‘रोग’
होता नहीं हो तो
पाल भी लेते हैं लोग
बेवजह भी खुद को
बीमार बना लेते हैं लोग
जब तलक न मिले सुकूं दिल
को
बेखबर जिस्म की कैफियत से
यहां-वहां फिरते रहते लोग
फिर एक दिन...
किसी मर्ज के मरीज बन
दुनिया से कूच कर जाते हैं
लोग ॥
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मित्रों...,
अरे, ‘अनीता’ कितनी कमजोर
नज़र आ रही हो लगता ससुराल में बड़ा काम करना पड़ता जिसकी वजह से तुम अपना ध्यान नहीं
रख पाती यही बात हैं... अचानक मार्केट में अपनी पुरानी सहेली से मुलाकात होने पर
‘ख्याति’ कुछ रंज भरे लहजे में बोली ।
उसकी बात सुनकर ‘अनीता’ के
चेहरे पर फीकी-सी हंसी आ गयी फिर भी बात संभालते हुये उसने कहा---नहीं यार ऐसा तो
कुछ भी नहीं बस, न जाने क्यों आजकल मेरा किसी काम में मन नहीं लगता शायद, इसी वजह
से तुम्हें ऐसा लग रहा हो ।
कोई ‘गुड न्यूज़’ तो
नहीं... शरारत से ‘ख्याति’ ने पुछा तो ‘अनीता’ ने इंकार में सर हिलाते हुये कहा---
यार, तू बडे दिनों बाद मिल रही हैं न तो लगता तुझे पता नहीं मेरा सात महीने का एक
बेटा हैं ‘आदित्य’ और घर पर भी आराम ही करती हूँ पर, सेहत तो गिरती ही जा रही न
जाने क्यों ???
अरे, तू कितने आराम से कह
रही कि न जाने क्यों, यार पढ़ी-लिखी है डॉक्टर को दिखा कहीं ऐसा न हो कि कोई और बात
निकले आखिर कोई तो वजह होगी ?
हाँ यार तू सही कहती हैं
देखो जल्द किसी को दिखाती हूँ... ओके.. फिर मैं चलूँ बाद में मिलते हैं... ‘आदि’
इंतजार कर रहा होगा... तू अपना नंबर दे मैं कॉल करती हूँ तुझे बाद में... बाय...
बाय... उसका नंबर नोट कर दोनों ने जल्दी फिर से मिलने का वादा करते हुये एक-दूसरे
से विदा ली ।
‘अनीता’ वहां से आ तो गयी पर
अकेले में बैठे सोच रही थी कि ये अभी मित्र-हितैषी बडे मजे से हाल पूछते और मुफ्त में
बिना मांगी सलाह भी दे जाते पर, ये तो हम ही जानते कि कितनी भी खराब तबियत या कितनी
भी खतरनाक बीमारी क्यों न हो पर, एक मध्यमवर्गीय परिवार जिसमें सदस्य भी ज्यादा हो
भले ही सभी चीजों के लिये प्लानिंग कर चल ले पर, कोई भी ‘मेडिकल’ खर्चे के लिये अलग
से सेविंग नहीं करता और छोटी-मोटी बीमारी को तो किसी काबिल ही नहीं समझता फिर भी यदि
किसी वजह से अस्पताल जाना ही पड़े तो ‘डॉक्टर’ के कहे अनुसार पूरा इलाज नहीं करता कुछ
आधी-अधूरी दवाई खरीदकर तो कुछ अपने मन या दूसरों की कही-सुनी से अपना काम चलाता इस
पर भी यदि कोई गंभीर मर्ज हो तो जितनी किफ़ायत बनती वो करने की कोशिश करता क्योंकि उसे
अपनी ‘चादर’ और ‘जेब’ का हर किसी से बेहतर तरीके से पता होता लेकिन लोगों का क्या वो
तो फिर भी बड़ी आसानी से उसके उपर ‘कंजूस’ का लेबल लगा देता उफ़... ये कोई नहीं समझता
कि हमारे लिये इलाज़ ही नहीं बल्कि उसके साथ लेने वाली ख़ुराक को जुटाना भी कितना मुश्किल
होता ये तो बडे मजे से कह चले जाते कि यार खाओ-पीओ खुश रहो... ‘फल’ एवं ‘मेवे’ जरुर
लेना और हाँ ‘जूस’ पीना तो आज से ही शुरू कर दो यहाँ तो ‘सेव’ या ‘मेवे’ के भाव सुनते
ही कमजोरी और बढ़ जाती पर, इन्हें कौन समझाये जिनके पास किसी भी चीज़ की कोई कमी नहीं
और ‘डॉक्टर’ या ‘मेडिसिन’ जिनके लिये ‘स्टैट्स’ का मामला हो जबकि यहाँ तो सस्ते-से
सस्ता वैद्य-हकीम और कम-से-कम दवा पर, अधिकतम दुआ से ही जिंदगी का हर दर्द-तकलीफ झेला
जाता तभी तो अपनी बीमारी का पता होने पर भी जब से उसे पता चला कि इसमें खर्च अधिक हैं
उसने अपनी पीड़ा को जाहिर करना भी कम कर दिया क्योंकि उस पता हैं कि इसे वहन कर पाना
अभी उसके परिजनों के लिये आसान नहीं तो ऐसे ही काम चलाना पड़ेगा और तभी आदि के रोने
की आवाज़ सुन अपनी सोच को विराम देते हुये वो उसे खिलाने में लग गयी ।
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२५ अगस्त २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह “इन्दुश्री’
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