शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

सुर-३५२ : "नरसी जयंती आई... वैष्णव जन की याद दिलाई...!!!"


राधाकृष्ण
जपकर बन गये
बेजुबां से जुबांवाले
नरसी मेहता
भक्ति का ओढ़ चोला
सुमिरे सदा सांवरे
वैष्णव जन
गाते अब तलक
जिसको नहीं
हम भूलने वाले
उसके शब्द-शब्द
उनकी याद दिलाते
आज जयंती पर
श्रद्धा से सर नवाते ॥
------------------------●●●

___//\\___

मित्रों...,

“वैष्णव जन तो तेणे कहिये...”

इस भजन को ‘महात्मा गाँधी’ बेहद पसंद करते थे जिसके कारण हम सब भी आज तक न सिर्फ इसको गाते बल्कि इसी तरह से इसे याद करते जबकि इसके रचियता ‘नरसी मेहता’ जो कि ‘गांधीजी’ की ही तरह ‘गुजरात’ के निवासी थे को शायद, बहुत कम लोग जानते जिनकी आज जयंती हैं एक बहुत बड़े संत और ‘भगवान श्रीकृष्ण’ के महान उपासक थे जिनके साथ बड़ी चमत्कारी कथायें जुड़ी हुई हैं जो ये बताती कि वे जन्म से ही गूंगे थे और बाल्यकाल में ही माता-पिता के स्वर्गवासी हो जाने के कारण उनकी दादी ने ही उनका पालन-पोषण किया पर, वे हमेशा ही उसके भविष्य को लेकर चिंतित रहती थी कि इस मूक बच्चे का आखिर होगा क्या ???

लेकिन जिसे बड़े होकर एक प्रसिद्ध भजन गायक और ईश्वर भक्त बनना हो तो उसके लिये भगवन स्वयं ही साधन जुटाते तो बस, कुछ ऐसा ही चमत्कार हुआ जब एक दिन उनकी दादी उनको लेकर मंदिर गयी जहाँ पर कि ‘भागवत कथा’ सुने जा रही थी तो कथा की समाप्ति पर जब वे जाने लगी तो उन्होंने देखा कि सीढ़ियों पर एक शांत परम तेजस्वी तपस्वी बैठे हुये हैं तो श्रद्धावश वे उनको प्रणाम कर कहने लगी कि – ‘बाबा, ये बालक जन्म से ही गूंगा हैं अतः मुझे सदैक इसकी चिंता रहती हैं कृपया कोई ऐसा वर दे कि ये बोलने लगे’

तब उस तपस्वी ने कहा कि – ‘ये कोई साधारण बच्चा नहीं बल्कि बड़ा भाग्यशाली हैं इससे तो तेरे कुल का नाम होगा फिर ये कह कर उन्होंने उस बालक के काम में ‘राधाकृष्ण’ कह उससे दोहराने को कहा’ ।

तो नरसी ने बिना किसी बाधा के ‘राधाकृष्ण’ बोल दिया जिससे दादी बेहद प्रसन्न हुई और सन्यासी का आभार प्रकट कर वापस घर आ गयी इस तरह उस बालक को केवल वाणी का वर ही नहीं बल्कि जीवन ध्येय का मूलमंत्र भी मिल गया और वे ‘राधाकृष्ण’ के अनन्य भक्त बन गये यहाँ तक कि उन्हें सभी की आत्मा में अपने इष्ट के दर्शन होते अतः वे छुआछुत को नहीं मानते थे जिसके कारण उन्हें जात से बाहर कर दिया गया था लेकिन ये उनके प्रेम एवं साधना के पथ से उनको डिगा न सका और वे सबको ‘हरि-जन’ कहकर संबोधित करते और उन्होंने अपने आपको सम्पूर्ण रूप से ‘कृष्ण’ को अर्पित कर दिया था जो उनकी निःस्वार्थ साधना की पराकाष्ठा थी इस कारण सांवरे कि उन पर निरंतर अनंत कृपा बरसती रही जिनकी उपासना में लीन होकर उन्होंने अनेक भजन, पद और काव्य सृजन किया जिनकी वजह से ‘गुजरात’ में आज भी उनका गुणगान किया जाता हैं  

आज ‘नरसी जयंती’ पर ऐसे भक्त शिरोमणि को मन से नमन जिन्होंने अपने जीवन में केवल भक्ति का बाहरी आचरण नहीं किया बल्कि उसे तन-मन से जिया जिसकी वजह से उनके दर्शनों से भी अनेक लोगों को लाभ मिला और उन्होंने कई दुखी मानवों की पीड़ा का हरण भी किया तो ऐसे सहृदय प्रेमिल परोपकारी संत स्मरण कर हम भी पुण्य के भागी बने... जय राधे कृष्ण... :) :) :) !!!   
__________________________________________________
१८ दिसंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
--------------●------------●

कोई टिप्पणी नहीं: