शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

सुर-२३३ : "हुनर तो हैं... पर, दिखाना नहीं आता...!!!"


भले ही तुम
बडे हुनरमंद हो
गर, आता नहीं तुमको
उसे दिखाना तो
बेहतर हैं वो तुमसे ज्यादा
जो रखते तो नहीं
तुम जैसी काबिलियत
फिर भी सफ़लता
उनके दर दस्तक देती
किस्मत भी हर राह पर खड़ी
उनका इंतजार करती
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मित्रों...,

वाह, ‘सुपरमेन’ के पास क्या ‘पॉवर’ हैं... हैं न ‘राहुल’ काश, हम भी उसकी तरह सब कुछ कर सकते यार... बडे अफ़सोस से टी.वी. पर मूवी देखते हुये छोटा ‘चेतन’ अपने दोस्त से ये बात कह रहा था इस बात से अंजान कि ईश्वर ने हर किसी को कोई न कोई खूबी बख्शी हैं हाँ, ये ओर बात हैं कि वो खुद ही उससे वाकिफ नहीं तभी तो ये सोचता कि जैसा अगला कर सकता हैं वैसा वो नहीं कर सकता तो साथ ही ये भी तो देखो न कि जो आप कर सकते हो क्या अगला भी कुछ वैसा करने की कूवत रखता हैं किसी मामले में हो सकता हैं कि दो लोगों में समान रुप से कुछ करने की क्षमता हो लेकिन फिर भी कुछ तो ऐसा होता हैं कि जो सिर्फ़ उसमें होता हैं लेकिन अमूमन सबको इसकी खबर होती नहीं और जिस तरह का हमारा माहौल या ‘सिस्टम’ हैं उसमें सबके पास इतनी फुर्सत या आकलन करने की वो तासीर नहीं जिससे कि वो ये जान पाये कि आपके भीतर ऐसा क्या हैं जो दूसरों में नहीं इसलिये तो अनेक प्रतिभायें निखरने से पहले ही दम तोड़ देती हैं और कई बार तो ऐसा भी देखने में आया हैं कि हमें ही हमारे उस विशेष गुण का पता नहीं जबकि दूसरा उसे बड़ी आसानी से न केवल भांप लेता हैं बल्कि बड़ी ही चतुराई से उसका इस्तेमाल भी कर लेता हैं और आश्चर्य की बात कि हमें खबर भी नहीं होती तभी तो चमचमाती ‘लक्ष्मी’ के आगे श्वेत वसना ‘सरस्वती’ छिपी रह जाती और जिसमें अंदर कोई भी हुनर नहीं वो बडे-बडे हुनरमंदों को अपने यहाँ नौकरी पर रखता क्योंकि उसे हुनर खरीदने का हुनर आता हैं जो अपने आप में ही एक ख़ास हुनर हैं जिसमें चंद ही माहिर होते जो अपनी तीक्ष्ण नजरों व जेहनी बुद्धिमता से लाखों की भीड़ में से भी उस बंदे को तलाश लेते जो उनके काम का होता और फिर उसका फायदा अपने मतलब के लिये उठाते

बचपन को गौर से देखो तो पता चलता कि हर एक बच्चा दुसरे से बेहद अलग हैं और ये अंतर केवल उसके बाहरी रूप-रंग का नहीं बल्कि फ़ितरत का भी होता तभी तो अपने हाव-भाव या कुछ हरकतों से वो उसे बड़ी सरलता से जाहिर कर देते पर, सब उसे तराशने की हिम्मत नही रखते तभी तो हर बच्चा ‘सचिन तेंदुलकर’ और हर बच्ची ‘साईना नेहवाल’ नहीं बनती क्योंकि ये कोई अचानक हुआ चमत्कार नहीं या ये एक-दो दिन की मेहनत का परिणाम नहीं बल्कि बालपन में ही उनकी अद्भुत प्रतिभा को समझकर उसे अवसर मुहैया कराने की कोशिशों का फल हैं पर, हम तो ये मान कर कि वो तो इसी काम के लिये पैदा हुये थे अपने आपको हर इल्ज़ाम से बरी कर लेते पर, जरा सोच देखें कि कहीं हमारे आंगन में ही तो कोई ‘कल्पना चावला’ या ‘विश्वनाथ आनंद’ नहीं खेल रहा जिसे हमने उसका बचपन का खेल समझकर नजरअंदाज़ कर दिया हो या फिर सोचा हो कि कौन इतनी मेहनत करें और कभी ये ख्याल भी चला आया कि क्या पता वो उस कसौटी पर खरा उतरे या नहीं और बस, इतनी ही बात से हमारा काम खत्म हुआ पर, ये भी तो सही हैं न कि चमत्कार कोई एक दिन में तो होते नहीं फिर क्यों उसके लिये वक्त पर परिश्रम की नियत किश्त जमा करने की हिम्मत नहीं दिखाते जिससे कि मियाद पूरी होने पर उसका आनंद उठा सके इसकी वजह कई बार हमारी मजबूरियां या हालात हो सकते हैं लेकिन ‘प्रतिभा’ तो किसी की चीज़ की मोहताज़ नहीं सिवाय उसको तवज्जो देने की और यही हम चूक जाते हैं जिसके लिये बाद में पछताते हैं जबकि बस, जरा सा प्रयास किया होता तो आज हमारा अपनी ही काबिलियत मन मारकर किसी और की गुलामी नहीं कर रही होती बल्कि हमारा ही मान बढाती पर, कभी ग़ुरबत तो कभी मज़बूरी और कभी हालात का हवाला देकर हम उसे बड़ी आसानी से कुर्बान कर देते हैं

कई दफा तो यूँ भी होता कि सामने वाले को ये इल्म भी होता कि उसके अंदर कोई ख़ास हुनर हैं पर उसे प्रदर्शित करने का हूनर ही उसे नहीं आता ऐसे में भी कई प्रतिभायें सामने आने से वंचित रह जाती क्योंकि केवल किसी गुण का होना ही वरदान नहीं बल्कि उसे सही तरीके से दर्शाना भी तो जरूरी हैं वरना, ‘कस्तुरी’ की खुशबू से अंजान ‘मृग’ की तरह भटकते ही रहेंगे हमेशा और कोई आकर हमें हलाल कर उसे निकाल कर ले जायेगा फिर ये भी कहेगा कि मुर्ख था ये तो, कमबख्त को ये भी नहीं पता कि इतनी कीमती चीज़ हैं उसके पास पर, हम तो उसके जैसे बेवकूफ नहीं तो फिर ऐसे मूर्खो को जीने का भी हक नहीं जो अपनी काबिलियत का इस्तेमाल करना ही नहीं जानते चलो मार कर फेंको इसको ताकि हम ही कुछ लाभ ले ले उसकी इस क्षमता का... चारों तरफ यही तो हो रहा हैं मेहनती ‘घोड़ा’ काम कर रहा हैं और ‘गधा’ आराम कर रहा हैं आखिर सज़ा तो मिलेगी न जो उसने अपने आपको पहचाना ही नहीं और अपने ‘टेलेट’ को फ़िज़ूल ही गंवाया तो फिर अगला क्यों ये गलती करें वो तो ‘स्मार्ट’ हैं न... आप के पास ‘स्मार्ट फोन’ हैं तो ये मत समझना कि आप भी ‘स्मार्ट’ हो गये क्योंकि जिस तरह संसाधनों का होना नहीं बल्कि उनका बखूबी सही तरीके से इस्तेमाल करना आना भी एक कला हैं उसी तरह अपने आप में किसी ज्ञान का होना ही काफ़ी नहीं बल्कि उसके माध्यम से अपने अंदर की प्रतिभा को तलाशना भी तो आना चाहिये और नहीं आता तो फिर रोना भी नहीं चाहिये कि मुझमे तो इतनी खूबियां हैं पर, किस्मत ने साथ नहीं दिया जबकि सच्चाई ये हैं कि हमने ही टेलेंट के उस ‘ब्लेंक चेक’ को ‘कैश’ नहीं किया तो अगली बार किसी के सर पर ठीकरा फोड़ने से पहले जरा इस पर विचार कर देखने शायद, किन्ही अनसुलझे सवालों के जवाब मिल जाये... और एकाएक ही आँख खुल जाये जिसे हमने ही मूंद रखा था जान-बूझकर... हैं न... :) :) :) !!!                          
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२१ अगस्त २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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