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मित्रों...,
ज्ञान तो कभी भी कहीं से
भी प्राप्त हो जाता हैं बशर्तें मन की आँखें खुली हो---
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गुलदान में
फूल सजाते-सजाते
न जाने कैसे ?
एक काँटा
कहीं से चुभ गया
मगर,
दर्द उसने नहीं
बल्कि...
उस ताने ने दिया
जो मेरे सिसकारी भरने पर
पीछे से मारा गया---
"एक काम भी तो
ढंग से कर नहीं सकती
जब पता था कि उसमे कांटे
हैं तो
संभलकर नहीं लगा सकती
थी" ।।
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तो बस... ऐसे ही एक अनुभव
ने दिया ये दिव्यज्ञान... :) :) :) !!!
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०७ दिसंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह “इन्दुश्री’
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