सोमवार, 21 दिसंबर 2015

सुर-३५५ : "गीता जयंती मनाओ... निष्काम कर्म के गीत गाओ...!!!"

फूंककर पांचजन्य
श्रीकृष्णने जब की
महाभारतकी शुरुआत
तो पाकर सामने
अपने परिजन
हो गई अर्जुनकी
बुद्धि भ्रमित
तब गीता ज्ञानकी
अमृत वर्षा से
छंटे संदेह के बादल
हुआ उदित निश्चय का
प्रखर सूर्य जिसने
भगाया निष्काम अँधियारा
आज गीता जयंतीपर
याद कर वो दिव्य अलौकिक पल
भक्त करते जय-जयकारा ॥
--------------------------------●●●

___//\\___

मित्रों...,

बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम्‌ ।
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः॥

‘श्रीमद्भाग्वात्गीता’ में ‘भगवान् श्रीकृष्ण’ ने अपने श्रीमुख से स्वयं ही कहा हैं कि वे हर वर्ष आने वाले बारह महीनों में ‘मार्गशीर्ष’ हैं क्योंकि यही वो मास हैं जब ‘द्वापर युग’ में सोलह कला पूर्ण अवतारी योगिराज ‘कृष्ण’ ने लौकिक दुनिया से दूर अलौकिक दुनिया में बसने वाले आत्मा के अद्भुत रहस्य को हम जीवधारियों पर उजागर किया ताकि हम केवल अपने बाह्य रूप से दिखाई देने वाले ‘दैहिक’ ही नहीं बल्कि अपने उस सूक्ष्मतम ‘आत्मिक’ स्वरूप से भी परिचित हो सके जिससे कि हम मोह-माया के उपरी स्थूल आवरण को भेदकर अपने अंतर में स्थित उस ज्योतिमय बिंदुसम ‘आत्मा’ के दर्शन कर ये जान ले कि हमारी बाहरी देह तो सिर्फ़ आवरण मात्र हैं जिससे अत्याधिक स्नेह हमें अपने लक्ष्य से भ्रमित भी कर सकता हैं तो कुछ ऐसा ही हुआ था... जब बड़ी कोशिशों के बाद भी जबकि ‘कान्हा’ स्वयं ‘शांतिदूत’ बनकर संधि का प्रस्ताव लेकर हस्तिनापुर गये कि शायद, अहंकार से ग्रसित ‘कौरव’ अपने ही भ्राता ‘पांडवों’ को उनका अधिकार देने मान जाये लेकिन ये संभव न हुआ तो अंततः जिस भीषण युद्ध को टालने तमाम प्रयास किये गये थे वही स्थितियां निर्मित हुई और वो दिन भी आया जब ‘पक्ष’ एवं ‘विपक्ष’ अपनी-अपनी सेना लेकर कुरुक्षेत्र के मैदान में आमने-सामने आ गया तो इस दृश्य में उस काल के सबसे बड़े धनुर्धर महान योद्धा ‘अर्जुन’ के मन में विषाद उत्पन्न कर दिया कि वो किस तरह से अपने परिजनों पर अस्त्र-शस्त्र से हमला कर सकता कि ये तो उसके वही रक्त-संबंधी हैं जिन्होंने उसका पालन-पोषण किया उसको सरंक्षण दिया सभी उसके अपने हैं जिनसे उसका कोई न कोई अटूट रिश्ता हैं कोई ‘पितामह’, तो कोई ‘चाचा’ तो कोई ‘भाई’ और कोई मामा’ हैं तो वो उनको किस तरह से मार सकता हैं अतः उसकी बुद्धि भ्रमित हो गयी कि ऐसी परिस्थिति में क्या ‘धर्म’ हैं तो क्या ‘अधर्म’ ??? और उसे किस पथ का अनुसरण करना चाहिये मस्तिष्क में अनंत प्रश्नों की श्रृंखला जारी थी जिसके कारण उन्होंने अपने हथियार धरा पर रख अपने मित्र, सारथि और नर के रूप में नारायण ‘कृष्ण’ के सम्मुख आत्मसमर्पण कर दिया कि अब वे ही उसे ज्ञान का प्रकाश देकर आगे का मार्ग प्रशस्त करें ताकि वो अपने मनोमस्तिष्क को विचलित करने वाले सवालों के जंजाल से मुक्त होकर सत्य का साथ दे सके

ऐसे मुश्किल वक्त में ‘श्रीकृष्ण’ ने अपने उस धर्म का पालन किया जिसकी संस्थापना हेतु वे इस धरती पर अवतार लेकर आये थे तो उन्होंने ‘अर्जुन’ को माध्यम बनाकर समस्त जगत को ही वो दुर्लभ ज्ञान दिया जिससे हम वंचित थे जिसके द्वारा हम अपने को पहचान सकते थे कि जो हम अपने आपको समझते उससे इतर भी हमारा कोई अन्य रूप हैं जिसे स्थूल नेत्रों से हम देख पाने में सक्षम नहीं होते अतः अपने शरीर, अपने नाम को ही अपना आप समझ उसकी रक्षा में लगे रहते जबकि असलियत में तो हम सब अदृश्य आत्मा हैं जो हर जनम के साथ अपने कर्म का निर्वाह करने के बाद लिबास की तरह ओढ़े अपने बाहरी तन का त्याग कर अपने घर जिसे ‘परमधाम’ कहते चले जाते और फिर नया शरीर धारण कर वापस इस मायावी संसार में अपनी नई भूमिका निबाहने आ जाते पर, ‘मृत्यु’ से डरते लेकिन जब ‘गीता’ का अध्ययन करते या उसे सुनते तो ज्ञान का दीपक जलता जिससे अज्ञान का अँधेरा भगता और हम उसी क्षण सभी तरह के भयों से मुक्त हो जाते तभी तो वो ‘अर्जुन’ जो ‘गांडीव’ छोड़कर महासमर से पलायन करने को उत्सुक था अपने रिश्तेदारों को मारना नहीं चाहता था ‘गीता’ के अनमोल वचन सुनकर कर्तव्य पथ पर चल विजेता बना तो अक्सर हम सभी के समक्ष भी इसी तरह की परिस्थितयां निर्मित हो जाती जब हम अनिर्णय की स्थिति में होते सही-गलत का चुनाव नहीं कर पाते तो ऐसे समय में ‘गीता’ ही हमारे संकट काल में समाधान बन प्रस्तुत होती जिसके श्लोकों में छिपे अनंत अर्थों की कोई परत खुल हमारी दुविधा को दूर कर हमें सहज-सरल निष्काम कर्म का सबक देती कि हम तो महज़ कठपुतली हैं जिसे फल की इच्छा किये बिना केवल अपनी भूमिका निभानी हैं और ऐसा न करने पर भी जो तय हैं वो तो होकर ही रहेगा तो क्यों न हम कर्म कर स्वर्ग के भागी बने जिस तरह ‘अर्जुन’ ने किया था जब उसे ज्ञात हुआ कि उसके न मारने पर भी वे सब मरेंगे ही तो बेहतर कि वो अपना फर्ज़ पूरा करें तो आज ‘गीता जयंती’ पर सभी को ‘कर्मयोगी’ बनने की हार्दिक शुभकामनायें... :) :) :) !!!
__________________________________________________
२१ दिसंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
--------------●------------●

कोई टिप्पणी नहीं: