गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

उर-३४४ : "विश्व को मिले मानवाधिकार... यही वक्त की दरकार...!!!"

कहता
‘संविधान’
एक समान हैं
हर इंसान
मगर, लिखा हुआ
सिर्फ किताबों में ही
जिसे पढ़ते सब
लेकिन मानते कब ???
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मित्रों...,

किसी भी इंसान की ज़िंदगी, आज़ादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार है- "मानवाधिकार"।

‘द्वितीय विश्व युद्ध’ जो १९३९ से १९४१ तक चला जिसमें करोड़ो लोगों की जाने गयी तो उतने ही लोग जख्मी, घायल और असहनीय दर्द से गुज़रे जो कि केवल शारीरिक था पर, मानसिक पीड़ा तो हर एक इंसान को ही न चाहते हुये भी सहनी पड़ी जिसने संपूर्ण विश्व को सोचने पर मजबूर किया कि इंसानी जान सबसे कीमती हैं क्योंकि हम सब कुछ बना सकते हैं या जो भी नष्ट हुआ उसे दुबारा प्राप्त कर सकते हैं लेकिन किसी भी मानव की जान जो प्रकृति की सबसे अनमोल देन हैं उसे किसी भी तरह से किसी को भी प्रदान नहीं किया जा सकता ऐसे में ‘सयुंक्त राष्ट्र संघ’ ने मानवीयता की इस असीम वेदना को न सिर्फ़ महसूस किया बल्कि इसके प्रति सारे जगत को जागरूक बनाने का बीड़ा उठाने का भी फैसला लिया और १० दिसंबर १९४८ को ये तय किया गया कि अब से आज के इस दिन को ‘विश्व मानवाधिकार’ के रूप में मनाया जाये ताकि हर एक व्यक्ति को अपनी जिंदगी को अपने ढंग से जीने के का कानूनन हक़ मिले अतः इसके लिये बाकायदा नियम-कानून भी बनाये गये जिनका उल्लंघन करने वाले के लिये सजा का प्रावधान भी रखा गया जिसे लगभग सभी देशों में इसको मान्यता मिली और २८ सितंबर, १९९३ से हमारे देश में भी इसको अमल में लाने का निर्णय लेने के साथ ही ‘भारतीय संविधान’ में भी इसे लागू किया गया और १२ अक्टूबर १९९३ में हमारी सरकार ने 'राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग' का भी गठन किया जिससे कि सभी भारतीय नागरिक को ये हासिल हो सके इसलिये इसके अंतर्गत ‘बाल मज़दूरी’, ‘एचआईवी/एड्स’, ‘स्वास्थ्य’, ‘भोजन’, ‘बाल विवाह’, ‘महिला अधिकार’, ‘अल्पसंख्यकों’ और ‘अनुसूचित जाति’ और ‘जनजाति’ के अधिकार आदि को भी शामिल किया गया हैं तो इस तरह से इसने सारे संसार को एकता के सूत्र में बांधने में एक महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई कि देश चाहे कोई भी हो लेकिन उसमें रहने वाले इंसान तो सभी एक समान ही होते हैं  

‘मानवाधिकार’ का तात्पर्य हैं कि ‘आदम’ जात की सारी संतान एक समान हैं तो उनके प्रति सबकी भावना भी एक जैसी ही होना चाहिये तथा सबको एक-दूसरे का बिना किसी तरह के भेदभाव के सम्मान करना चाहिये ताकि ऐसा न हो कि किसी को तो अपनी मजबूत साख़ की वजह से सब कुछ मिले और दूसरा कमतरी के कारण उपेक्षा का शिकार होकर निम्न से निम्नतर होता जाये लेकिन इसके बावजूद भी अब इतने सालों के बाद तक स्थितियों में अधिक परिवर्तन नहीं हुआ हैं क्योंकि केवल कहने या बताने मात्र से ही तो ये जरूरी नहीं कि हर एक व्यक्ति के अंदर भी यही भावना विकसित हो जाये तो ‘इंसानियत’ के मंत्र को सबके दिलों में जगाने और सकल ब्रह्मांड के हर आदमी का एक-दूसरे के प्रति बंधुत्व भाव पैदा करने के लिये अनेक समाजसेवी संस्थायें भी सक्रिय हुई फिर भी ‘मानवाधिकार’ जो केवल किसी एक व्यक्ति को सम्मान से जीने देने का नाम ही नहीं हैं बल्कि इसके अंतर्गत तो कई और भी बातों का समावेश किया गया हैं क्योंकि हर एक व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकतायें भले ही एक समान हो लेकिन उनकी कुछ व्यक्तिगत जरूरतें भी होती हैं जिसे पूरा कर पाना सबके लिये संभव नहीं होता गोया कि सबको ‘रोटी-कपड़ा-मकान’ जैसी मामूली चीजें भी आसानी से मुहैया नहीं होती फिर ऐसे में ‘मानवाधिकार’ किस तरह से अपने उद्देश्यों को पूरा कर सकता हैं जबकि अब भी इस दुनिया में अनेक लोगों को एक समय भरपेट खाना तक नसीब नहीं होता तो फिर बाकी वस्तुओं की तो बात करना ही बेमानी हैं क्योंकि 'विश्व मानवाधिकार घोषणा पत्र' में तो ‘शिक्षा’, ‘स्वास्थ्य’, ‘रोजगार’, ‘आवास’, ‘संस्कृति’, ‘खाद्यान्न’ व ‘मनोरंजन’ जैसी हर तरह की बुनियादी मांगों को भी सूचीबद्ध किया गया हैं जो न जाने कब तक पूरी दुनिया के हर एक मानव को मिल पायेगी जबकि ‘रोटी’ का ही ठिकाना नहीं तो बाकी सबके बारे में तो फ़िलहाल सिर्फ़ कोशिश ही की जा सकती हैं

अभी तो इस दुनिया में ‘औरत’ और ‘आदमी’ को ही बराबरी का दर्जा हासिल नहीं हुआ जिसके कारण कई जगह ‘लिंगभेद’ की भयावह स्थितियां बनी हुई हैं ऐसे में वो कौम जो इनके बीच पनपती और न तो ‘नर’ और न ही ‘नारी’ का ही दर्जा पाती उनका क्या होगा ? उनके बारे में कौन विचार करेगा ?? उनको भी तो ये अधिकार मिलना चाहिये क्या नहीं ??? तभी तो ये दिवस अपनी सार्थकता को उसके मूल स्वरूप में पा सकेगा... तब तक इसी उम्मीद के साथ कि ये दिन जल्द आये सबको इस दिन की हार्दिक शुभकामनायें... :) :) :) !!!       
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१० दिसंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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