बुधवार, 30 दिसंबर 2015

सुर-३६४ : "हिंदी गज़ल के सुखनवर... 'दुष्यंत कुमार' !!!"


हिंदी साहित्य
करता गर्व उन पर
जो बढ़ाते उसे
करते उसका नाम अमर
जिनकी कलम
उगलती नये शाब्दिक स्वर
कुछ इसी तरह 
दुष्यंत कुमार त्यागीने
किया अप्रतिम लेखन
कि पाकर उनको
हर एक विधा गयी संवर ॥
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मित्रों...,

मत कहो, आकाश में कुहरा घना हैं,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना हैं ॥

सड़कसे लेकर संसदतक ऐसा कोई स्थान नहीं जहाँ पर कि दुष्यंत कुमार त्यागीकी तीख़ी कलम से निकले जोशीले शब्दों का प्रयोग न किया जाता हो जब भी किसी को कहीं पर भी कोई बात असरदार तरीके से प्रस्तुत करना हो तो वो इनकी लिखी पंक्तियों का ही सहारा लेता हैं कि कम से कम शब्दों में भी वो बड़ी से बड़ी इतनी आसानी से बयाँ कर जाते कि लफ्ज़ भले ही सहज-सरल हो मगर उसके अर्थ बड़े गूढ़ होते इसलिये तो उनका इस्तेमाल किया जाता कि उनको सुनकर वहां उपस्थित हर श्रोता की रगों में दौड़ने वाले लहू में उबाल आ जाता साथ-साथ सकारात्मकता की तरंगों से वातावरण उत्साह से भर जाता कि शब्दों में ओज भरने की इस कला में सबको महारत हासिल नहीं होती मगर, जिसने भी ये कला सीख ली फिर उसकी साधारण सी बात भी बेहद असरदार बन जाती जो शायद, उन्हें वरदान में प्राप्त हुई थी इसलिये तो उन्होंने जो भी लिखा वो सब आज भी उसी तरह उतने ही प्रभावी ढंग से बरक़रार हैं और आने वाले अनंत काल तक भी इसी तरह प्रासंगिक रहेगा कि वो किसी विशेष कालखंड या किसी ख़ास व्यक्ति को जेहन में रखकर नहीं लिखा गया बल्कि उनके लेखन का केंद्र बिंदु तो ज्यादातर आम आदमीऔर उसके हालातहैं जो हर युग में लगभग एक समान होते हैं अतः उनका उनसे जुड़ाव हमेशा ही बना रहेगा चाहे फिर ज़माना कितना भी आगे निकल जाये पर, मानवीय सम्वेदनायें, इंसानी फ़ितरत और जीवन के फलसफे तो हर समय वैसे के वैसे ही रहेंगे तो जिसने भी इस शाश्वत सत्य को जान लिया फिर उसकी लेखनी ने हर हृदय में सदा के लिये अपना नाम अंकित कर लिया तभी तो दुष्यंत कुमारआज भी अपने हर शब्द के साथ अपने ही नाम से जाने जाते हैं ।

कैसे आकाश में सूराख नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों ॥

आज भी निराश मन को आशा से भरने के लिये इन शब्दों का प्रयोग किया जाता जो बताता कि दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं केवल मन में उसे करने की तीव्र लगन और उत्साह हो तो फिर आसमान में छेद किया जा सकता हैं तो जहाँ भी सुप्त पड़े हौंसलों को जगाना हो वहां ये पंक्तियाँ बड़ी काम आती हैं इसी तरह का प्रभाव उत्पन्न करने के लिये कभी-कभी इस शेर को भी पढ़ दिया जाता हैं---

वे मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता,
मैं बेक़रार हूँ आवाज़ में असर के लिए ॥

जो व्यक्ति को ये विश्वास दिलाता हैं कि अगर उसके कहने और करने के अंदाज़ में दम हैं तो फिर वो अपनी कथनी व करनी से किसी को भी प्रभावित कर सकता हैं, हर मुश्किल को आसान बना सकता हैं । इसी तरह जब किसी के समक्ष ये स्थिति आती कि वो लोगों को ये अहसास दिलाना चाहता कि जो कुछ भी वो कर रहा हैं उसका उद्देश्य किसी तरह का सक्रिय परिवर्तन लाना हैं तो फिर इससे बढ़कर दूसरा कोई उदाहरण नहीं मिलता---

सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं,
मेरी कोशिश हैं कि ये सूरत बदलनी चाहिए ॥

उन्होंने हर तरह की परिस्थिति की कल्पना कर उसके अनुरूप कोई न कोई असरदार शेर लिखा हैं तो कहीं पर भी किसी भी तरह के अवसर पर जब अपने कहे गये शब्दों में वजन डालना हो तो फिर उसका एकमात्र समाधान उनकी लिखी गज़ल में मिलता यूँ तो उन्होंने साहित्य की लगभग हर विधा में लेखन कार्य किया फिर चाहे वो कविताहो या गीतया फिर ग़ज़लया नाटकया कहानीउन्होंने अपनी सशक्त कलम से उनमें नया रंग भर उनको नूतन अर्थ दिया लेकिन जो चमत्कार या बोले कि सम्मोहन उनकी गज़लों ने अपने पाठकों किया वैसा प्रभाव कोई भी विधा पैदा न कर सकी तो मूलतः उनको हिंदी साहित्य जगत में कवि, कथाकार, नाटककार, गीतकार की जगह गज़लकारके रूप में जाना जाता जिन्होंने उर्दू की बजाय हिंदीभाषा को गज़ल कहने के लिये चुना और ऐसी लोकप्रियता हासिल की जो उनसे पहले किसी को न नसीब हुई अल्पायु में ही अपने समकालीन सभी साहित्यकारों में उनका कद सबसे बड़ा था लेकिन हमारा दुर्भाग्य कि महज़ ४२ साल की कम उम्र में वे हम सबको छोड़ आज ही के दिन ३० दिसम्बर १९७५ को चले गये पर, उनके लिखे शब्दों में सदा-सदा जीवित रहेंगे तो आज उनकी पुण्यतिथि पर उनके ही शब्दों से उनको शब्दांजलि अर्पित करती हूँ---

तेजी से एक दर्द
मन में जागा
मैंने पी लिया,
छोटी सी एक ख़ुशी
अधरों में आई
मैंने उसको फैला दिया,
मुझको संतोष हुआ
और लगा---
हर छोटे को
बड़ा करना धर्म हैं ॥

वाकई... उन्होंने अपना लेखकीय ही नहीं मानवीय धर्म भी पूरी ईमानदारी से निभाया तो हमारा भी फर्ज़ बनता कि हम उनकी पुण्यतिथि पर उनको मन से नमन कर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करे... :) :) :) !!!     
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३० दिसंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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