रविवार, 27 दिसंबर 2015

सुर-३६१ : "स्माल टाउन गर्ल की लॉन्ग जंप...!!!"

धून की पक्की
मन की सच्ची
दिल की प्यारी
दिमाग की अच्छी
जो भी ठान लिया
पाकर ही रहती
एक छोटे शहर से
महानगर मुंबई तक की
दूरी दो पैरों से नहीं
बल्कि अथक मेहनत से
अपने ही दम पर तय की
श्वेताअब सिने जगत की
नामचीन निर्देशिका बनने लगी
दिल से हम देते बधाई ॥
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मित्रों...,

यूँ सोचो तो बात बहुत पुरानी नहीं लगती लेकिन जब सालों से नापो तो बीस बरस पहले जाकर ही रूकती जी हाँ जिस कहानी का आज हम जिक्र कर रहे उसकी शुरुआत आज से इतने ही साल पहले ही प्रारंभ हुई थी जब एक बेहद प्यारी, खुबसूरत , शौक, हंसमुख और जीवन से भरपूर एक मासूम लड़की से मेरी यूँ ही अचानक रास्ते में मुलाकत हुई जो लगभग एक साल तो इसी तरह कभी भी कहीं भी किसी भी जगह होने वाले आकस्मिक मेलजोल से बढ़ते-बढ़ते दोस्ती के बेमिसाल रिश्ते में बदलने लगी जबकि हम दोनों के मध्य उम्र का भी एक फ़ासला था लेकिन दोस्ती ही तो एक ऐसा सिलसिला होता जो किसी भी तरह के दायरे से बाहर होता तभी तो हम दोनों को पता ही नहीं चला कि कब हम बहुत अच्छी सहेलियाँ बन गयी फिर हम दोनों के मध्य जो संबंध बना तो वो दिन प्रतिदिन के साथ गहरा होते-होते साल दर साल इतना मजबूत हो गया कि अब तो हर तरह की बातों से परे सिर्फ और सिर्फ़ स्नेह का दिलकश नाता बनकर रह गया जिसमें हर तरह की खट्टी-मीठी यादों का समावेश हैं और जब भी हम मिलते तो नये या पुराने सभी अविस्मरणीय किस्सों को दोहराकर कभी बीते हुये काल को फिर से जी लेते तो कभी भविष्य के लिये कुछ नूतन स्मृतियाँ भी गढ़ लेते इस तरह हम दोनों के बीच अलग-अलग शहरों में रहने की वजह से जो लंबी दूरी निर्मित हो गयी हैं उसका अहसास कुछ कम हो जाता और मिलकर बिछड़ने के बाद जुदाई के पलों में मुस्कुराने के लिये भी कुछ सामां इकट्ठा हो जाता सच, ‘दोस्त’ और ‘दोस्ती’ ईश्वर का अनमोल उपहार हैं जो बड़ी खुशकिस्मती से नसीब होता और इस मामले में तो हम बेहद धनी हैं कि हमारे पास हर तरह के दोस्तों का जमावड़ा हैं जिनमें से अधिकांश बीसियों साल पुराने हैं तो कुछ लोगों से नया-नया नाता भी जुड़ा हैं तो अब ‘सोशल मीडिया’ ने भी बड़े बेहतरीन मित्रों से नवाज़ा हैं जिनका शुकराना अदा करने ही आज हमें एक अपनी प्रिय सहेली को माध्यम बनाया हैं जिसने अपनी उपलब्धि से हमें इतना प्रभावित किया कि हमें लगा कि आज हम आप सभी का भी उससे परिचय कराये आप सबको उससे मिलवाये उसकी अनूठी गाथा सुनाये जिससे कि आप सब भी जाने कि हौंसलों की उड़ान से कोई भी किसी भी जगह पहुँच सकता केवल मन की लगन सच्ची होना चाहिये फिर कोई भी मंज़िल हो उसे पाना दुष्कर कार्य नहीं होता सच, कुछ ऐसी ही जोखिम भरी हिमालय पर्वत को फ़तेह करने जैसे साहस की ये कथा हैं

‘श्वेता शर्मा लमानिया’ भले ही ‘नरसिंहपुर’ जैसे एक छोटे से शहर में जन्मी एवं वही पलकर बड़ी हुई लेकिन उसके सपने तो बचपन से ही बड़े थे तो फिर उस जगह से क्या फ़र्क पड़ता तो ऐसा ही हुआ लेकिन एक दिन में नहीं न ही किसी जादुई चिराग़ से बल्कि बड़ी लंबी मेहनत और अथक परिश्रम के अलावा कई कठिन पड़ावों को पार करने के बाद ही ये कंटक भरा मार्ग तय हो सका जिसमें अपने घर-परिवार की जिम्मेदारी के अतिरिक्त अपनी इकलौती बिटिया के सपनों को पूरा करने की भी धुन समाई थी जिसने उसे कमजोर करने की जगह सकारात्मक ऊर्जा दी जिसकी वजह से उन सबको छोड़कर उसने अपने ही दम पर सपनों की नगरी मुंबई जाने का फ़ैसला लिया क्योंकि उसकी स्वनिल मंजिल तो वही पर उसका इंतजार कर रही थी तो लंबे संघर्ष के बाद आख़िरकार वो दिन आया जब उसका महिला निर्देशिका बनने का स्वपन साकार होने का सुनहरा अवसर उसके हाथ आया तो बस, फिर क्या था पूरी जी-जान से वो जुट गयी अपने ‘ड्रीम प्रोजेक्ट’ को पूरा करने में जिसको उसने नाम दिया था ‘गूँज’ जो कि चौदह अलग-अलग ‘शोर्ट स्टोरीज’ का एक पैकेज हैं जिसकी शूटिंग ‘शूलिन एंटरटेनमेंट’ के बैनर तले अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग कलाकारों के साथ कर उनको अपने लगातार के थकाऊ शिड्यूल से बिना थके ही पूरा किया जिसके बाद कुछ फ़िल्में तो ‘मेनचेस्टर’, ‘कैलिफोर्निया’ और ‘टोरंटो’ फिल्म फेस्टिवल के लिये भी भेजी जा चुकी हैं तो उसको इस बहुत बड़ी सफ़लता पर बहुत बड़ी वाली मुबारकबाद के अलावा आने वाले स्वर्णिम भविष्य के लिये शुभकामनायें कि अब उसकी ये फ़िल्में देश ही नहीं वरन विदेश में भी खूब धूम मचाये उसे मान-सम्मान और पुरस्कार के अलावा वो स्थान दिलाये जिसकी वो हकदार हैं हम सब नरसिंहपुरवासियों को उस पर गर्व हैं कि आज उसकी वजह से इस जगह का नाम भी मुंबई जैसे शहर के लोग भी जानते हैं और एक दिन सारा विश्व भी जानेगा... इसी दिली ख्वाहिश के साथ ‘श्वेता’ से यही कहना हैं---

“सपनों की नगरी मुंबई में ही रुक मत जाना
अपने हौंसलों से एक दिन आकाश भी नापना ।
‘बॉलीवुड’ से ‘हॉलीवुड’ तक अपना नाम करना
‘श्वेता’ तुम हमेशा आगे ही आगे बढ़ती रहना” ॥

इस दुआ के साथ ही ‘आमीन’... कहकर परिचय का ये दौर खत्म करती हूँ कि आगे फिर कभी और भी बातें बताऊंगी उसके किस्से सुनाऊंगी... फ़िलहाल तो कलम को यही रोकूंगी... :) :) :) !!!
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२७ दिसंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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