गुरुवार, 27 अगस्त 2015

सुर-२३९ : "ऋषिकेश मुखर्जी और मुकेश... देते प्यार का संदेश...!!!"


कला के साधक
जो करते अभिनव सृजन
चले भी जाये अगर
छोड़ कर ये जगत  
तो भी उनका वो काम
रखता उनको जीवंत
----------------------●●●

___//\\___ 

मित्रों...,

फ़िल्मी दुनिया कहने को भले ही ‘सपनों की नगरी’ कहलाती हो लेकिन वहां उन सपनों को साकार करने वाले तो इसी समाज में रहने वाले लोग होते जो कुछ अलग करना चाहते और आस-पास होने वाली घटनाओं को अपने मानस में रख उसे इस तरह से चित्रित करते कि हर किसी को वो अपनी ही कहानी लगती तभी तो निर्माता निर्देशक ‘ऋषिकेश मुखर्जी’ ने जब भी जो कुछ भी रचा वो हर देखने वाले को अपना ही लगा और आज भी उनकी बनाई फिल्मों का जादू उनके चाहनेवालों के दिल से नहीं उतरा और वो बार-बार उन चलचित्रों को देखना चाहता चाहे फिर वो हंसते-हंसते लोट-पॉट कर देने वाली ‘गोलमाल’ हो या सबको ख़ुशी बाँटने वाले ‘आनंद’ की कहानी या फिर दो दोस्तों की गाथा ‘नमक-हराम’ या फिर चंचल लड़की से एकाएक गंभीर बनने वाली ‘गुड्डी’ या फिर ‘मिली’ की प्यारी-सी दिल को छूने वाली संवेदनशील कोमल कहानी या फिर घर में काम करने वाले ‘बावर्ची’ का पूरे परिवार को एक करने का ड्रामा हर एक फिल्म ऐसी जो कहीं से भी फिल्म नहीं बल्कि हकीकत नज़र आती हैं इसलिये तो उनका असर आज तक उसी तरह जनमानस में व्यापत हैं जो अनेकों बार देखें जाने के बाद भी लोगों को अपने गिरफ्त में यूँ जकड़ता हैं जैसे कि उसने ये सब कुछ पहले कभी देखा ही न हो और वो मंत्रमुग्ध-सा फिर उन चलती-फिरती-बोलती तस्वीरों को गौर से देखने लगता हैं     

ऐसे ही गायक ‘मुकेश’ का गाया हर एक गाना हर किसी को अपनी ही पीड़ा का गायन लगता और वो उससे यूँ जुड़ जाता जैसे कि गाने वाले ने उसके ही दर्द को अपनी गायिकी से उभार दिया हो और फिर वो उस आवाज़ में डूब अपने दर्द को भूल जाता यही होता हैं किसी सच्चे कलाकार का पूर्ण समर्पण के साथ काम करना जो उसके जाने के बाद भी उसी तरह उसकी उपस्थिति को बनाये रखता जैसा कि उसके मोजौद होने पर होता था और आज भी यदि हम देखें तो पाते हैं कि आज की पीढ़ी अब भी उनके गाये गानों को उतनी ही शिद्दत से सुनती क्योंकि जो बात उनके गायन और उनके आवाज़ में हैं उन तरानों के अल्फाजों में वही कुछ बयाँ हो रहा हैं जो उसके साथ भी गुज़रा हैं हर किसी के अहसास तो एक जैसे ही होता और गम में वो भी वैसा ही महसूसता जैसा कि किसी भी दिल टूटने वाले को लगता और फिर ‘मुकेश’ तो इस तरह के गायन में सिद्धहस्त थे  और जब भी वे कोई गाना गाते तो सुनने वाले का कलेजा उसके हाथों पर आने लगता उसकी धुन पर उसके दिल की धड़कन ऐसी बजती जैसे कि कोई सितार जो मन के भीतर छिपी व्यथा को धीरे-धीरे मरहम लगटी और अंतर की पीड़ा चुपचाप ख़ामोशी के गहरे सागर में मौन अभिव्यक्त हो डूब जाती और उसके बाद सुनने वाले के मन का बोझ एकदम हल्का होता यकीं न हो तो ‘मुकेश’ का गाया कोई भी गीत सुनकर देखें राहत के झोंके अपने आप ही अपने आगोश में ले लेंगे और कुछ भी कहना शेष न रहेगा आप उसमें खो जायेंगे खुद को भूल जायेंगे

जब ऐसी दो कलाकार साथ-साथ काम करते तो फिर सोचने की बात ही नहीं कि किस तरह का कमाल वो कर जाते और ऐसा ही हुआ जब ‘ऋषि दा’ ने अपनी बनाई फिल्मों में ‘मुकेश’ से गीत गंवाये तो उन दोनों की अद्भुत प्रतिभा ने मिलकर इतिहास ही बना दिया जो सागर का मिलन था जिसने सृजन का महासागर बना दिया और हम उनके सृजन के मुरीद बन गये जब ‘आनंद’ में ‘राजेश खन्ना’ गाते ‘कहीं दूर जब दिन ढल जाये साँझ की दुल्हन बदन चुराए...’ तो फिर हम भी आँख बंद कर उस अनदेखे दर्द को महसूस करने लगते जिसे वो होंठो पर मुस्कान लिये अपने अंतर में छिपाये बैठा हैं ये होता हैं दो प्रतिभाओं का बेमिसाल संगम जो सदा-सदा के लिये अमर हो जाता तो आज जब उन दोनों की पुण्यतिथि हैं तो मन से स्वतः ही उनके लिये आभार के शब्द निकलते कि उन्होंने हमारी तन्हाई को महकाने के लिये हमें अनमोल तोहफें दिये जिसके लिये उनका मन से नमन... :) :) :) !!!     
______________________________________________________
२७ अगस्त २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
--------------●------------●

कोई टिप्पणी नहीं: