मंगलवार, 18 अगस्त 2015

सुर-२३० : "जिसने न किया साहस... वो कैसे छुये आकाश...!!!"


कभी जी करता
बनकर पतंग
छू लूँ आसमां
तो कभी चाहता
कि चिड़िया की तरह
उड़ती फिरूं यहां से वहां
और कभी तितली जैसे
मंडराती रहूँ हर एक फूल पर
तो कभी उठती ये ख्वाहिश
छा जाऊं बनकर इंद्रधनुष
पर, फिर सब कुछ भूल
बंद कर घर और मन के दरीचे
जुट जाती उन सभी कामों में
जिनसे साकार हो सके
मेरे अपनों के सारे के सारे सपने
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मित्रों...,

शायद ही कोई ऐसा इंसान हो जिसके मन में कोई भी तमन्ना न हो पर, कितने हैं जो उनको पूरी कर पाते केवल वही जो करते हौंसला जोखिम लेने का बाकी तो किसी न किसी को दोष देकर अपनी नाकाबिलियत को उसी के सर पर थोपकर ख़ुद को आत्मग्लानि से मुक्त कर लेते पर, अपनी अंतरात्मा को तो किसी तरह चुप नहीं करा पाते जो उन्हें अक्सर तन्हाई में ताना मारती कि काश, उसने जरा-सा दम दिखा दिया होता या थोड़ी-सी हिम्मत कर ली होती तो आज टूटे सपनों का मातम मनाने की जगह वो भी उन कामयाब लोगों की तरह जश्न मना रहे होते सच, कभी-कभी ख़्वाब और हक़ीकत के मध्य केवल एक कदम का फासला होता लेकिन वो उठा पाने का साहस सभी नहीं कर पाते केवल कुशंकाओं के घेरे में घिरकर ही अपने बढ़े हुये कदम मन में उठे ज्वर को थाम वही की वही रुके रह जाते जबकि ऐसे ही मौकों पर दूसरे उस सीमा रेखा को पार कर ‘असफलता’ के ‘अ’ को अलग कर ‘सफ़लता’ के पाले में पहुँच जाते माना कि ये इतना भी आसान नहीं होता लेकिन यदि कर गुज़रे तो लगता इतना मुश्किल भी तो नहीं था

महिलायें तो अक्सर अपने घर की चारदीवारी में इतनी मशरूफ़ होती कि हमेशा ही दूसरों के लिये अपनी ख़ुशी ही नहीं अपने सभी अरमानों का गला घोंटकर खुद को एक दायरे में सीमित कर लेती लेकिन ये नहीं सोचती कि गर, वे इस दायरे को बढ़ा लेंगी तो केवल उनका ही नहीं बल्कि उनके अपनों का भी तो कार्यक्षेत्र थोड़ा बढ़ जायेगा पर, उन्हें तो त्याग, समर्पण और बलिदान की बालपन से जो घुट्टी पिलाई जाती उसकी वजह से उन्हें लगता कि यदि वो अपनी इच्छाओं के परों को काटकर रख देंगी तो इससे उनके किसी अपने को उड़ने का अवसर मिल जायेगा पर, जरा सोचकर देखें कि जो खुद ही तैरना नहीं जानता वो किसी और को किस तरह से वही करने की प्रेरणा दे सकता हैं । अपने अंतर की जमीन पर अंकुरित होने वाले नन्हे-नन्हे कोमल स्वपनों के रोपों को जब तक हम संकल्प के जल एवं दृढ़ता की खाद देकर उगने नहीं देंगे वो भला किस तरह से पौधों की शक्ल इख़्तियार करेंगे और ये सोच कि चलो हम अपनी इस फ़सल को मिटा दे क्योंकि इससे हमारी संतानों या हमारे अपनों का हित टकराता हैं या जैसा कि सब हमें समझाते कि जिसके लिये हम ये सब कर रहे यदि उसका भविष्य ही बिगड़ गया तो फिर अपने मन की करने का फायदा ही क्या पर, जब हम कुछ ऐसा करना चाहे जो आगे चलकर सबके लिये लाभकारी होगा तो फिर पीछे क्यों पलटना सिर्फ़ इसलिये कि ‘रिस्क’ लेने से डर गये जिसे हमने भले ही कोई भी छद्म आवरण ओढ़ा दिया पर, सच यही होता क्योंकि जो लोग किसी भी चीज़ को पाने की ख्वाहिश करते फिर वो उससे कम में समझौता नहीं करते तभी तो मंजिल पर पहुंचकर ही दम लेते जबकि जिनमें ये हौंसला नहीं वो चुपचाप बैठ जाते और कोई बहाना गढ़ लेते जिसकी आड़ में अपनी भीरुता को छूपा कर सच्चाई को ढंक देते हैं ।        

इसलिये ये समझना जरूरी हैं कि जो भी हम सोचते थे या हमने जिसकी भी हमने कामना की यदि हम उसे पा नहीं सके तो इसका कारण हमारी अपनी ही कोई कमी तो नहीं जिसे हम नजरअंदाज़ कर रहे हैं क्योंकि ‘त्याग’ वाली बात सभी के साथ तो लागू नहीं होती फिर ऐसे में वो क्या हैं जिसने हमें अपने लक्ष्य को हासिल करने नहीं दिया यकीनन वो हैं हमारे भीतर का डर जिनसे हमें कभी भी अपनी हदों से पार जाने नहीं दिया, अपने ‘सेफ जोन’ से निकलने नहीं दिया अपनी ही सीमाओं में कैद कर दिया जबकि जिन लोगों ने भी अपने जीवन में  अपने ‘कम्फर्ट जोन’ को पार किया उससे बाहर निकले वो एक नहीं सातों आसमान तक छू सके क्योंकि फिर उन्होंने कोई हद ही नहीं मानी शायद, आपने भी वो कहानी सुनी हो कि एक नन्हा-सा बाज का बच्चा गलती से चूजों में मिल गया और माँ मुर्गी ने उसे अपने ही बच्चों की तरह पाला तो उसे तो खबर ही नहीं थी कि वो क्या हैं तो उसने अपने परों को कभी तौला नहीं उतना ही उड़ता जितना उसके भाई-बहिन उड़ते लेकिन एक दिन आंधी-तूफान में फंस जब उसकी जान पर बन आई तो उसने कोशिश की और अहसास हुआ कि उसकी हदें उतनी नहीं थी जितनी उसने मान रखी थी पर, अब जब उसने उड़ना चाहा तो आसमान भी कम लगा बस, यही वो पल बोले तो क्षण होते जब हमें फ़ैसला लेना होता लेकिन इस परीक्षा में सब ‘पास’ नहीं होते और हमें पता हैं कि ‘मेरिट’ में तो गिने-चुने ही आते तो जब भी आये ‘रिस्क’ लेने का कड़ा इम्तिहान न होना परेशान... फिर देखना किस तरह होता खुदा मेहरबान... जरुर छुयेंगे आप आसमान... रखे ये इत्मिनान... तो साहिबान रखें याद न घोंटे अपने अरमान... :) :) :) !!!           
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१८ अगस्त २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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