शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

सुर-३५९ : "क्रिसमस की बधाई... मरियम ढेरों खुशियाँ लाई...!!!"

अधर्म को मिटाने
आता ईश्वर का दूत कोई
लेकर प्रेम का संदेश
मिटाने पाप का अँधियारा
जिसको न पहचाने
अक्सर ये नादान ज़माना
पर, उसका बलिदान
करे नव धर्म की स्थापना
लिखे अपने लहू से
नई सदी का नया अफ़साना  
-----------------------------------●●●

___//\\___

मित्रों...,

भले ही इस दुनिया में अनेक मज़हब और अनेक मान्यतायें हो लेकिन जो धर्म का मूल ग्रहण करते वे जानते कि हम सब एक पारलौकिक ‘परमपिता’ की संतानें अतः हमारे बीच कोई भेदभाव नहीं भले ही उपरी तौर पर कहे कि इस लौकिक दुनिया में हमारे दैहिक माता-पिता भिन्न-भिन्न हैं तो उनके कारण हम उनके बताये धर्म का पालन करते हो क्योंकि इस धरती पर हमने ही अनेकानेक संप्रदाय स्थापित कर इंसानों के मध्य अलग-अलग मतों की दीवारें खड़ी कर दी तो हमारे जन्म लेते ही हमारी आत्मा जिस देह को धारण करती उस परिवार के अनुसार हमारा नामकरण, हमारे धर्म का निर्धारण होता जो जन्म से पहले उस परमधाम में तो सिर्फ और सिर्फ एक ही होता जिसके कारण हम सभी आत्मायें आपस में एक-दुसरे से एक ही संबंध से जुड़े होते तथा उस अलौकिक दुनिया में तो हम आत्माओं का जनक भी तो केवल वो अदृश्य सर्वव्यापी ‘परमात्मा’ होता जिसे हमारी आत्मा काया प्रवेश के बाद ही बिसरा देती और फिर इस मायावी दुनिया में भ्रमित होकर जन्मों-जन्मांतर के चक्र में फंस जाती कि ये संसार एक भूल-भुलैया की तरह उसको तरह-तरह के भुलावों में उलझा देता ऐसे में उपर बैठा सर्व आत्माओं का जन्मदाता किसी पवित्र आत्मा को जमीं पर भेजता जो हमारी अंतरात्मा पर पड़े दुनियादारी के पर्दों को हटाकर हमें अपना वास्तविक स्वरूप दिखाये और हमने जो भगवान की बनाई सृष्टि को अपने मुताबिक ढाल लिया हैं उसको भी वापस उसके मूल स्वरूप में लौटाये तो इस तरह समय-समय पर जबकि चारों तरफ अधर्म का बोलबाला बढ़ जाता और धर्म की आवाज़ मद्धम पड़ने लगती तो इस जगत में किसी न किसी अवतार, पैगंबर, देवदूत, ईश्वर पुत्र का आगमन होता जो हमारी सुप्त हो चुकी आत्मा को फिर से जागृत कर उसे उसकी भूमिका का स्मरण कराता अफ़सोस कि अक्सर हम सब उसको पहचानने में भूल कर जाते तो अपने ही हाथों उसको अपने से दूर कर देते जिसका खामियाजा बाद में पछताकर चुकाते उसको याद कर रो-रो आंसू बहाते जबकि उसकी मौज़ूदगी में उसको नहीं अपनाते बल्कि अलग-अलग ढंग से उसकी परीक्षा लेते शायद, अपनी अपवित्रता के धुंधलेपन में हम उसको सही तरह से देख नहीं पाते तभी तो जितने भी अवतार हुये सबकी ही जीवनगाथा में इस तरह की घटनाओं का उल्लेख मिलता फिर भी हम चेते नहीं जो ईश्वर द्वारा भेजे उन दूतों के संदेश का सार ग्रहण करने की जगह उनको पूजना शुरू कर दिया उनके नाम पर कोई नवीन धर्म बना लिया जबकि यदि हमने सबके प्रवचनों पर गौर किया होता तो आज इतने सारे धर्म-संप्रदाय नहीं होते क्योंकि सबकी वाणी में तो एक ही सार छिपा हैं

आज से करीबन दो हज़ार साल पहले भी इस धरती पर ऐसी ही एक शुद्ध आत्मा का एक तन में प्रवेश हुआ जिसे कि उनके माता-पिता ‘मरियम’ व ‘युसुफ’ ने प्यार से ‘ईसा’ नाम से संबोधित किया कि उनके जन्म से पूर्व ही आकाशवाणी के माध्यम से उनको ये बताया गया था कि उनके घर आने वाली संतान कोई साधारण आत्मा नहीं बल्कि ईश्वर का पुत्र हैं जिसका नाम ‘ईसा’ रखा जाये जो अपने लोगों का पापों से उद्धार करेगा तो उन्होंने वैसा ही किया और उनका पुत्र तो वाकई मानवता का सच्चा पुजारी, भटके लोगों का मार्गदर्शक और दीन-दुखियों का सच्चा हितैषी था जिसके अंदर अनेक सद्गुणों का वास था जिसके कारण उनके सानिध्य में आने वाले सत्चरित्र लोग तो उनसे अत्यंत प्रभावित हो उनके बताये मार्ग पर चलते पर, दुर्गुणी लोग उनसे इर्ष्या रखते जिसके कारण उनके मित्र कम दुश्मन अधिक बन गये थे पर, इस बात से अनजान वो तो सब पर निःस्वार्थ प्रेम की बारिश करते उनको अच्छी-अच्छी बातें बताते कि हम सब उस एक ईश्वर की संतान हैं और जब हमारा हृदय पवित्र होता तो हम ईश्वर को देख सकते हैं अतः हमें मन, वचन एवं कर्म से कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहिये जिससे किसी को दुःख पहुंचे तो वे सबको सदैव सजग रहने की शिक्षा देते और अपने आचरण से हमेशा ऐसा व्यवहार करते कि कभी भूले से उनसे कोई भूल न हो ताकि यदि वे उनका अनुशरण करें तो उनसे ही किसी तरह कि कोई गलती न हो इस तरह एक पैगंबर जो इस संसार में बुराइयों का खत्म करने आता वो अपनी बातों से ही नहीं बल्कि अपने हर क्रिया-कलाप से सारी दुनिया को यही संदेश देता कि हम सब जो अपने उस परमपिता के घर से आने के बाद उसे भूल इस मिथ्या जगत को ही अपना मान लेते दरअसल सब लोग मोह-माया सुंदर पिंजरे में कैद होकर उसको अपना असली घर समझने की भूल करते जिससे उनको यहाँ से जाने का दुःख होता लेकिन यदि हम ये जान ले कि हम तो केवल अपने दायित्व का निर्वहन करने आये जिसके बाद हमें वापस अपने लोक जाना हैं तो हमें मृत्यु का भी भय न हो जैसा कि ‘ईसा मसीह’ के साथ भी हुआ जब उनको सलीब पर लटकाया गया तो उन्होंने किसी से भी कोई शिकायत न कर सबको क्षमा कर दिया क्योंकि वे जानते थे कि जो कुछ भी हो रहा वो देह भुगत रही आत्मा तो इससे विलग हैं तो आज उस ‘सन ऑफ़ गॉड’ के ‘अवतरण दिवस’ पर सभी को बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनायें... सब लोग इसी तरह हंसी-ख़ुशी से मिल हर त्यौहार मनाये... अनेकता में एकता को सार्थक बनाये... ‘मेरी क्रिसमस’ सभी को.... :) :) :) !!!             __________________________________________________
२५ दिसंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
--------------●------------●

कोई टिप्पणी नहीं: