रविवार, 20 मार्च 2016

सुर-४४५ : "विश्व गोरैया दिवस... बचाये उसको मिलकर सब...!!!"


जब होता
चिड़ियों का शोर
पता लगता
कि हो गई हैं भोर
पर,
अब कम ही गूंजता
घर-आँगन में करें जरा गौर...
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मित्रों...,

आज के दिन यानी कि २० मार्च को ‘विश्व गौरैया दिवस’ घोषित करने के पीछे वजह यही हैं कि ये नन्ही-नन्ही चिरैया जो कभी हर घर आंगन में न सिर्फ़ खेलती और दाना चुगती थी बल्कि अपने परिवार सही हमारे घरों में आ धमकती और सारे घर में उड़-उड़कर अपने लिये अनुकूल कोना तलाश उसमें रहना शुरू कर देती फिर चाहे आपको कितनी भी परेशानी हो या आप उसके हिसाब से कितना भी सामंजस्य बिठाओ बिना पंखे के ही गर्मी के दिन काटो, सारा समय उसके तिनको को बुहारते रहो या उसके परों को बीनते रहो पर, वो तो जब तक अपना समय पूरा नहीं कर लेती उसके छोटे-छोटे बच्चे उड़ना नहीं सीख लेते उस प्लाट को हर्गिज नहीं छोड़ती और सिर्फ एक साल नहीं बल्कि अब तो हमेशा-हमेशा के लिये वो जगह उसका ठिकाना बना जाती और मौसम आते ही वो चहचहाती हुई पूरे माहौल को अपनी मधुर आवाज़ से गुंजायमान कर देती फिर तो हर सुबह उसकी मधुर चहचहाहट से होती और दिन भर उसका आना-जाना चलता ही रहता शुरू में अपना घौंसला बनाने अथक परिश्रम करती और फिर जब चूजे हो जाते तो उनको दाना खिलाने की खातिर उसकी मशक्कत चालू हो जाती और उसके बाद जब उनके छोटे-छोटे से पंख उग आते तो उनको उड़ाने की कवायद शुरू इस तरह हमारी आँखों के सामने ही उसकी गृहस्थी बसती, घर बनता, जिसमें उसके बच्चों की मीठी-मीठी बोली के स्वर उठते और इस तरह उनसे हमारा एक अनजाना-सा रिश्ता बन जाता इसलिये तो हम भी अपने घर में उसके बने आशियाने को वैसा ही पड़ा रहने देते ताकि वो फिर आकर उसको अपनी चहक से भर दे और हम सब मिलकर एक साथ रहे उसी तरह जैसे रहते थे
 
अचानक सबने महसूस किया कि वो ‘चिड़िया’ जो इतनी आम थी कि हर घर, आँगन, कोने, मुंडेर, पेड़ या छत की दीवारों पर उड़ती-फिरती और चहकती दिखाई देती थी अब कहीं भी नज़र आती नहीं क्योंकि इस जहरीले वातावरण में वो खुद को ढाल नहीं पाई, वायुमंडल में सर्वत्र बिखरी अदृश्य जानलेवा किरणों से वो अपनी रक्षा नहीं कर पाई, लोगों के सख्ती से बंद खिड़की-दरवाजों में वो अपना आशियाना तलाश नहीं पाई, खेतों के खत्म होने से जीने के लिये चुग्गा ढूंढ पाई, जहाँ खेत थे तो उनमें छिड़की खतरनाक कीटनाशक से वो अपना आप बचा नहीं पाई  इसलिये जिस चिड़िया ने मानवों को अपना साथी, अपना हमराज़ बनाया था जब वो उसके जीने के लिये सहज-सरल प्रकृति को सहेज नहीं पाया तो आख़िर वो नन्ही-सी जान कब तक इन मुश्किल हालातों का सामना करता अंततः विलुप्ति की कगार तक पहुँच गई तब सारे विश्व का ध्यान उसकी तरफ गया और उसने उसके सरंक्षण और बचाव के लिये इस दिन को मुकर्रर किया जिससे कि लोग जागरूक बने और अपनी प्यारी ‘गोरैया’ को खत्म होने से बचा सके क्योंकि छोटे शहरों, गाँव या कस्बों में भले ही ये अब भी दिखाई देती हो लेकिन महानगरों में तो लोग इसे केवल चित्रों में या टी.वी. पर ही देख पाते हैं ये हम मनुष्यों की सुविधाभोगी जिंदगी का खामियाज़ा हैं जिसे सिर्फ परिंदे ही नहीं बल्कि सभी जानवर भोग रहे हैं क्योंकि न तो पेड़-पोधे बच रहे हैं, न ही नदी तालाब या जंगल जहाँ पर इनका बसेरा होता हैं अतः हमें सिर्फ ‘गोरैया’ नहीं बल्कि सभी की सुरक्षा के प्रयास करना चाहिये क्योंकि इनके सहवास से ही हम अपने आपको भी जीवित रख सकते हैं और साथ-साथ एक जैविक-संतुलन बनाकर उसी तरह रह सकते हैं जैसे शुरुआत में कभी रहते होंगे जब न तो इतने यंत्र थे, न ही कंक्रीट के जंगल और न ही हम लोग ही इतने स्वार्थी कि सिर्फ खुद के बारे में सोचे सच, आज के समय में हम इंसान इतने मतलबी हो चुके हैं कि अपने सिवाय कुछ और दिखाई ही नहीं देता और जब तक कि किसी शय का हमसे कोई वास्ता न हो या उससे हमें कोई लाभ न पहुंचे तो उसके लिये कुछ करना तो दूर हम तो सोच भी नहीं सकते हैं न जाने कलयुग का ये कैसा असर हैं

यदि हम आकंड़ों की बात करें तो पक्षी वैज्ञानिक ‘हेमंत सिंह’ का कहना हैं कि अब हमारे देश में  हमारी इस भोली-भाली चिड़िया ‘गौरैया’ की संख्या में लगभग ६० से लेकर ८० प्रतिशत तक की गिरावट आ चुकी है, जो न सिर्फ चिंतनीय हैं बल्कि हमारे सामने उसके अस्तित्व की गैर-मौजूदगी पर प्रश्नचिन्ह भी खड़े करते हैं । यदि अब भी हम सबने एक साथ मिलाकर इसके बचाव के लिये पहल नहीं की तो संभवतः हो सकता हैं कि एक दिन ये ‘गौरैया’ बिलकुल ही लापता होकर ‘डायनासौर’ और अन्य लुप्त हो चुके प्राणियों की तरह इतिहास का हिस्सा बन जाये और हमारी ही आने वाली पीढ़ियों को तो ये देखने तक को न मिले... इसलिये आओ हम सब मिलकर अपने घरों में उसके रहने के लिये घोंसले बनाये... दाना-पानी का इंतजाम करें और उसे बचाने के हरसंभव प्रयास करें ताकि वो फिर से अपने कलरव से सबको सुबह-सुबह जगाये... ची... ची... कर हमें बुलाये... :) :) :) !!!      
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२० मार्च २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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