शनिवार, 26 दिसंबर 2015

सुर-३६० : "उधम सिंह... तुम सचमुच हो सिंह...!!!"

देशभक्ति
जोश और साहस 
रगों में भरती
जिसके दम पर ही
कोई भी जान
कभी न किसी से डरती
दुश्मन हो कोई भी
जब वीरता
बढ़ाये आगे कदम 
फिर न वो पीछे हटती
क्रांति की मशाल
उसके अंतर में
अनवरत जलती रहती
उधम सिंहहो या कोई और
सदा हाथों हाथ चलती ॥  
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मित्रों...,

भारतीय इतिहास में १३ अप्रैल १९१९ का दिन किसी स्याही से नहीं बल्कि अनगिनत निर्दोष मासूम बेगुनाहों के लहू से लिखा गया हैं जिसे पढ़कर हर देशवासी की आँखों में आंसू तो लहू में उबाल और रगों में क्रोध का सैलाब दौड़ने लगता कि किस तरह से एक क्रूर फ़िरंगी अधिकारी ने जलियावाला बाग़में एकत्र बेहिसाब जनसमूह को धोखे से चारों तरफ से घेर उस पर गोलियों की अनवरत बारिश शुरू कर दी कि उनको संभलने का मौका तक नहीं दिया गया जिसके कारण उस जगह की जमीन उन बेकुसूरों के खून से लाल हो गयी जिसमें न जाने कितने अबोध नन्हे-मुन्ने तो कितनी ही निर्दोष महिलाओं और पुरुषों के अलावा अजन्मे शिशु भी काल की भेंट चढ़ गये जिसकी कल्पना मात्र से हम सहम जाते पर, कभी सोचा कि उस वक़्त जिन देशभक्तों ने इस घटना को देखा या सुना या पढ़ा उन पर क्या गुज़री होगी कि इस हृदयविदारक घटना ने तो अनेक नये क्रांतिकारी भी पैदा कर दिये जिन्होंने इसे अपने मन पर ज्यों का त्यों अंकित कर लिया और जब भी कभी उनके हौंसलों में कमी आती तो वे अपने आपको उसके स्मरण मात्र से पुनः अपार जोश से भर लेते ।

भारतमाता के इन्हीं वीर सपूतों के बीच एक ऐसा दिलेर बहादुर भी मौजूद था जो आज ही के दिन २६ दिसंबर १८९९ को वीरभूमि पंजाब के संगरूरज़िले के सुनामगाँव में पैदा हुआ और बचपन से ही बेहद कष्टों में जीवन-यापन किया क्योंकि बालपन में ही एक-एक कर उनके माता-पिता उनको अकेले छोड़कर चले गये साथ रह गये थे एक बड़े भाई सो बदकिस्मती ने उनको भी छीन लिया पर, वे किसी भी तरह की परिस्थिति या किसी भी संकट से घबराये नहीं बल्कि हर मुश्किल का सामना डटकर किया जिसने बचपन से ही उनके भीतर सहनशीलता, जुझारूपन, निर्भीकता और किसी भी हाल में कभी न झुकने के गुणों का विकास किया यही वजह कि वो विपरीत हालातों में भी सर उठाकर चलते रहे तो कितना भी शक्तिशाली दुश्मन सामने आया उससे तनिक भी भयभीत हुये बिना अपने लक्ष्य को हासिल कर ही रुके उनकी जीवन गाथा यही बताती कि वे सही मायनों में देशभक्त थे जो केवल अपने देश को नहीं बल्कि उस देश के वासियों को भी अपना भाई-बहिन मानते थे तभी तो उनके दुःख-दर्द से वे भी उसी तरह तड़फ उठे थे जैसे कि ये उनकी अपनी ही पीड़ा हो और जब किसी देश में रहने वाले लोगों के भीतर इस तरह का जज्बा एवं अपनापन हो तो फिर उसे कौन सदा गुलाम बनाये रख सकता ।     

उधम सिंहको तो वैसे भी 'सर्व धर्म सम भाव' का प्रतीक माना जाता था क्योंकि उन्होंने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद आज़ाद सिंहरख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मो का प्रतीक है उनकी ये मनोभावना भी स्वतः ही ये ज़ाहिर करती कि वे कितने संवेदनशील और इंसानियत से भरपूर थे जिनके लिये किसी भी मानव में कोई भेद नहीं था वे सभी मजहबों को एक समान मान उनका एक-सा सम्मान करते थे तभी तो अपने नाम में सभी धर्मों को स्थान दिया था इसलिये तो १३ अप्रैल १९१९ को जबकि वे लगभग २० बरस के रहे होंगे पर, इस क्रूरता ने उनके अंदर इंतकाम की ऐसी आग़ जलाई कि वो अनवरत २१ सालों तक जलती रही जब तक कि उन्होंने इस नृशंस हत्याकांड को अंजाम देने वाले ज़ालिम ब्रिगेडियर जनरल रेजीनल्ड एडवर्ड हैरी डायरको ढूंढकर १३ मार्च १९४० में उसके देश में ही जाकर मार नहीं दिया पर, उसके बाद वे भागे नहीं और बड़ी निडरता से अपना आत्मसमर्पण कर दिया ऐसे वीर सपूत को विस्मृत करना किसी कृतध्नता से कम नहीं तो आज उनके जन्मदिवस पर ये शब्दांजली उनको समर्पित हैं... :) :) :) !!!
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२६ दिसंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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