शनिवार, 12 मार्च 2016

सुर-४३७ : "दांडी मार्च ने रचा इतिहास... बना आज़ादी का आधार...!!!"


दोस्तों...

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‘नमक’
दिया प्रकृति ने
मगर, अपने ही देश में
बाँध उसे कानून में
करना चाहा वंचित परायों ने
तो सह न सके देशवासी
ले बगावत का बिगुल
निकल पड़े करने प्रतिकार
उन जालिमों का
आज ही का था वो दिन
जब ‘महात्मा गांधी’ ने जताने विरोध
किया दांडी को कूच
बना नमक दिखा दिया कि
नहीं सहेंगे अत्याचार
स्वतंत्रता पर सबका हैं अधिकार
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इतिहास में दर्ज सबसे बड़े आंदोलनों में से एक हैं ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ जिसकी नींव रखी गयी थी आज से लगभग ८६ वर्ष पूर्व जब आज ही के दिन १२ मार्च १९३० को देश के सबसे लोकप्रिय नायक बल्कि महानायक ‘मोहनदास करमचंद गाँधी’ द्वारा जिन्होंने अपने सामजिक कर्मों से अपना कद आदमकद बना लिया था और अपने देश के भाई-बहनों को स्वराज्य का सपना ही नहीं दिखाया बल्कि स्वतंत्रता दिलाने का वादा भी किया था क्योंकि उन्हें यकीन था कि यदि सभी देशवासी एकजुट होकर एक स्वर में बोले और एक साथ कदम से कदम मिलाकर चले तो फिर सामने यदि पर्वत भी खड़ा हो तो उसे राह से हटा सकते हैं फिर ये तो विदेश से आये चंद मुट्ठी भर लोग थे जो देशवासियों के मन में एक दुसरे के प्रति नफरत का बीज बोकर अपनी ‘फूट डालो, राज करो’ की नीति अपनाकर अपने से कई गुना ताकतवर और सक्षम लोगों पर उनकी कमियों का फायदा उठाकर न सिर्फ हुकुमत कर रहे थे बल्कि उनको उनके ही देश में गुलाम बना उनके शासक बन बैठे थे

ऐसे में मूक बन हाथ पर हाथ धरकर बैठे रहना वो भी उस पावन भूमि में जन्मे बाशिंदों का जहाँ पर कि कर्म का सिद्धांत बताने वाले महान कर्मयोगी ‘भगवान् श्रीकृष्ण’ ने अवतार लिया और बताया कि अन्याय सहना ही पाप नहीं हैं बल्कि कायर बनाकर किसी की शरण में कुत्ते की तरह रहना और अपने स्वाभिमान की हत्या कर अपने आपको जीते जी मुर्दा बना लेना भी इंसान होने की निशानी नहीं अतः जिस तरह पांडवों ने संख्या में कम होने के बावज़ूद भी अपने से शक्तिशाली योद्धाओं का समाना कर अधर्म के विरुद्ध अपनी जंग जीती उसी तरह हमें भी करना चाहिए जबकि हमारी तो संख्या भी अधिक लेकिन ये हो नहीं पा रहा कि हमारी शक्ति पांडवों की तरह एकजुट नहीं सम्मिलित नहीं बल्कि बिखरी हुई हैं तो सबसे पहले तो उसको एक बनाना होगा ताकि हम इन विदेशियों को अपनी मातृभूमि से खदेड़ सके अपने ही वतन में खुली हवा में सांस ले खुलकर जी सके अपनी भारतमाता को भी परतन्त्रता की बेड़ियों से आज़ाद कर स्वतंत्र भारत का परचम लहरा सके

चूँकि गांधीजी सत्य-अहिंसा के पुजारी थे तो वे बिना खून बहाये या किसी को भी प्रताड़ित किये बिना ही ‘आज़ादी’ चाहते थे जिसके कारण सब उनके मत से सहमत नहीं होते थे क्योंकि कुछ लोगों को लगता था कि इस तरह केवल बातों से समझाने से तो वो जाने वाले नहीं इसके लिये तो एक ‘महासमर’ ही होना चाहिये तो इस तरह के उग्र विचारों वालों ने अपने अलग दल बना रखे थे लेकिन ‘गांधीजी’ ने तो अपने प्रयोगों से अपने सभी जीवन सिद्धांतों को सिद्ध कर बताया कि यदि हम अपने पथ से डिगे नहीं तो बिना हिंसा के भी अपनी बात मनवा सकते हैं तभी तो उन्होंने ‘सविनय अवज्ञा’ का प्रस्ताव रखा कि अंग्रेजों से बगैर हथियारों का उपयोग किये ही बात की जायेगी और यदि न माने तो ‘सत्याग्रह’ एवं अन्य मार्गों का अनुसरण किया जायेगा लेकिन किसी भी हाल में ‘हिंसा’ को न अपनाया जायेगा क्योंकि उनकी नजर में मानवीयता ही सबसे बड़ा धर्म तो इस नाते वे फिरंगियों को भी हमजात समझते थे लेकिन उनके द्वारा किये जाने वाले अत्याचारों के पक्ष में न थे कि अपने ही घर में हम जंजीरों में बंधे पड़े रहे और बाहर से आये लोग मौज भी उडाये तो हम पर शासन भी करें ये हर स्थिति में नाकाबिले बर्दाश्त हैं

११ मार्च को शाम के समय उन्होंने साबरमती आश्रम में नदी के किनारे रेत पर नित्य की जाने वाली प्रार्थना की फिर अपने सभी एकत्रित संगी-साथियों को प्रेरित कर उनके हृदय में जोश भरने ओजपूर्ण स्वर में ये घोषणा की---

“मेरा जन्म ब्रिटिश साम्राज्य का नाश करने के लिए ही हुआ है। मैं कौवे की मौत मरुँ या कुत्ते की मौत, पर स्वराज्य लिए बिना आश्रम में पैर नहीं रखूँगा।“

और अपने मन की इच्छा भी सबके समक्ष ज़ाहिर की कि ये आंदोलन जो अब शुरू हुआ हैं लगातार ही चलता रहे जिसे सतत गतिमान रखने ‘सत्याग्रह’ की अखंड धारा बहती रहनी चाहिए ऐसे में भले ही क़ानून भंग हो जाये पर देश में चैनों-अमन कायम रहे लोग स्वयं ही अपनी जिम्मेदारी को समझ अपने अनुसार काम करते चले और फिर अगले दिन अपने ७८ स्वयंसेवकों सहित लंबी यात्रा का आगाज़ किया तो २४ दिन तक लगातार हर कठिनाईयों का सामना करते हुये चलते रहे और ३५८ किलोमीटर की वो लंबी असाध्य यात्रा ६ अप्रैल को ‘दांडी’ पहुँच पूरी की तो सबसे पहले समुद्रतट पर जाकर सबस नमक बनाकर ‘नमक कानून’ तोड़ा और अपनी इस गतिविधि के द्वारा ये दर्शा दिया कि अन्याय सब चुपचाप सहा नहीं जायेगा स्वदेश की बागड़ोर को वापस अपने हाथों में लिया जायेगा तब तक समूचा देश भी उनके साथ आ खड़ा हुआ था

वो नमक जो हमारी पहचान, हमें सहज ही उपलब्ध उसे ही अधिक दामों में बेचने की जो साजिश अंग्रेजों ने रची थी उसका यूँ मुंहतोड़ जवाब दिया और नमक कानून टूटते ही ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ ने जोर पकड़ा जो धीरे-धीरे फिर पूरे भारत में फ़ैल गया यहाँ तक अब तो स्त्रियों ने भी पर्दादारी त्याग मैदान में आकर लड़ने का फैसला किया तो बच्चियों ने भी ‘वानर सेना’ बनाकर रामप्यारी गिलहरी की तरह अपना अमूल्य योगदान दिया और यही इस ‘आंदोलन’ की सबसे बड़ी विशेषता थी कि सभी देशवासी अब प्रतिकार करने हाथ से हाथ मिला एक हो चुके थे जिन्होंने साथ मिलकर कहीं पर विदेशी कपड़ों को जलाया तो कहीं शराब की दुकानों पर धरना दिया तो कहीं किसानों ने भी कर चुकाने से मना कर अपना विरोध दर्ज किया और इस जोरदार सफलता को देख नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कहा कि---

"महात्मा जी के त्याग और देशप्रेम को हम सभी जानते ही हैं, पर इस यात्रा के द्वारा हम उन्हें एक योग्य और सफल रणनीतिकार के रूप में पहचानेंगे।"

६१ वर्षीय कृशकाय संत की इतनी लंबी यात्रा अपने आप में ही ऐतिहासिक हैं क्योंकि हम सब उनके सादा जीवन उच्च विचार से परिचित हैं कि किस तरह उन्होंने परहित अपना सर्वस्व त्याग दिया ताकि उनके द्वारा अपनी मातृभूमि, अपने देशवासियों का भला हो सके तो अंतिम साँस तक अपने वतन को अर्पित कर दी आज उसी आंदोलन का स्मरण करते हुए.. उन सभी क्रांतिकारियों को हृदय से नमन करते हैं जिन्होंने देश की खातिर अपनी जान तक गंवा दी... जय हिंद... जय भारत... वंदे मातरम... :) :) :) !!!                     
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१२ मार्च २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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