रविवार, 20 दिसंबर 2015

सुर-३५४ : "अभिनय का जुदा रंग... 'नलिनी जयवंत'...!!!"

गोरी-गोरी
ओ बांकी छोरी
कहीं गयी
छोड़ गलियाँ मोरी
फ़िल्मी दुनिया
अब भी याद करें तोरी
‘नलिनी जयवंत’
तुमसी नहीं कोई गौरी
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मित्रों...,

हिंदी फ़िल्मी इतिहास के शुरूआती दौर में जिन कलाकारों ने काम किया उन्होंने अपना नाम अमिट करवा लिया कि उस वक्त सब कुछ बिना प्रशिक्षण और स्वयं की मेहनत से ही किया जाता कोई तकनीक नहीं जो किसी कमी को दूर कर सके अतः अपने आपको मुकम्मल साबित करने हर एक विधा में दक्ष होना पड़ता कि उस समय न तो पार्श्व गायन ही संभव था, न ही डबिंग की कोई सुविधा, न ही डुप्लीकेट की व्यवस्था तो ऐसे में जो भी कलाकार पूर्णतया कला के प्रति समर्पित एवं अपने कार्यक्षेत्र में हर तरह से पारंगत थे उन्होंने इस फ़िल्मी संसार के सौ वर्षों के इतिहास में अपना एक पृथक अध्याय लिख दिया जिसमें एक नाम पचास-साठ के दशक में दर्शकों के दिलों पर अपनी भोली-भाली मुस्कान और मासूम सौंदर्य युक्त आकर्षक शख्सियत से लोगों के दिलों पर राज़ करने वाली ‘नलिनी जयवंत’ का हैं जिसे अब भी कोई भूला न होगा कि उनके ताज़ा गुलाब से खिले हुये चेहरे ने हर किसी को अपना मुरीद बना लिया था जब उन्होंने रजत पर्दे पर, अपनी उस आभामय कांति की चमक बिखेरी जिससे देखनेवालों की आँखें चौंधिया गयी जो महज़ तेरह साल की नाज़ुक उम्र में ‘राधिका’ फिल्म के जरिये १९४१ में फ़िल्मी दुनिया में पदार्पण कर चुकी थी चूँकि बचपन से उनको नृत्य व गायन से लगाव था और केवल छे साल की कमसिन आयु में रेडियो स्टेशन के बालसभा कार्यक्रम में अपनी उस प्रतिभा का प्रदर्शन करने के अतिरिक्त दस साल की थी स्कूल के मंच पर भी सबको अपनी कला से प्रभावित किया फिर अवसर मिला ररंगमंच पर अभिनय का तो ‘रविंद्रनाथ टैगोर’ लिखित ‘श्रीमतीजी’ में नायिका की भूमिका कर इस दिशा में भी अपनी कामयाबी का परचम लहराया जिसने उनके लिये फ़िल्मी जगत में आगमन को सुविधाजनक बना दिया तो जब उनकी प्रथम फिल्म प्रदर्शित हुई तो उसे तो सफल होना ही था तो वही हुआ और उनके ताजगी भरे चेहरे तथा मासूमियत से लबरेज अदाओं ने सब पर मानो जादू कर दिया फिर उसके बाद उनकी ‘सिस्टर’, ‘निर्दोष’, ‘आँख मिचौली’ तथा ‘आदाब अर्ज’ जैसी अन्य फ़िल्में भी आई जिसने उनके  अभिनय का ख़ुमार और लोकप्रियता का आलम चरम पर पहुँचा दिया था    

‘नलिनी’ की ख़ासियत ये थी कि उनका व्यक्तित्व आम तौर पर खुबसूरती के मापदंड पर खरी उतरने वाली अभिनेत्रियों से एकदम जुदा था कि उसमें किसी चित्रकार की तुलिका से निकली नाज़ुकी का जुदा अंदाज़ तो था ही सादगी का भी अद्भुत संगम था जिसमें वे अपनी बड़ी-बड़ी बादामी आँखों को मटका शरारत का रंग भी घोल देती तो साथ ही उनकी छवि में पवित्रता का भी एक अलहदा अंदाज़ नज़र आता था जो उनको भीड़ से अलग करता था इसके बावजूद भी वे हर तरह की भूमिका के लिये माफ़िक थी क्योंकि उनमें हर सांचे में ढल जाने का अनोखा लचीलापन भी शामिल था इसलिये तो वे उस दौर के लगभग हर नामचीन अभिनेता के साथ काम कर सकी फिर चाहे वो ‘अशोक कुमार’ हो या ‘दिलीप कुमार’ या ‘देव आनंद’ या ‘सुनील दत्त’ सबके साथ उनकी जोड़ी जमी पर, ‘अशोक कुमार’ के साथ तो उन्होंने कमाल ही कर दिया कि लोगों ने इस जोड़े को सर्वाधिक पसंद किया जब फिल्मिस्तान की ‘समाधि’ आई जो कि नेताजी ‘सुभाषचंद्र बोस’ की ‘आज़ाद हिंद फौज’ की पृष्ठभूमि पर बनी थी जो प्रदर्शन के साथ ही न सिर्फ सफल हुई बल्कि उनकी जोड़ी हर किसी को पसंद आई और उन पर फिल्माया गया गीत "गोरे-गोरे ओ बांके छोरे, कभी मेरी गली आया करो..." तो आज भी यदा-कदा हर किसी की जुबान पर आ ही जाता तो बस, इसके बाद ‘अशोक कुमार’ के साथ फिल्मों का सिलसिला चल निकला तो एक के बाद एक ‘संग्राम’, ‘काफला’, ‘चंचल’, ‘शोले’, नौबहार’, ‘सलोनी’, ‘जलपरी’ और ‘नाज़’ जैसी फ़िल्में आती गयी कहते हैं कि ‘नाज़’ पहली ऐसी फिल्म थी जिसकी शूटिंग विदेशों में हुई थी और ‘मि. एक्स’ वो पहली हिंदी फिल्म थी जिसमें ‘रॉक एन रोल’ जैसे आधुनिक डांस को रखा गया था यही इस जोड़ी की अंतिम फिल्म साबित हुई

‘देवानंद’ के साथ भी उन्होंने कई फिल्मों में काम किया और देखने वालों को उनका साथ भी बेहद पसंद आया वे पहली बार ‘एक नजर’ में साथ-साथ आये उसके बाद ‘हिंदुस्तान हमारा’ और ‘ख्वाजा अहमद अब्बास’ की हिंदी-अंग्रेजी दोनों भाषाओँ में एक साथ बनने वाली फिल्म ‘राही’ में भी उन दोनों को एक साथ लिया गया जिसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया और उसके बाद दोनों ने ‘मुनीमजी’ और ‘काला पानी’ में पुनः काम कर हर किसी को अपना दीवाना बना लिया कि आज भी हर कोई गाता “जीवन के सफर में राही मिलते हैं बिछड़ जाने को, और दे जाते हैं यादें तन्हाई में तड़पाने को” या फिर ‘नज़र लागी राजा तोरे बंगले पर...” जिसमें ‘नलिनी’ की अदाओं से बच पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हैं कि उनके पास तो अदाओं का बेशुमार खज़ाना था जिसके कारण लोगों को हर बार उनका एक नया अंदाज़ देखने को मिलता चाहे उनके साथ अभिनेता कोई भी हो तभी तो ‘दिलीप कुमार’ के साथ भी उनकी अदायगी को बेहद पसंद किया भले ही उनकी साथ में फ़िल्में आधिक नहीं हैं लेकिन जो भी आई सब यादगार हैं चाहे वो ‘अनोखा प्यार’ हो या ‘शिकस्त’ उसमें उनका अपना आय भी चरम पर नज़र आया जिसके प्रभाव से फिर कोई भी बच नहीं पाया और आज भी उनको याद करता उनके गाने सुनता या उनकी फ़िल्में देखता कि अब तो केवल यादें ही शेष

उस दौर में ‘नलिनी’ अपने देशी-विदेशी पहनावे एवं अलग-अलग हेयर स्टाइल की वजह से कॉलेज की छात्राओं की आदर्श बोले तो ‘रोल मॉडल’ थी कहते हैं कि वो पहली अभिनेत्री थी जो अपने साथ हेयर ड्रेसर को रखती थी यहाँ तक कि फिल्मों के प्रीमियर पर तो वे अपनी डिज़ाइन की हुई पोशाक पहनकर जाया करती थी और दर्शकों के बीच उनकी लोकप्रियता का अनुमान लगाने ‘फ़िल्मफेयर’ ने भारतीय रजतपट की सबसे सुंदर नायिका चुनने हेतु एक अभियान चलाया जिसमें ‘मीना कुमारी’, ‘बीना’, ‘नसीम’, ‘निगार’, ‘नलिनी’ जैसी अभिनेत्रियों में से सर्वाधिक सुंदरी का चयन करना था तो सबने बहुमत से ‘नलिनी’ को ही चुना जो साबित करता कि उन्होंने अभिनय के साथ-साथ अपनी खुबसूरती से भी सबको प्रभावित किया था तो आज उसी सुंदरी की पुण्यतिथि पर ये शब्दांजलि... ‘जब-जब फूल खिले... तुझे याद किया हमने...’ :) :) :) !!!             
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२० दिसंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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