मंगलवार, 1 दिसंबर 2015

सुर-३३५ : "साधे निशाना सीधे लक्ष्य पर... न देखें इधर-उधर...!!!"


‘बीमारी’
कुछ का होता
इलाज़ संभव तो
कुछ होती लाइलाज़
मगर, जैसी भी हो वो
छूपाने या छूपने से तो
कुछ होने का नहीं
तो बेहतर कि
बाहर निकले और 
करें कुछ ऐसा कि खुद भी
स्वस्थ बने और
गर, ये संभव न भी हो तो 
दूसरों को ही करें
आख़िर, जीना इसी का नाम तो हैं
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मित्रों...,

१ दिसंबर ‘एड्स दिवस’ जो मनाया तो जा रहा इतने सालों से मगर, सार्थक तभी होगा जबकि इसका नामों-निशान पूरी दुनिया से मिट जायेगा पर, आज इतनी अधिक जागरूकता और उपचार के साधनों के बावजूद भी अब तलक भी न सिर्फ लोग इसके चपेट में आ रहे हैं बल्कि इसकी गंभीरता से भी अनजान बने हुये हैं ये सोचकर कि वो तो सभी सावधानियां रख रहे तो फिर उनको तो ये रोग होने से रहा क्योंकि उनके जेहन में तो अपनी मनमानी करने के साथ-साथ इससे बचाव का उनका मनचाहा उपाय ही समाया रहता जिसे वे न जाने कब से देखते-सुनते आ रहे तो फिर चिंता किस बात की ये सोच बेफ़िक्र जो जी में आता करते रहते कि उन्हें तो इससे बचने का मानो ‘ब्रम्हास्त्र’ ही  मिल गया लेकिन भूल जाते कि जिसे वे अचूक हथियार समझते वो भी कभी-कभी चूक जाता लेकिन यदि उन्होंने इसके बजाय संयम-धैर्य खुद पर नियंत्रण करने का तरीका अपनाया तो फिर सिर्फ ये ही क्या दुनिया की कोई भी बीमारी उनको छू न पायेगी बशर्ते कि वे अपनी इंद्रियों पर काबू पाने के प्रति दृढ़ संकल्पवान हो और अपने मन को आकर्षण से बचाने के लिये उन सब चीजों से परे जाने की बजाय उसकी लगाम को कसकर थाम ले ताकि वो किसी भी दृश्य या अदृश्य कल्पना से भी विचलित न हो सके पर, ये तो थोड़ा मुश्किल लगता तो सब आसान उपाय की तरफ झुकते जिसमें उनका अपना स्वार्थ छिपा होता क्योंकि अगला भी तो उनसे ये नहीं कह रहा कि वो अपने आपको नियंत्रित करें बल्कि वो तो उन्हें खुली छूट दे रहा कि जो भी करना हो बेशक करो बस, अपने पास उसके ‘वायरस’ को आने से रोकने एक माध्यम का इस्तेमाल करो वो भी मुफ़्त में सरकार से हासिल करो वाह... क्या कहने हैं  

सच, जब भी कभी ‘टी.वी.’ पर या सड़क के किनारे लगे ‘होर्डिंग्स’ या फिर दीवारों पर इससे संबंधित सर्वाधिक प्रचलित जुमला सुनती या पढ़ती हूँ कि ‘एड्स से सावधानी हेतु ‘कंडोम’ का इस्तेमाल करें’ तो हमेशा बेहद अजीब लगता भले ही ये कटू सत्य हैं कि इसकी मुख्य वजह ‘असुरक्षित यौन संबंध’ हैं तो क्या ये ज्यादा उचित न होगा कि इसके लिये ये कहा जाये कि इस तरह के संबंधों से परहेज किया जाये पर सरकार भी मानव मन की उस कमज़ोरी पर विजय पाने का सूत्र उनके हाथ में थामने की जगह ये चीज़ रख देती और ‘रेड लाइट एरिया’ को बंद करने की जगह वहां जाते समय क्या ले जाना जरूरी हैं ये बताती मतलब कि सभी ‘एड्स’ रोधी संस्थायें या नियंत्रक कार्यकर्त्ता लोगों को ये कहते कि जो इस ‘राजरोग’ का सबसे बड़ा कारण हैं उसको समाप्त न करो क्योंकि उन्हें पता कि उनके कहने मात्र से ही कौन इस बात को मान लेगा तो वे उन्हें रोकते नहीं इसके अलावा इसके पीछे उनका एक तर्क ये भी रहता कि ‘एच. आई. वी. ग्रसित’ व्यक्ति यदि अपनों के साथ भी सावधान रहना भूल जाये तो कहीं इस गलती का खामियाज़ा उसके साथी को न उठाना पड़े लेकिन कोई ये न सोचता कि बंदा उसी जगह पर असावधानी जरुर करता तो फिर ये तो साफ़ हो गया कि सभी लोग उस प्रमुख कारक को अनदेखा कर कहीं और निशाना लगा रहे तभी तो जो परिणाम अपेक्षित था वो अब तक मिला नहीं कि कोई भी व्यक्ति अपने जीवनसाथी के संग रहते समय इसकी उपेक्षा करता तो जिसे दूर-दूर तक इस खतरे का अंदेशा न था वही एक दिन अँधेरे कमरे में अकेला बैठ अपने जीवन की बची-खुची घड़ियाँ गिनता कोई इस पहलू की तरफ देखता ही नहीं वरना, इस रोग से मरने वालों या इसकी चपेट में आने वालों के आंकड़े इतने भयावह कभी न होते

क्या आपको पता कि १९८० से लेकर अब तक केवल ३५ वर्षों की इस छोटी-सी अवधि मात्र में ७.८ करोड़ से कुछ अधिक ही लोग इसकी लपेट में आ चुके हैं जिनमें से ३.९ करोड़ लोग तो इसकी वजह से मौत की आगोश में समा चुके हैं तो ३.५ करोड़ लोग अब भी इससे जूझ रहे हैं जिसमें से २१ लाख तो भारतीय ही हैं और सर्वेक्षण बताते हैं कि एशिया में १० में से ४ लोग इस वायरस के आक्रमण से लस्त-पस्त हो एकाकी जीवन बिता रहे हैं भले ही इसके साथ ये सुखद तथ्य भी शामिल हो कि २००१ से अब तक इसके संक्रमण में ३८% की कमी भी आई हैं जो अपने आप में खुद ही ये दर्शाता कि स्थितियां अधिक नियंत्रण में नहीं कि लोगों का अपना आप ही उनके नियंत्रण में नहीं तो फिर दूसरी वजहें भी इतनी मायने न रखती क्योंकि जब हम किसी अपराधियों के सरगने को ही मार देते तो उसके बाक़ी साथी तो स्वयमेव ही कमज़ोर होकर हार मन लेते तो इस ‘एड्स दिवस’ से यहाँ-वहां की जगह सीधे चिड़िया की आँख पर निशाना लगाये तो सब कुछ अपने आप ही संभल जायेगा... सच... :) :) :) !!!
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०१ दिसंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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