शनिवार, 19 दिसंबर 2015

सुर-३५३ : "ऐसे तीन क्रांतिकारी... कि भारतमाता जाये बलिहारी...!!!"


भारत भूमि के
कण-कण में बसी हैं
शहीदों की अमर कहानी
कुछ जानी-पहचानी
तो कुछ हैं अनजानी
जिनको भूला नहीं सकता
कोई हिंदुस्तानी
आज का दिन भी दोहराता
वो महान बलिदानी गाथा  
इतिहास की जुबानी
जब बेख़ौफ़ दे दी
तीन देशभक्तों ने साथ-साथ
अपनी जान की कुरबानी
कर नमन उनको
देते हम सब दिल से सलामी
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मित्रों...,

हमारा देश जितने साल गुलाम रहा उससे भी ज्यादा उसकी आज़ादी के लिये उसे चाहने वालों ने अपनी जान गंवाई छोटे-बड़े हो या किसी भी तरह के पर, सबने वक्त पड़ने पर जब जहाँ जरूरत पड़ी अपने प्राण निछावर किये क्योंकि किसी को भी परतंत्रता की वो बेबस करने वाली बेड़िया जरा भी न भाती थी तो जिससे जिस तरह भी बना उसने अपना योगदान दिया चाहे वो कलम के जरिये हो या फिर कर्म के माध्यम से पर, एक पल को भी कोई चैन से न बैठा सबके जेहन में हर पल यही विचार चलता कि चाहे जान ही क्यों न देनी पड़ी लेकिन स्वतंत्रता हासिल हो जाये तो फिर इतनी शिद्दत से अपने वतन को प्रेम करने वालों के आगे आख़िरकार अंग्रेजी सरकार को अपना इरादा बदलना ही पड़ा और एक दिन वे हम सबको आज़ादी का परवाना थमाकर वापिस अपने देश चले गये तो फिर बाकी रह गयी उन देशप्रेमियों के बलिदान की वो अजर-अमर कहानियां जिनको पढ़कर और सुनकर आँखें नम हो जाती कि ज्यादा समय नहीं हुआ जब भारतमाता को विवशता की जंजीरों से छुड़ाने की खातिर इसी देश के सपूतों ने अपनी जान तक की परवाह नहीं की और आज उनकी शहादत को भूला लोग अपने आप में इतने मगन हो गये कि जब-जब ऐसा कोई शहीद दिवस आता तो स्मरण की औपचारिकता पूरी कर अपने फर्ज़ से मुक्ति पा जाते और कभी-कभी तो कुछ क्रांतिकारियों के बलिदान की तो याद भी न आती इतनी कृतध्नता देखकर महसूस होता कि क्या सोचकर ये लोग फांसी के फंदे पर झूलने से तनिक भी न हिचकिचाये आखिर किसकी खातिर अपनी ‘मातृभूमि’ और अपने भाई-बहिनों के लिये ही न तो फिर हमारा ये कर्तव्य नहीं बनता कि हम भी उनको याद कर अपने उन अग्रजों के प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित करें उनकी कुर्बानी को बेकार न जाने दे अपने देश के दिग्भ्रमित युवा वर्ग को अहसास दिलाये कि भले ही हम स्वतंत्र हो गये लेकिन विकास के पथ पर अब भी पीछे हैं जिसके लिये बिना जान की बाजी लगाये ही बहुत कुछ कर सकते तो फिर किसलिये बेकार की बातों में समय गंवाते क्यों नहीं देश को समृद्ध बनाने के पुनीत यज्ञ में अपने कर्मों की आहुति डाल उन शहीदों के स्वप्नों को साकार करते ???

आज भी ऐसे ही तीन भारत माता के वीर पुत्रों के बलिदान का दिवस हैं जो अपने कारनामों से अंग्रेज सरकार की नाक में दम करने की वजह से फांसी पर चढ़ा दिये गये जिनके नाम ‘ठाकुर रोशन सिंह’, ‘राम प्रसाद बिस्मिल’ एवं ‘अशफ़ाक उल्ला खान’ हैं जिनकी कहानी सभी युवाओं के लिये प्रेरणास्पद हैं कि इन्होने कम उम्र में ही अपने आपको तिरंगे की शान बरक़रार रखने के लिये अपने आपको जीते जी ही समर्पित कर दिया तो आज उनके बलिदान दिवस पर सभी देशवासियों की तरफ से उनको सलाम... सदा गूंजता रहे उनका नाम... जय हिंद... जय भारत... वंदे मातरम... :) :) :) !!!
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१९ दिसंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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