मंगलवार, 15 दिसंबर 2015

सुर-३४९ : "सरदार तो सिर्फ एक... 'वल्लभ भाई पटेल'...!!!"

‘देश’
बनता नहीं
रहने वालों से
वो तो बनाया जाता
उसे दिल से चाहने वालों के
समर्पित हाथों से
सबमें कहाँ वो त्याग ?
प्राण निछावर करने का भाव
मगर, जिसमें होता
फिर वो कहीं न रुकता
‘सरदार वल्लभ भाई पटेल’ का
चमत्कारी कारनामा
हम सबको यही बताता
अपने ‘देशप्रेम’ से जिन्होंने 
‘भारत’ को एक कर दिखाया    
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मित्रों...,

१५ अगस्त १९४७ को जब देश आज़ाद हुआ तो उसके सामने सबसे बड़ी समस्या थी उस वक्त छोटी-बड़ी रियासतों में बंटी हुई भारत भूमि को ‘कश्मीर’ से ‘कन्याकुमारी’ तक एक बनाना क्योंकि स्वतंत्रता के पूर्व इस देश में राजा-महाराजाओं का राज्य था और पूरा देश अलग-अलग हिस्सों में विभाजित किसी दूसरे के आधिपत्य में था तो वे अपने हाथ से उसकी बागडोर जाने नहीं देना चाहते थे अतः इस कठिन समय में जरूरत थी किसी ऐसे शख्स की जो उन सबके अहं को आहत किये बिना या फिर अपनी जेहनी ताकत से या किसी बाहरी बल के प्रयोग मतलब कि ‘साम-दाम-दंड-भेद’ जो भी युक्ति प्रयोग में लाना पड़े उसके इस्तेमाल से ये असंभव काम संभव कर सके तो मुश्किल दौर में ‘सरदार वल्लभ भाई पटेल’ ‘संकटमोचन’ की तरह सामने आये जिन्होंने अपने आत्मबल के दम पर इस पुनीत काज को देशप्रेम की भावना मान अपने हाथ में लिया और फिर एक कुशल कूटनीति के अंतर्गत पांच सौ से अधिक रजवाड़ों, राजघरानों के सामने अपना प्रस्ताव रखा कि "रियासतों को तीन विषयों 'सुरक्षा', 'विदेश' तथा 'संचार व्यवस्था' के आधार पर भारतीय संघ में शामिल किया जायेगा और जो इस पर सहमत नहीं होगा उसे अपना राज्य तो खोना पड़ेगा ही साथ में सरकार से जो सुविधा प्राप्त होनी हैं उससे भी वंचित हो जायेगा" याने कि किसी भी तरह ये तो नहीं हो पायेगा कि वो अपनी सत्ता को उसी तरह कायम रख पाये तो धीरे-धीरे कुछ उनके समझाने से तो कुछ सैन्य बल के प्रयोग और कुछ स्वेच्छा से ही अपने साम्राज्य का विलय भारतीय परचम के तले करने राजी हो गये जिसके परिणामस्वरुप एकमात्र ‘कश्मीर’ को छोड़ सभी रियासतों ने आत्मसमर्पण कर दिया जिसे कि इतिहास की सबसे बड़ी उपलब्धि माना जाता और इस पुनीत यज्ञ को सफल बनाने के कारण ‘वल्लभ भाई पटेल’ को लौह पुरुष या भारत का बिस्मार्क जैसी उपाधियों से सम्मानित किया गया जिसकी वजह से उनका नाम आज भी भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से न सिर्फ अंकित हैं बल्कि सदैव रहेगा कि जिस ‘देश’ का नक्शा हम अब देखते उसे ‘अखंड भारत’ का दर्जा देने एक नहीं अनेक बलिदानियों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया जो अब भले ही अपने मूल स्वरुप से कुछ विकृत हो फिर टुकड़े-टुकड़े हो रहा हो पर, कभी वो विशाल भूखंड में बसा हर दिशा, हर राह, हर तरह से एक था और लगता फिर से किसी ‘सरदार पटेल’ की जरूरत जो फिर से इस धरा पर आये और जो इस देश के इतने खंड-खंड हो रहे उनका फिर से एकीकरण कर उसे अनेकता में एकता का प्रतीक वही ‘सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा’ बना दे जिस पर हर देशवासी को गर्व हो जहाँ सबमे आपस में प्रेम, बंधुत्व, सहिष्णुता, सद्भावना जैसे वही दैवीय गुण हो जो अब लुप्त हो रहे


‘महात्मा गाँधी’ से परिचय होने के बाद उन्होंने अपने भीतर परिवर्तन महसूस किया तो फिर वे भी स्वदेश प्राप्ति के आंदोलन में उनके साथ सम्मिलित हो गये लेकिन जब उन्हें लगा कि केवल अहिंसा के पथ पर चलकर इतना महत्वपूर्ण कार्य नहीं किया जा सकता तो उन्होंने अपना नहीं लेकिन काम करने का तरीका थोडा बदल दिया और १९१८ में उन्होंने जब भादेखा कि ज्यादा बारिश होने की वजह से गरीब किसानों की फसलें बर्बाद हो गयी लेकिन फिर भी बम्बई सरकार के द्वारा उनसे पूरे साल का लगान वसूल किया जा रहा तो उन्होंने ‘गुजरात’ के ‘कैरा ज़िले’ में किसानों और काश्तकारों के साथ मिल एक आंदोलन किया और १९२८ में उन्होंने सरकार द्वारा लगातार बढ़ाये गये करों के ख़िलाफ़ ‘बारदोली’ के भूमिपतियों के संघर्ष का बसफलतापूर्वक नेतृत्व किया तो ‘बारदोली सत्याग्रह’ के कुशल नेतृत्व के कारण उन्हें 'सरदार' की उपाधि मिली और लगातार देशहित में कार्य करते हुये वे आज ही के दिन १५ दिसंबर, १९५० को इस दुनिया से चले गये जो देश की अपूरणीय क्षति हैं तो आज उनके बलिदान दिवस पर हम देशवासियों की उनके प्रति ये श्रद्धा भरी शब्दांजलि... मन से नमन... :) :) :) !!!  
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१५ दिसंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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