनी जगह
वैसे ही पैर पटक मचल रहा था
बार-बार एक ही बात दोहरा रहा था---
मुझे वैसे ही होंठ चाहिये...
मुझे वैसे ही होंठ चाहिये...
बस, वैसे ही होठ चाहिये...

यही तो हैं
निश्छल, निर्दोष
पवित्र मासूमियत
दुनियादार, छल-कपट
और हर प्रपंच से
कोसों दूर रहने वाली
जिसके आगे किसी की भी
कोई बुद्धिमानी न चलने वाली ॥  
----------------------------------●●●    
 
बच्चों की जिद से हर कोई हारा... चाँद को भी जमीन पर उतारा... अद्भुत हैं बचपन का हर एक नज़ारा... जाकर जो फिर नहीं आता दुबारा... जी लो उसे नन्हे-मुन्नों में मेरे यारा... :) :) :) !!!    
______________________________________________________
३० अगस्त २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
●--------------●------------●

कोई टिप्पणी नहीं: