शुक्रवार, 28 अगस्त 2015

सुर-२४० : "राखी का त्यौहार आया... बहन को भाई याद आया...!!!"


हंसते-गाते
लड़ते-झगड़ते
खेलते-कूदते
साथ-साथ ही
वो बडे होते
फिर एक दिन
जुदा हो जाते
पर, एक दूजे को
कभी न भूल पाते
कि जुड़े लहू से
उन दोनों के नाते
वो पावन रिश्ते जो
भाई-बहिन कहलाते
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मित्रों...,

नन्ही ‘रावी’ बहुत खुश थी जब से उसने सुना था कि जल्द ही उसकी माँ अस्पताल से उसके लिये एक छोटा-सा गोल-मोल प्यारा ‘भैया’ लाने वाली हैं जो न सिर्फ़ उसके साथ खेलेगा-कूदेगा बल्कि हमेशा उसके ही साथ रहेगा और जैसा कि ‘दादी माँ’ कहती हैं कि भले ही वो दिखने तुझसे छोटा हो पर, सदा तेरी रक्षा करेगा तो इन सब सुनी-सुनाई बातों ने उसके मन में अपने अनदेखे-अनजाने भाई के प्रति एक अजीब कोतुहल पैदा कर दिया हैं और उसके दम पर तो उसने अभी से ही अपने दोस्तों को धमकी देना भी शुरू कर दिया हैं कि देखना जब मेरा भाई आयेगा तो तुम सबको कैसा मजा चखायेगा तुम लोग जो मुझे परेशान करते हो तुम सबसे गिन-गिनकर बदला लेगा तो उसके साथ खेलने वाले उसके दोस्तों को भी उसका बेसब्री से इंतजार था देखते-देखते वो चार-पांच दिन भी बीत गये और आज तो उसकी ‘मम्मी’ के घर आने का दिन था तो उसकी ख़ुशी देखते बनते थी कभी यहाँ तो कभी वहां दौड़ी भागी फिरती और कभी अपने खिलौनों में से सबसे प्यारा खिलौना अपने भाई को देने ढूँढने लगती तो कभी सारे खिलौनों को छिपा देती कि कहीं वो आकर उन सभी पर अपना कब्जा न जमा ले और अभी वो उसी चहल-पहल में लगीं थी कि बाहर कार के रुकने की आवाज़ आई तो सब कुछ भूलकर वो बाहर दौड़ी तो सामने मम्मी की गोद में एक छोटे-से बच्चे को देखकर वहीँ थम गयी और सोचने लगी जो ख़ुद इतना जरा-सा हैं वो भला किस तरह से उसके साथ खेलेगा या उसकी रक्षा करेगा उसे तो खुद ही उसे सबसे बचाना पड़ेगा

जब उसने अपने उस गोलू-मोलू रुई से कोमल नाज़ुक नरम भैया को छुआ तो उसे गुलाब की पंखड़ियों जैसा मखमली अहसास हुआ और वो बोली मम्मा ये तो एकदम फूलों जैसा सॉफ्ट-सॉफ्ट हैं कितना गुलाबी एकदम गुलाब के फूल जैसा आखिर क्यों न हो मेरा राजा भैया जो हैं... मैं तो इसे गुलाब ही कहूँगी तो उसकी बात सुनकर सब हंसने लगे और इस तरह एक छोटी-सी बहन ने अपने भाई को न सिर्फ़ अपनी तरफ से एक नाम दे दिया बल्कि खुद ही उसके प्रति अपनी जिम्मेदारी भी स्वयं तय कर ली और अब वो जितना उससे बनता उसका ध्यान रखती उसके रोने पर खुद भी रोने लगती तो उसकी किलकारी सुनकर खिलखिलाने लगती और इस तरह उन दोनों का दोस्ताना शुरू हुआ और धीरे-धीरे उसका पिद्दी सा भाई खा-पीकर अच्छा-ख़ासा छोटा सा सूमो पहलवान टाइप बन गया और उसे ही तंग करने लगा वो कभी उसके बाल खिंचता तो कभी उसके खिलोने तोड़ देता या कभी उसे मार भी देता पर, जब उसने अपने आपको उसकी बड़ी बहन नहीं बल्कि उसकी सरंक्षिका मान लिया था तो फिर किस तरह से उसकी किसी भी ज्यादती का बुरा मानती वो जो खुद ही छोटी-सी गुड़िया थी एक नन्हे से बच्चे के आने पर एकदम से बड़ी अम्मा बन गयी थी आखिर उसे ‘दीदी’ कहने वाला जो कोई आ गया था और इस तरह उन दोनों का बचपन हंसते-खेलते गुजरने लगा जहाँ पता ही नहीं चला कि कब छोटा भाई बड़ी बहन का रक्षक बन गया और कब उसकी दीदी भी उसके  साये तले खुद को महफूज़ समझने लगी ये रहस्य तो आज भी उन दोनों की समझ से परे हैं लेकिन माँ को पता हैं कि जिस दिन उसकी बेटी को कॉलेज में किसी लड़के ने छेड़ा था उसी दिन उसका भाई उसके सामने ढाल बनकर खड़ा हो गया था

अब जबकि ‘रावी’ शादी कर ससुराल आ गयी तो आज राखी के त्यौहार के एक दिन पहले न जाने क्यों हमेशा की तरह उसकी आँखों के सामने वही सब कुछ उसी तरह घूम रहा था जैसे कि ये कल की बात हैं शायद, ये इस सावन का ही असर हैं जो हर ‘बहन’ को उसका ‘भाई’ और हर ‘भाई’ को उसकी ‘बहन’ की याद दिला देता हैं और फिर सब कुछ भूलकर वे आतुर होकर एक-दूसरे से मिलने दौड़े चले आते... यही तो हैं वो रिश्ते जो कच्चे धागे से बंधकर ओर मजबूत होते जाते... ‘राखी’ से पहले ही बहन को भाई के पास ले आते... रिश्ते की अहमियत अहसास कराते... :) :) :) !!!
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२८ अगस्त २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री

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