सोमवार, 17 अगस्त 2015

सुर-२२९ : "आया सावन सोमवार... पूजे शिव परिवार...!!!"


ऊंचे पर्वत पर
माँ का डेरा
ऊंचे हिमालय पर
आदि शंकर का बसेरा
नाम लेकर शिव-शक्ति का
होता भक्तों का सवेरा
एक करें पालन
दूजा करें निवारण
यूँ करते दोनों मिलकर
सृष्टि का संचालन
कर जगत पालक की उपासना
सब करते पूरण अपनी मनोकामना
--------------------------------------------●●●

___//\\___ 

मित्रों...,


जगतमाता और जगतपिता का अपना खुद का परिवार कहने को तो तो बेहद छोटा हैं जो कि ‘छोटा परिवार, सुखी परिवार’ का यथार्थ चित्रण प्रस्तुत करता हैं लेकिन यदि सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाये तो ये पूरा संसार ही उनका अपना कुटुंब हैं जहाँ नाना भांति के लोग मिलकर एक साथ रहते हैं और अपनी उपासना से उनको प्रसन्न करने की हर मुमकिन कोशिश करते हैं तभी तो वो भी केवल उनकी सच्ची श्रद्धा भक्ति देखकर ही उनके मन की हर शुभ कामना को पूर्ण करते हैं जिसके लिये तरह-तरह के अनुष्ठान या कठिन नियम पालन करने की जरूरत नहीं बस, आत्मा का स्वच्छ दर्पण ही काफ़ी हैं जिसमें उसकी मनोवृति की निर्मल छवि देखकर ही अंतर में बसा देवता उसकी इच्छा को समझकर उसे वैसा ही फल देता हैं जिसे अक्सर नादान मानव समझ नहीं पाता और कभी-कभी उसके दिये हुये कर्म फल पर शंका करता हैं लेकिन अंततः देर-सबेर उसे ये अहसास हो ही जाता हैं कि वो उपरवाला जो भी करता हैं हमेशा अच्छा ही करता हैं केवल हमारी सोचने की सीमित काबिलियत के कारण हम उसका उस तरह से आत्म-विश्लेषण नहीं कर पाते तभी तो जब भी उनके करीब जाते तो स्वतः ही ये आत्मबोध होता कि उनके चरणों से दूर रहकर अब तक अपना जीवन व्यर्थ ही गंवाया पर फिर उस दायरे से बाहर आते ही चंचल मन पुनः दुनियावी जंजालों में उलझ जाता और वो क्षण भंगुर ख्याल पानी के बुलबुले की तरह तुरंत ही फट से फूट जाता इसलिये ही शायद, हमारे बुजुर्गों ने भी कुछ ऐसी परम्परायें बनाई कि जिससे हम धर्म-अध्यात्म की अदृश्य शक्ति से अपने आपको ‘रिचार्ज’ कर फिर से दुगुने उत्साह और नवीन ऊर्जा से भरकर अपने कामों में व्यस्त हो सके क्योंकि वैसे भी ये चातुर्मास जो कि बारिश के होते हैं उनमें हमारी कार्य क्षमता मंद हो जाती हैं पर, इस तरह के धार्मिक आयोजन से मन में उत्साह का झरना बहने लगता हैं जो हमें हमारी सभी आवश्यक कर्मों के लिये जरूरी ऊर्जा प्रदान करता हैं

कैलाश पर्वत पर रहने वाला शिव परिवार बेहद अद्भुत हैं और इतने विषम स्वभाव वाले परिजनों को संभालना सिर्फ़ और सिर्फ़ माँ पार्वती के ही बस की बात हैं तभी तो उन्हें ‘अन्नपूर्णा’ भी कहा जाता हैं जो अपनों का ही नहीं बल्कि पूरे संसार का पालन-पोषण करती हैं और उन सबके मनोविनोद का भी आनंद लेती हैं जहाँ कभी उनके लाल ‘कार्तिकेय’ अपने छोटे भाई की शिकायत करते उनसे गुस्सा होते नजर आते जिसे मनाने माँ जतन करती तो कभी अष्टविनायक ‘गणेश’ को अपने बडे भाई से कोई चुहल सूझती जिससे वो नाराज हो जाते जिसे देख-सुन वो उनका निदान करने की कोशिश करती ये तो हुई उनके पुत्रों की बात लेकिन पतिदेव भी कहाँ इतने सहज-सरल जैसा कि सब कहते हैं तभी तो ‘भोलेनाथ’ कभी अपनी तप साधना में इतने खो जाते कि अपनी सुध-बुध भी भूल जाते तब वे ही उन्हें उनकी ध्यान निंद्रा से जगाती और कभी भोले बाबा अपनी धुन में मगन होते तो ख़ुशी से नाचने लगते और यदि क्रोध में आ जाये तो तीसरा नेत्र खोल सृष्टि का संहार करने खड़े हो जाते ऐसे में माँ पार्वती ही उनके क्रोध का शमन कर उन्हें मनाती तो कभी वो भी अपनी लीलाओं से उनका मनोरंजन करते इस तरह वे दोनों आपस में हास-परिहास करते जिनका उल्लेख कई कथाओं में होता जो ये बताता कि किस तरह से मिल जुलकर अपने घर एवं घरवालों को संतुष्ट किया जा सकता ताकि रिश्ते बने रहे चलते रहे... ये सब भले ही मानव मन की कल्पना हो पर, इनसे जो नैतिक शिक्षा मिलती वो बड़ी प्रेरक होती तभी तो हम बार-बार इनको दोहराते समय-समय पर आने वाले उत्सव मना उनके प्रति अपनी भावना का प्रदर्शन करते तो आज सावन के तीसरे सोमवार पर ऐसी ही किसी प्यारी-सी कल्पना से निकली अभिव्यक्ति द्वारा देवों के देव महादेव को श्रद्धा सुमन अर्पित करती हूँ... ॐ नमः शिवाय... :) :) :) !!!
______________________________________________________
१७ अगस्त २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
--------------●------------●

कोई टिप्पणी नहीं: