शनिवार, 8 अगस्त 2015

सुर-२२० : "लघुकथा : पंचिंग बैग...!!!"

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मित्रों...,


कॉलबेल की आवाज़ सुनते ही ‘रीना’ ने दौड़कर दरवाजा खोला तो सामने ‘कपिल’ को परेशान खड़ा पाया अभी वो उससे अचानक यूँ चले आने की वजह पूछती कि वो घर में घुसते ही चिल्ला पड़ा आखिर, तुमको कब सलीका आयेगा, अक्ल तो खैर तुम्हारे खानदान में किसी को हैं नहीं लेकिन कम से कम इतनी उम्मीद तो कर सकता हूँ कि पढ़ी-लिखी हो तो घर में न सही स्कूल में तो कोई कायदा सीखा ही होगा लेकिन लगता हैं अब इस उम्मीद का दामन भी छोड़ना पड़ेगा... आखिर हुआ क्या हैं... बमुश्किल ‘रीना’ की जुबान से निकला ?

तुम तो मुझे एक दिन नौकरी से निकलवा कर ही रहोगी अरे, मैंने तुमसे कहा था कि जिस फाइल पर ‘एनुअल रिपोर्ट्स ऑफ़ मेहता एंड संस कंपनी’ लिखा हैं उसे कार में रखवा दो और पता हैं तुमने कौन-सी फ़ाइल रखी ये ‘चिंटू’ की हॉस्पिटल की रिपोर्ट्स पता हैं मुझे मीटिंग में सबके सामने कितनी शर्मिंदगी झेलनी पड़ी और ‘रीना’ उसे बताना चाहती थी कि आज उसे ‘चिंटू’ को टीका लगवाने अस्पताल ले जाना था तो उसने वो फ़ाइल भी निकाली थी पर, सुबह की भागमभाग की वजह से ये गडबड हो गयी लेकिन उससे पहले ही चटाक... से एक तमाचा पड़ा ‘रीना’ के गाल पर, वो संभल पाती कि ‘कपिल’ धड़धडाता अंदर गया और अपनी काम की चीज़ ढूंढकर घर से निकल भी गया उतने में ही उसका पांच साल का बेटा ‘चिंटू’ पड़ोस से खेल कर आया तो ‘रीना’ ने उसे इतनी देर तक दूसरे के घर खेलने की बात का बहाना कर बेवजह ही डांटते हुये एक चपत लगा दी और वो बेचारा बिना कुछ समझे माँ को देखता ही रह गया    
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०८ अगस्त २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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