गुरुवार, 3 दिसंबर 2015

सुर-३३७ : "विकलांगता तन की ठीक हो भी सकती... पर, मन की...???"



‘तन’ की
विकृति तो
फिर भी प्रकृति प्रदत्त
कुछ किया नहीं जा सकता
जिसका इलाज़ ख़ुदा के पास
लेकिन ‘मन’ की
वो तो इंसानी फ़ितूर
जिसका इलाज़
सिर्फ़... खुद के पास
मगर, तब ही न
जब कोई उसे अपनाना चाहे
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मित्रों...,

३ दिसम्बर १९९१ से ‘सयुंक्त राष्ट्र संघ’ ने विकलांगों के प्रति होने वाले भेदभावों को खत्म करने के दृष्टिकोण से ‘अंतर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस’ मनाने का फैसला लिया जिसने संपूर्ण विश्व में सकारात्मक माहौल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की और लोगों का इस तरह के व्यक्तियों के प्रति रुख भी बदला जिसकी वजह से अब उनको शारीरिक रूप से अक्षम कहने की जगह ‘असामान्य’ या ‘विशेष योग्यता युक्त’ उपमाओं का प्रयोग किया जाता हैं जो स्वयमेव ये दर्शाता हैं कि इस तरह के लोग जो कि जन्म से ये जन्म के बाद किसी भी वजह से किसी भी तरह की दैहिक कमियों से युक्त होते हैं वे वास्तव में अन्य पूर्ण रूप से स्वस्थ लोगों से इन मायनों में ‘असामान्य’ नहीं हैं कि उनके अंग-प्रत्यंग या शारीरिक व मानसिक योग्यताओं में कुछ कमियां हैं बल्कि उनको तो रब ने कुछ ख़ास तरह की क्षमताओं से नवाज़ा हैं जो कि सामान्य व्यक्तियों के पास नहीं तभी तो कई बार हर तरह से सक्षम दिखाई देने वाला शख्स भी अपने अंदर उपस्थित समस्त शारीरिक-मानसिक योग्यताओं का पूर्ण दोहन नहीं कर पाता जबकि वहीँ जिसे ईश्वर ने यदि एक तरफ किसी रूप में कमजोर बनाया तो वही दूसरी तरफ उसमें असीम शक्ति दी जिसकी वजह से उसने कभी बिना हाथ के ही बड़े-से-बड़े पहाड़ों का सीना चीर दिया या उसे बिना पैरों के ही फलांग लिया तो कभी बिना आँखों के ही सब कुछ न सिर्फ पढ़-सीख लिया बल्कि उससे ज्यादा लिख भी दिया तो किसी ने मूक होने के बावजूद भी बिना कहे ही दूसरे की जुबान से सब कुछ कह दिया तो किसी ने सभी तरह से विकलांग होने पर भी कभी भी खुद को असहाय महसूस न किया और वो सब कुछ कर दिखाया जो पूर्ण स्वस्थ इंसान कभी सोच भी न पाया याने कि इन लोगों ने ये सिद्ध किया कि किसी भी लक्ष्य की पाने या किसी भी ऊँचाई पर पहुँचने के लिये अंगों की नहीं बल्कि आत्मविश्वास की जरूरत होती और यदि वो भरपूर हैं तो फिर किसी भी तरह का अभाव महसूस नहीं होता पर, जिसके पास यही नहीं तो भले उसे कुछ भी मिल जाये निरर्थक ही रहता हैं

वाकई... जो लोग अपने जीवन में सदैव किसी न किसी कमी का रोना रोते बैठे रह जाते हैं उनसे अच्छे वे लोग हैं जो मौज़ूद संसाधनों का सार्थक तरीके से उपयोग करना जानते हैं चाहे फिर वो एक हाथ हो या एक पैर या बिना हाथ-पैर के हो या दृष्टिहीन या दिमागी रूप से कमजोर किसी के मोहताज़ बनने की बजाय अपने आप में न सिर्फ खुश रहते हैं बल्कि जो भी उनको मिला हैं उसे इस्तेमाल कर आंतरिक व बाहरी ख़ुशी प्राप्त करते जिससे उन्हें असंभव को भी संभव बनाने की अनंत ऊर्जा मिलती जिसके दम पर वे हिमालय पर्वत सी असाध्य नज़र आने वाली मंजिल को भी पलक झपकते अपनी बाधाओं के बाद भी यूँ पार कर लेते जैसे कोई बहती नदी रास्ते में मिलने वाले हर तरह के छोटे-मोटे अवरोधों को लांघते हुये सागर में मिल जाती हैं तो फिर क्यों न उन्हें ‘असामान्य’ कहा जाये जो सचमुच न केवल सामान्य लोगों से अलहदा होते बल्कि काम भी बढ़-चढ़कर करते ऐसे में हमारा फर्ज़ बनता कि हमसे जो भी सहायता की जा सके वो जरुर करें लेकिन उसमें उनके प्रति सहानुभूति का अहसास न भरा हो जिससे कि यदि वे अपने काम को पूरा करने में जहाँ थोडा अधिक वक़्त लगाते वहां उसे समय से पहले ही हासिल कर सकते हैं यही तो इस दिन का मुख्य उद्देश्य हैं कि हम उनके साथ सहभागिता निभाते हुए उनको अपने साथ लेकर चले जिससे कि एक दूसरे की कमियों को एक-दूसरे की क्षमताओं से भरा जा सके ये कोई अधिक मुश्किल कार्य भी नहीं बड़े छोटे-छोटे से कदम उठाने हैं जैसे कि यदि वो हमारे साथ पढ़ते हैं तो उनका मजाक न करते हुये मदद के लिये हाथ बढ़ाना हैं और जो ऐसा करें उनको भी रोकना हैं और यदि वो हमारे आस-पास ही रहते हैं तो खुद आगे बढ़कर उनसे मित्रता करनी चाहिये न की उनके लिये मन में कोई हीन भावना रखना चाहिये जो वास्तव में हमें ही उनके समक्ष छोटा ज़ाहिर करती हैं इसी तरह जहाँ भी लगे कि उनको हमसे कोई अपेक्षा हैं तो उनके कहने के पहले ही उनकी वो ख्वाहिश पूरी कर देना चाहिये ।

ऐसी अनेक शख्सियत देश-विदेश में हुई जिन्होंने अपनी उपलब्धियों एवं काबिलियत से हर तरह की बड़ी-से बड़ी अपंगता को बौना साबित किया चाहे फिर वो ‘मैडम हेलेन केलर’ हैं जो कि कहने को तो शरीर से अपूर्ण थी मगर, हर काम पूर्णता से कर अच्छे से अच्छे समर्थवान को भी कमतर साबित किया इसी तरह ‘सुधा चंद्रन’ ने भी अपना पांव कट जाने के बाद भी उसी तरह से अपनी नृत्य साधना को पूरा किया जो ये साबित करता कि केवल अंग विशेष की कमी से कोई अयोग्य नहीं बनता बल्कि जो कुछ भी उसके पास हैं उसका सदुपयोग न करने से आदमी नाक़ाबिल कहलाता... तो इस दिन से ये भी सबक मिलता कि जिन लोगों को हाशिये पर रखा जाता कभी-कभी वही मुख्य धारा में आकर अच्छे-से अच्छों को उनकी कमतरी का अहसास करा जाते इसलिये आज का दिन हम सबके लिये जो ख़ुद को तो संपूर्ण समझ देहाभिमान में खोये रहते पर, जिनकी काया में दोष वे इससे परे बेफ़िक्र होकर हर दिन हर पल को खुलकर जीते फिर हम क्यों नहीं... :) :) :) !!! __________________________________________________
०३ दिसंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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