रविवार, 2 अगस्त 2015

सुर-२१४ : "आभासी दुनिया में दोस्तों का जाल... न बने जी का जंजाल...!!!"


आँख की तरह
ताना-बाना दोनों में
एक हंसे तो दूजा भी
मुस्कुराने लगता
गर, रोये एक तो
फिर दूसरा भी कैसे
अपने आंसुओं को रोके
ऐसा ही होता हैं
दो दोस्तों के बीच नाता
जिससे दोनों बंधे होते
साथ-साथ ही जीवन जीते
इस तरह से सच्चे दोस्त
हर दिन, हर पल, हर क्षण  
‘दोस्ती का पर्व’ मनाते
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मित्रों...,

‘फ्रेंडशिप डे’ भले ही विदेशी सभ्यता की देन हैं लेकिन इसकी मान्यता हमारे यहाँ भी सदियों पूर्व से हैं केवल मनाने का तरीका और अंदाज़ जुदा हैं क्योंकि हम भारतीय किसी भी रिश्ते-नाते या अहसास को किसी विशेष दिन के नाम कर निश्चिंत नहीं रहते बल्कि उसे सदा दिल की गहराइयों से महसूस कर हमेशा उसकी अनुभूति से लबरेज रहते हैं लेकिन अब जबकि वैश्वीकरण के दौर में केवल सरहद ही नहीं सात समंदर पार हो या फिर आसमान के परे हर दूरी मिट गयी तकनीक ने लोगों को तोड़ने वाली मध्य की दीवारें तोड़कर रख दी ऐसे में न केवल ‘भाषा’ या ‘मजहब’ के बंधन की विवशता से भी हमने निजात पाई बल्कि हर मुल्क के बाशिंदे से खुद को जोड़ने वाली ‘इंटरनेट’ की अदृश्य कड़ी पाई जिसकी तरंगे जीवन के लिये जरूरी ‘ऑक्सीजन’ की तरह वातावरण में बिखरी होती हैं जिनसे हम साँसों की ख़ुराक पाते और अपने आप को जीवित रखते हैं तो अब हमारी मित्रता का दायरा भी बढ़ा हैं जो पहले केवल अपने आस-पास तक ही सिमित था लेकिन अब संपूर्ण विश्व में किसी से भी दोस्ती करना बेहद आसान हो गया हैं केवल एक क्लिक पर हम दुनिया के किसी भी कोने में बैठे किसी भी अपरिचित बंदे को न सिर्फ़ मित्रता का निवेदन प्रेषित कर सकते हैं बल्कि उसे अपनी मित्रता के बंधन से भी जोड़ सकते हैं लेकिन ये केवल एक औपचारिकता मात्र हैं जिसमें दो अजनबियों का केवल रस्मी रिश्ता बनता लेकिन वे सचमुच के दोस्त तभी बन पाते जब उनके बीच धीरे-धीरे वैचारिक आदान-प्रदान से पसंद-नापसंद एवं अन्य विषयों पर आपसी संतुलन का पुल बनता जिससे अपरिचय का दौर खत्म होकर वो ‘आभासी रिश्ता’ जो पहले केवल एक ‘आभास’ मात्र था अब वास्तविकता का जामा पहन लेता और हम उसके विषय में विश्वास से कह पाते कि वो हमारा बहुत अच्छा दोस्त हैं जब तक ऐसा नहीं हो जाता ‘सोशल मीडिया’ पर ‘दोस्ती’ केवल अपनी मित्रता सूची को बढ़ाने का जरिया मात्र हैं कागज़ के फूलों जैसे दोस्त तो मिल जाते लेकिन उनसे सुरभित खुबसुरत जीवंत बगिया न बन पाती जो मन को सुकून जीवन की प्राणवायु देती

इसलिये इस आभासी दुनिया में भी यदि हम ‘दोस्ती’ के रिश्ते को सार्थकता देना चाहते तो भले ही कम दोस्त बनाये लेकिन वो ऐसे हो जो भीड़ में गुम न हो जाये या केवल हमारी ‘पोस्ट’ को ‘लाइक’ या ‘कमेंट’ कर उसकी लोकप्रियता में इज़ाफा करने वाले पाठक बनकर न रह जाये और हमें खबर ही न हो कि हमारी सूची में कितने लोग हैं और उनके नाम क्या-क्या हैं क्योंकि पहले जहाँ हम एक छोटी-सी नदिया में गोता लगाते थे और हर किसी को पहचानते थे पर, अब एक ‘महासागर’ में अनगिनत लोगों के बीच तैर रहे हैं जहाँ हमारी एक छोटी-सी भूल हमें किसी खतरनाक शिकारी का निवाला बना सकती क्योंकि ‘फिशिंग’ भले ही अब तक नदी में चारा डालकर मछली पकड़ने का एक जरिया मात्र था पर, अब वो ‘अंतरजाल’ में भोले-मासूम तकनीक से अनजान लोगों को अपने फंदे में फंसाने का भी बेहतरीन माध्यम बन चुका हैं जी हाँ, ‘फिशिंग’... अब ये एक ‘तकनीकी शब्दावली’ का हिस्सा हैं जिसके द्वारा कई शातिर तकनीक के गूढ़ जानकार जाल बिछाकर बैठे रहते हैं जो हमें नज़र नहीं आते पर, हमको न सिर्फ देख पाते बल्कि अपने व्यूह में घेरने के लिये पूरी तरह से तैयार होकर आते क्योंकि अब ये ‘सोशल मीडिया’ एक ऐसा स्थान हैं जहाँ पर कि बड़ी आसानी से कोई भी अपरिचित आपका मित्र बन जाता और आपको पता ही नहीं चलता वो कब आपको ठग कर चला जाता इसलिये ‘मित्रता दिवस’ सबके साथ मनाये लेकिन जो मित्र का मुखौटा पहनकर आये हैं उनसे सावधान हो जाये... और इस तरह के बहरूपियों से भी आज के दिन अनुरोध हैं कि जब आप ‘फ्रेंड’ बन रहे हैं तो फिर ‘दोस्त’ बनकर दगा न करो वरना, कोई दोस्ती का ऐतबार न करेगा... याद रखो ‘मित्रता’ का रिश्ता ‘संजीवनी बूटी’ की तरह अनमोल ही नहीं बल्कि ‘पारसमणि’ सा दुर्लभ नगीना भी हैं जिससे न जाने कितने लोगों को जिंदगी मिल रही... कितनों की जिंदगी बदल भी रही... तो आप भी ख़ुद को बदल ले और मित्रता के रंग में रंगकर निःस्वार्थ बन जाये... यही इस दोस्ती के पर्व की  सार्थकता भी होगी कि इसने आपके भीतर की कलुषता को मिटा आपको खरा सोना बना दिया... एक सच्चे दोस्त से आपको मिला दिया... जिसने बिना अब तक आपने बेकार जिया... तो दिल से कहो सभी दोस्तों का शुक्रिया... जिसने ‘दोस्ती’ शब्द को अर्थवान किया...  :) :) :) !!!
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०२ अगस्त २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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