मंगलवार, 22 दिसंबर 2015

सुर-३५६ : "आई सबसे बड़ी रात... करो तारों से बात...!!!"

प्रकृति की
अद्भुत कारीगरी
सदियों से हैं
आज तलक भी जारी
दिन के बाद
आती रात की बारी
कभी रौशनी तो
कभी चांदनी गयी हारी
कोशिश कर भी
समझी न दुनिया सारी
क्यों होती हैं ?
तकदीर सब पर भारी
नक्षत्रों की पहेली
सबको सदा उलझाती   
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मित्रों...,

विज्ञान ने भले ही दुनिया की हर शय को समझने का दावा किया हो या ज्ञान के सभी क्षेत्रों में अपना परचम लहरा दिया हो लेकिन फिर भी बात जब कुदरत की आती तो फिर उसके आगे तो सबकी बोलती बंद हो जाती कि वो जो कुछ भी करती उसे समझने के लिये मानव के पास तर्कों की कमी पड़ जाती कि ग्रहों-नक्षत्रों की बातें तो आज भी मनुष्य के लिये पहेली बनी हुई हैं जो आये दिन मानवों को अपना एक अलग रंग और एक जुदा अंदाज़ दिखलाती जिसकी समीक्षा करते-करते पोथियाँ भर जाती क्योंकि इंसान विज्ञान के जरिये भले ही सृष्टि के अनगिनत रहस्यों को उजागर कर चुकी हो लेकिन फिर भी उसके मिज़ाज को ठीक-ठीक समझ नहीं पाती और न ही पल-पल बदलते स्वरुप का ही कोई अंदाज़ा लगा पाती जो उसके वश के बाहर होता कि कुछ घटनायें एकाएक ही घट जाती जब तक कि हम उनको समझे या उनका अनुमान लगाये वो तो खत्म भी हो जाती ऐसे में विज्ञान को भी इस बात पर सहमत होना पड़ता कि कोई अदृश्य शक्ति या परम सत्ता हैं जो कि इस संसार को चला रही जिस पर वो अब तक जीत हासिल नहीं कर सका न ही उसे अपने हिसाब से ही चला सकता तभी तो वो केवल मौसम का पूर्वानुमान लगा सकता लेकिन उनको अपनी जरूरत के अनुसार बदल नहीं सकता और जो भी अनहोनी हो जाती उसकी वजह का सटीक आकलन नहीं कर पाता जो स्वतः ही ये सिद्ध करता कि हम सबकी डोर तो उपरवाले के हाथ हैं और हमारी क़िस्मत का फैसला अंतरिक्ष में विराजमान ग्रह-नक्षत्र करते जो हमारी ज़िंदगी में शतरंज की बाज़ी खेल हमको कभी ‘शह’ तो कभी ‘मात’ देते लेकिन हम कभी भी उन पर जीत हासिल नहीं कर पाते भले ही उसके अस्तित्व को नकार आगे बढ़ जाये फिर भी दिल के किसी कोने में ये ‘मलाल’ या ‘सवाल’ तो रह ही जाता कि जो कुछ भी हुआ यदि उसकी वजह हमारा व्यवहार नहीं तो फिर क्या ? आखिर क्यों हमारे साथ ही ऐसा हुआ ?? या जब सब कुछ सही था तो परिणाम अपेक्षित क्यों नहीं मिला ???

प्रकृति की कारीगरी तो हम नित ही देखते और आश्चर्य से भर जाते कि वो किस तरह से इस विशाल सृष्टि का अथक संचालन करती जिसके काम-काज में कभी कोई त्रुटि नहीं होती बल्कि हम मानवों ने उसका संतुलन इतना बिगाड़ दिया उसके बाद भी वो उसी तरह से हम पर अपनी कृपा बरसाती रहती पर, जब गुस्से में आती तो फिर गुनाहगार या बेगुनाह किसी को नहीं देखती बल्कि उस समय में सब पर एक सा ही कोप ढाती अतः हमें आये दिन होने वाली प्राकृतिक आपदाओं से सबक लेकर कुदरत के तराजू के पलड़ों को सम पर रखने का प्रयास करना चाहिये ताकि केवल हम ही नहीं बल्कि इस कुदरत के सभी जीवधारी साथ-साथ रहते हुये एक-दूसरे का सहयोग करते हुये सबकी रक्षा कर सके क्योंकि बिना कुदरत के हमारा जीना संभव नहीं अतः उसके छोटे-छोटे संकेतों में छिपे अर्थों को जानने का प्रयत्न करना चाहिये और उसके अनुसार ही अपनी जीवन शैली को भी परिवर्तित कर आगे बढ़ना चाहिये पर, हम तो सिर्फ अपनी सुविधा, अपने स्वार्थ को ही तरजीह देते फिर भले ही उसके कारण प्रकृति को नुकसान भी पहुंचाना पड़े तो पीछे न हटते कि अपने आपको सर्वश्रेष्ठ समझते जबकि प्रकृति से बड़ी कोई पाठशाला नहीं जो बिना शुल्क लिये कठिन से कठिन सबक भी बड़ी आसानी से सिखा देती केवल आँखें खुली हो और मन में सीखने की लगन हो तो फिर ये धरती, चाँद, सितारे, पत्ते, हवायें, मिटटी, बादल, झरने, नदी, पक्षी, पेड़-पौधे.... यानी कि दुनिया की हर शय कुछ तो पढ़ाती जिसे जानकर हम ‘कृत्रिम’ से ‘प्राकृतिक’ बन सकते तो आज २२ दिसंबर भी एक ऐसा ही तिथि हैं जो अपने साथ ‘सबसे छोटा दिन’ और ‘सबसे बड़ी रात’ लेकर आई हैं जिसके दो दिन बाद ही बड़े दिन का आगाज़ भी हो जायेगा तो फिर आज सबसे लंबी नींद लेने का रिकॉर्ड बनाये... सर्दी की इस लंबी रात में सोने का जश्न मनाये... :) :) :) !!!
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२२ दिसंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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