रविवार, 6 दिसंबर 2015

सुर-३४० : "काव्यकथा : कहाँ गयी... इंसानियत और संवेदना...???”

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मित्रों...,



‘शिमोन’ ने रोज की तरह अख़बार खोला और जैसे ही उसने पढ़ी ये खबर कि किस तरह से सड़कों पर पड़ी एक जीती-जागती जिंदगी दम तोड़ती रही और आस-पास चलते-फिरते कहने को तो जिंदा मगर, हकीकत में बेजान लोग उसे देख गुजरते रहे पर, कोई मदद को आगे न आया तो... तो वो सोचने लगी कि आखिर... ‘इंसानियत’ और ‘संवेदना’ चली कहाँ गयी ???
  
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अख़बार में
जब पढ़ी ये खबर कि
लूटकर वहशी के हाथों
फेंक दी गयी
जीती-जागती देह
खुलेआम सड़क पर
देखते रहे जिसे
आते जाते लोग अनेक
पर, न मदद करने आया एक
तब यकीन की सारी हदों से
एकदम परे जाकर
आखिर, ये मानना ही पड़ा कि
'इंसानियत' और 'संवेदना' भी
यूँ ही दम तोड़ रही सड़कों पर
नहीं फुर्सत किसी को
जो आगे आये बचाने उसको ।।
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वो समझ गयी कि सच्चाई यही हैं ये सभी मानव के सहज गुणधर्म जो कि सभी के अंदर प्राकृतिक रूप से विद्यमान होते थे दरअसल... आज अप्राकृतिक वातावरण में रहते हुये उसी की तरह कृत्रिम हो गये हैं और अब भी यदि फिर से अपने भीतर झांक उनको पुनर्जीवित न किया तो कल को उसे किसी और जगह से आयातित भी न कर सकेंगे कि ये तो भारत की मूल पहचान हैं जो हमने ही दूसरों के चक्कर में पड़ किसी कोने में दबा दी... तो इससे पहले कि वो मर ही जाये आओ उसे फिर से जिलाये आप अपने ही वज़ूद को बचाये... :) :) :) !!!   
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०६ दिसंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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