शुक्रवार, 11 मार्च 2016

सुर-४३६ : "लघु कथा : “स्ट्रेस रिमूवर...!!!”


दोस्तों...

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‘नमिता’ अलार्म बजने से पहले ही उठ जल्दी से काम में जुट गयी कि समय से सारे काम निपटा ले ताकि किसी को उससे कोई शिकायत न हो और बस, ये सोचते-सोचते उसने जल्दी से नाश्ता बना चाय चढ़ा कर अपने पति को उठाया ही था कि दूसरी तरफ से ससुर जी के कमरे से जोर-जोर से चिल्लाने की आवाज़ सुनाई दी वो किसी बात पर सासू माँ पर चिल्ला रहे थे कि उन्होंने उनके जरूरी कागजों पर हेयर आयल गिरा दिया और इतने सालों में भी उनको काम करने की तमीज नहीं और भी न जाने क्या-क्या जब भी कोई बात होती तो ससुर जी ऐसे ही नाराज़ होते थे और वो समझ गयी कि अब सासू माँ अपना गुस्सा उस पर उतारने आती ही होगी क्योंकि हमेशा यही होता था जब भी घर में या बाहर किसी का भी कोई झगड़ा होता तो पराजित शख्स अपनी खीझ निकालने उसे ही निशाना बनाता था और वो उपर से बेचारी बन कान में सब्र की रुई ठूंसकर सबकी सुन अकेले में मंद-मंद मुस्कुराती अपने काम निपटाती जिसे देख कोई ये जान नहीं पाता कि आखिर वो ये सब किस तरह कर पाती मगर, ये राज कोई न जान पाया कि ‘नमिता’ ये जान चुकी थी कि यदि उसके ‘स्ट्रेस रिमूवर’ बनने से घर में शांति बनी रहती हैं तो ये कोई बहुत बड़ा त्याग तो नहीं बल्कि शिक्षित बहु व समझदार होने का अपना ही एक अलहदा अंदाज़ हैं जिसे घर में शांति भी बनी रहती और सबका गुस्सा उतर जाने से वे भी बाद में उससे अच्छा व्यवहार करते उस वाट वो अपनी दादी को बहुत बड़ा वाला थैंक्यू बोलती जिसने बचपन में उसे ये अचूक मंत्र दिया था, “पल दो पल के तूफ़ान को धरती की तरह मूक बन झेल लेना बाद में बड़ी राहत देता और रिश्तों को सदा बनाये रखता, बेटी नीलकंठ की तरह सारा गरल गले में ही रखना उसे कभी जुबां पर न लाना फिर देखना जिंदगी किस तरह अमृत बनती हैं”      
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१२ मार्च २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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