दोस्तों...
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जब...
ईश्वर के मन में
स्त्री के फ़रिश्ते
रुप की
नन्ही आकांक्षा
जगी
तब उसने बेटी की
रचना की
जिसने सच्चे मन से
उस दुर्लभ दैवीय
वरदान को
पाने की कामना की
उसके ही घर बिटिया
जन्मी
एक ऐसी छवि जो...
चिरैया-सी उड़ती फिरे
तितली-सी मंडराये
और गिलहरी-सी फुदके
तो हिरणी-सी कुलांचे
मारे
अपनी कोयल-सी मीठी
वाणी से
सबको खुशियाँ बांटे
अगर पड़े मौका तो फिर
वो दुर्गा-सी
संहारिणी
सरस्वती-सी कला
साधिका
और लक्ष्मी-सी बन
सबकी मनोकामनायें
पूरी करें
अपनी रोशन किरणों से
जगत में फैला अँधियारा
मिटाये ॥
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‘बेटी’ जितना प्यारा
अल्फाज़ उतनी ही प्यारी वो खुद होती जिसके बिना किसी भी घर में रौनक न होती कि भले ही
‘बेटे’ को घर के चिराग की संज्ञा दी गयी हो लेकिन उस चिराग को रोशन तो एक बेटी ही
करती जो यदि जन्मी न होती तो दुनिया में किसी के भी परिवार की वृद्धि न होती कि
वही तो जो जन्मदात्री का वरदान लेकर इस धरा पर आई और अपनी सृजन क्षमता से सृष्टि
रचयिता के समकक्ष स्थान हासिल करने का गौरव पा सकी तभी तो जिनके भी मन में बेटे की
कामना उन्हें ये नहीं भूलना चाहिये कि जब तक उनके घर बिटिया न होगी तब तक उनके
बेटे को ब्याहने भी किसी के घर वो न जन्मेगी तो फिर इस तरह यदि सब लडकियों की मारते
रहे तो फिर बेटियों के अभाव में एक दिन खुद भी अपने आपको मिटा डालेंगे कि दुनिया
के चक्र को चलाने जहाँ बेटा जरूरी वहीँ बेटी का भी महत्वपूर्ण योगदान बल्कि यदि
उसे पुत्र से ऊंचे स्थान पर दर्जा दिया जाये तो भी अतिश्योक्ति न होगी कि उसके
बिना तो किसी भी घर में किसी भी बेटे का जन्म लेना संभव नहीं फिर भी पता नहीं
क्यों इस समाज ने उसे दोयम दर्जे पर रख दिया कि वो जो अव्वल स्थान पर रहने वाले को
पैदा कर रही वो खुद निचले पायदान पर रखी गयी बिल्कुल उसी तरह से जिस तरह नींव का
पत्थर नजर नहीं आता और सब कंगूरे को देखते कुछ वैसा ही बेटी के साथ होता कि लोगों
को अपनी वंशबेल चलाने ख़ानदान का वारिस तो चाहिये लेकिन उसे पैदा करने वाली जमीन
नहीं चाहिये जिसके बिना सिर्फ बेटे का ही नहीं बल्कि इस जगत का भी विस्तार नामुमकिन
।
चले हम सब कल्पना
करें कि इस दुनिया में सिर्फ मर्द ही मर्द हैं कहीं कोई नारी नहीं किसी के भी घर
कोई ‘बेटी’ नहीं तो फिर क्या होगा करोड़ों की संख्या भी होगी न तो भी वीराना ही नजर
आयेगा जबकि किसी रेगिस्तान में यदि एक औरत भी मौज़ूद तो वो गुलशन नजर आयेगा क्योंकि
वो तो होती ही ‘फूल’ जो बगिया खिलाने का दम रखती जबकि पुरुष जिसे अपने बीज का बड़ा
अहंकार होता ये भूल जाता कि वो बेमानी यदि उसे रोपने के लिये धरती ही न हो फिर भी
हर किसी की यही कामना होती कि वो बिटिया भी उसके नहीं बल्कि किसी दूसरे के घर जन्म
ले मतलब कि बहु तो सबको चाहिये क्योंकि बेटा पैदा किया तो फिर उसका घर-परिवार तो
बसाना ही हैं लेकिन अपनी बेटी किसी को देकर उसके परिवार को बसाने की बात किसी के
मन में नहीं आती स्वार्थ की ये इन्तेहाँ हो चुकी कि इंसान अपने घर में रौशनी तो
चाहता वो भी किसी पराई ज्योत से लेकिन उसे अपने घर जलाने से डरता जबकि यदि इस
सम्पूर्ण सृष्टि को खुशहाल देखना चाहते तो नर-नारी के मध्य समान अनुपात होना
चाहिये पर, वो तो दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा कि विज्ञान व तकनीक ने तो उसे कन्या
भ्रूण को मारने के कई नवीन सुरक्षित तरीके सौंप दिये तो अब तो बेचारी को कोख़ में
ही खत्म कर दिया जाता फिर जब अपने ही किसी बेटे को बहु न मिलती तो ये ख्याल नहीं
सताता कि ये हमारे ही कर्मों का फल बल्कि तब तो किसी दूसरे को ही कोसते नजर आते
क्योंकि अपनी करनी तो किसी को नजर नहीं आती ।
जिनके घर ‘बेटी’ हैं
वही जानते कि उसने किस तरह से उनकी उदास जिंदगी को खुशियों से भर उनके चेहरे पर
सदा रहने वाली मुस्कान खिंच दी जो यदि कभी गायब भी होती तो इसलिये नहीं कि उसकी
वजह उनकी पुत्री या उसकी अनगिनत जिम्मेदारी होती बल्कि वही ‘कु-पुत्र’ होते जो
अपने कुचेष्टा को पूरी करने कभी किसी के आंगन की कली को नोंच डालते तो कभी अपना घर
भरने के चक्कर में किसी की कोख उजाड़ देते याने कि अब तो इस जहां में बिटिया किसी
अनमोल रतन की तरह हो गयी जिसके पैदा होने से पहले ही उसके पालकों को उसकी सुरक्षा की
चिंता सताने लगती कि अब तो चारों तरफ उस ख़जाने पर डाका डालने वाले फिर रहे जो अब
उसकी नाजुक उमर या मासूमियत का भी लिहाज नहीं करते केवल अपनी कामेच्छा को किसी भी
तरह से पूर्ण करने किसी भी नारी तन की तलाश में रहते फिर भले ही वो उनको दुधमुंही
बच्ची में मिले या फिर किसी युवती में या फिर किसी प्रोढ़ा में उनको तो सिर्फ देह
से मतलब यही वो भय जिसकी वजह से भी कई लोग बेटी के जन्म से घबराते और बेटा पैदा
करना चाहते पर, क्या बेटा होने मात्र से उनकी जिम्मेदारी खत्म उसे संस्कारों की
घुट्टी और नैतिकता की शिक्षा देकर अपने कर्तव्यों का भान करना भी तो जरूरी जिससे
कि इस तरह की वारदातों पर अंकुश लगाया जा सके फिर तो कोई भी उसकी पैदाइश पर दुखी न
होगा क्योंकि उसे खिलने-पुष्पित होने एक निर्भीक माहौल के साथ-साथ सुरक्षित भविष्य
भी तो मिलेगा ।
‘हर रूप में लगे तू
प्यारी... सलाम तुझे ऐ नारी’ की आज की कड़ी नारी के उसी ‘बेटी’ स्वरूप को समर्पित
हैं जिसके बिना बेटे का अस्तित्व संभव नहीं इसलिये ये याद रखे सब कि चाहिये यदि घर
का चिराग़ तो पैदा करो उसे चिराग़ को रोशन करने वाली बेटी जिसके बिना ये दुनिया ही
संभव न होती... कि उसने ही बेरंग दुनिया में रंगीनिया भरी... :) :) :) !!!
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०५ मार्च २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह “इन्दुश्री’
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