मंगलवार, 4 अगस्त 2015

सुर-२१६ : "हर दिल अजीज सदाबहार... 'हरफनमौला किशोर कुमार'....!!!"

मेरे दादा-दादियों
मेरे नाना-नानियों
मेरे भाई-बहनों
तुम सबको खंडवे वाले
‘किशोर कुमार’ का राम-राम...!!!

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मित्रों...,

कोई भी मंच हो जब उस पर अपनी दिल क्या रूह तक को छू लेने वाली आवाज़ के मालिक अपने समय के सबसे लोकप्रिय गायक ‘आभास कुमार गांगुली’ याने कि हम सबके प्यारे ‘किशोर कुमार’ अवतरित होते तो अपने सभी प्रशंसकों से मुख़ातिब होने के लिये उनके लबों पर अपने अलहदा अंदाज़ में उनके द्वारा ही बनाया गया यही प्यारा-सा संबोधन आता जो वहां के माहौल को एकदम गर्मजोशी से भर देता उस पर उनकी मोह लेने वाली अदाकारी हर किसी को अपना दीवाना बना लेती फिर क्या जो भी उस वक़्त वहां उपस्थित होता चाहे मंच पर या फिर श्रोताओं के मध्य सब झूमने लगते वाकई ये एक अद्भुत हुनरमंद हरफ़नमौला आकर्षक व्यक्तित्व के धनी एक ऐसे कलाकार थे जिन्हें हर कोई हर रूप में पसंद करता था और आज भी यदि ‘गूगल’ पर देखा जाये तो उनसे संबंधित सर्वाधिक जानकारी उपलब्ध हैं जो उनके मुरीदों ने अपने दोस्तों से साँझा करने के लिए ही वहां प्रेषित की हैं जिसमें उनके गीत-संगीत के अलावा उनसे जुड़े रोचक किस्सों का भी बखान हैं जो उनके प्रति लोगों की जिज्ञासा का शमन तो करती ही हैं साथ-साथ उनकी जनप्रियता को भी दर्शाती हैं जिसे देखते हुये ही ‘गूगल’ ने सबके पसंदीदा सर्वाधिक सुने जाने वाले इस बेमिसाल प्रतिभाशाली कलाकार को अपनी तरह से सलाम करने के लिये ‘डूडल’ तक बनाया इसके अतिरिक्त आप ‘एफ़.एम. रेडियो’ के किसी भी चैनल को लगाइये आपको वहां पर ‘किशोर कुमार’ का कोई न कोई गाना सुनाई दे जायेगा जो स्वतः ही ये ज़ाहिर करता कि आज भी हर संगीत प्रेमी उनको भूला नहीं तभी तो अपने ‘मोबाइल’ या ‘आईफ़ोन’ में भी उनके गाये मधुरतम कर्णप्रिय गीतों का खज़ाना लिये घूमता जो उनके मन के किसी भी मौसम को अपनी पुरसुकून दिलकश आवाज़ से यूँ बदल देता कि वो एकाएक ही उस रंग में रंग जाता यही वजह हैं कि इस समय जबकि एक से बढ़कर एक नये-नये गायक और आधुनिकतम तकनीक का ऐसा जमाना कि जो किसी भी तरह की आवाज़ को किसी भी तरह से पेश कर दे तो भी सबसे अधिक उनके तराने ही ‘रीमिक्स’ कर युवाओं को परोसे जाते जो दर्शाते हैं कि उस आवाज़ में कोई ऐसी बात हैं जो सिर्फ़ उस गले में ही बसती थी जिससे अब तक कोई उबरा नहीं हैं बल्कि जब-जब भी उसे सुनता उसकी स्वर लहरियों में डूब जाता हैं फिर से दुबारा उसकी गहराई तक पहुँचने के लिये जिसका कोई अंत न पहले ही मिला था और न फिर कभी मिल सकता हैं

‘किशोर कुमार’ के अंदर अद्भुत काबिलियत समाई थी और उस पर उतने ही जोशीले एवं लबालब ऊर्जा से भरे हुये तभी तो उनके साथ ‘रिकॉर्डिंग’ करने वाले सह-फ़नकार तक ये बताते हैं कि वो किसी भी तरह का मुंह बनाये बगैर बिना थके बिना रुके स्वर को अलग-अलग तरह से बदलते हुये एक गाने को कई तरीके से गा लेते थे जिसके कारण उनके साथ बोरियत का भी अहसास नहीं होता था और एक ही दिन में वो एक साथ कई गानों के लिये न सिर्फ़ ‘रिकॉर्डिंग’ करवा देते थे बल्कि मंच पर जाकर भी प्रस्तुति देने में पीछे नहीं हटते थे उनकी इस बहुमुखी क्षमता ने अपनी गायिकी के उतार-चढ़ाव से कई अभिनेताओं को ‘सुपर सितारे’ बोले तो ‘महानायक’ का दर्जा दिला दिया और ये उनकी अपनी ही तरह से गाने की कोई ख़ास जादूगरी हैं जिसकी वजह से वो जिस किसी के लिये पार्श्वगायन करते उसकी ही आवाज़ महसूस होते और हर नायक उसे अपनी आवाज़ बनाने लालयित रहता तभी तो उस समय के शीर्ष अभिनेता चाहे वो ‘देव आनंद’ हो या ‘राजेश खन्ना’ या फिर ‘अमिताभ बच्चन’ उनकी ही सिफ़ारिश करते और उस वक्त उनका पारिश्रमिक भी आसमान की ऊंचाइया छूता था क्योंकि उनका किसी फिल्म में गाने के लिये राजी हो जाना ही सफ़लता की गारंटी माना जाता था ये तो उनकी बहुमुखी बेमिसाल प्रतिभा का केवल एक ही पहलू हैं पर, उनको तो ईश्वर ने कई तरह की कला में पारंगत कर भेजा था तो वो किस तरह केवल एक ही कला में बंधकर रह जाते तो उन्होंने अभिनय, निर्देशन, संगीत जैसी हर एक विधा में न केवल अपने आपको प्रस्तुत किया बल्कि इस तरह से कि उनके चाहने वालों ने उनको हर रूप में पसंद किया और आज भी उनकी अभिनीत चंद फ़िल्में ऐसी हैं जो न सिर्फ़ हमको गुदगुदाती हैं बल्कि उनका निभाया गया किरदार भी मन में समा जाता क्योंकि वे जमीन से जुड़े संवेदनशील व्यक्तित्व थे जो अपनी जन्मस्थली मध्यप्रदेश की एक छोटी-सी जगह ‘खंडवा’ को ताउम्र नहीं भूले और सदा उसका गुणगान करते रहते थे और भले ही ‘मुंबई’ आकर बस गये थे लेकिन ये चकाचौंध उन्हें लुभाती न थी और वे हमेशा कहा करते थे कि “खंडवा जायेंगे, दूध-जलेबी खायेंगे’ वे ‘स्वपन नगरी’ से अपने गृहनगर लौट जाना चाहते हैं और यही उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा में भी यही व्यक्त किया था इसलिये जब १३  अक्टूबर १९८७ को वो असमय ही इस दुनिया से चले गये तो वहीं उनका अंतिम संस्कार किया गया और इस तरह आज के दिन ४ अगस्त १९२९ को जिस भूमि से उपजे अंततः उसी में भस्मीभूत हो गये पर, जाते-जाते हम सबके लिये अपनी अदाकारी और गायिकी के अनगिनत नगीने छोड़ गये जिनसे अपनी  तन्हाई को हम महफ़िल बना सजा लेते और उस महान हरफनमौला किरदार को तहे दिल से शुक्रिया और जन्मदिन की मुबारकबाद देते... :) :) :) !!!
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०४ अगस्त २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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