शनिवार, 1 अगस्त 2015

सुर-२१३ : "दोस्ती करता सलाम... आया एक पैगाम...!!!"

खोली जब
अपनी आँखें तो
दिखे थे रिश्ते
कई अपने आस-पास
जो थे तो...
अपने भी और करीबी भी
लेकिन, जो मिला इनसे इतर
वो भले ही पराया था
पर, अपनों से भी बढ़कर
पाया उसको हमेशा
और धीरे-धीरे ये जाना कि
‘दोस्ती’ तो हैं रब की इनायत
इक रिश्ता आसमानी
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मित्रों...,

‘दोस्त’ / ‘मित्र’ / ‘यार’ / ‘सखी’ / ‘सहेली’ जो भी उसको नाम दे वो एक ऐसा प्यारा-सा ‘तोहफ़ा’ होता हैं जो हमें रब की तरफ से मिलता हैं हमारे अपने ही वज़ूद का विस्तार बोले तो कोई हम जैसा भी और हमसे अलग भी लेकिन कुछ ऐसा जिससे कोई पर्देदारी नहीं होती, जिससे गिले-शिकवे होकर भी दूर होने का मन न करें, जिसके रूठ जाने पर अपना आप ही बेगाना लगे, जिसके बिना हर शय अधूरी लगे, जिसके साथ हो तो समय का पता ही न चला और न ही बातें कभी खत्म हो, जो मिल जाये तो फिर किसी और चीज़ की कामना न रहे... एक ऐसा ‘रिश्ता’ जो न तो हम चुनते, न ही हम ढूंढते... वो तो हमें अचानक ही मिल जाता कभी अपने ही घर में तो कभी हमारे पड़ोस में तो कभी स्कूल में और कभी-कभी तो किसी पार्क या बाज़ार में टकरा जाते हैं उस अजनबी से जो उस वक़्त तो हमारे लिये एकदम अनजाना होता हैं लेकिन कुछ समय बाद इतना जाना-पहचाना हो जाता कि पता ही नहीं चलता कि हम उसे कभी जानते ही नहीं थे... वाकई ‘मित्रता’ को शब्दों में बयाँ कर पाना आसान नहीं ये तो ऐसा अहसास हैं जिसे केवल महसूस किया जा सकता हैं क्योंकि इसकी कैफ़ियत हर एक रिश्ते से जुदा होती हैं जो किसी होती तो बिना किसी जरूरत के हैं लेकिन एक दिन हमें पता चलता हैं कि वो तो हमारी जिंदगी की सबसे बड़ी जरूरत बन गयी हैं जिसके बिना हम खुद को मुकम्मल नहीं पाते... इसे किसी दिन से बांध पाना मुमकिन नहीं हम तो अपने दोस्तों के साथ हर दिन, हर पल बिताते हैं अब तो तकनीक ने सभी दूर बसे, पुराने बिछड़े साथियों से भी मिला दिया तो इसे और भी ज्यादा शिद्दत से महसूस किया जा सकता हैं... कल सुबह का सूरज उसी रूहानी रिश्ते को समर्पित हैं तो आज दिल में अपने सभी वास्तविक एवं आभासी दुनिया के दोस्तों का ही ख्याल आ रहा हैं जिनसे हम अपरिचित होने पर भी बड़ी बेतकल्लुफ़ी से अपने मन की बात कह लेते हैं जो और किसी भी रिश्ते में इतना सहज नहीं होता हैं... तो उसी वरदानी बिना मतलब के रिश्ते को <3 से सलाम... जिसके बिना लगता जीना मुहाल... सबको ‘दोस्ती के पर्व’ की पूर्व संध्या पर मेरी राम-राम... :) :) :) !!!   
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०१ अगस्त २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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