मंगलवार, 22 मार्च 2016

सुर-४४७ : "विश्व जल दिवस... बचाओ जल करो संकल्प...!!!"


दोस्तों...

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कल-कल
बहता हुआ जल
न मिलेगा
किसी आने वाले कल
तो आज से ही
करें इसे बचाने उपाय
बिना ये सोचे कि
हमें क्या ???
हम तो न रहेंगे
आने वाली पीढ़ी खुद ही
अपने को बचाने
कुछ न कुछ तो करेगी ही
हम तो जो उपलब्ध
उसका ही उपभोग कर ले
अपने आज को जी ले
जैसा कि लगभग सब कर रहे
पर, कहीं इसके अभाव
तो कहीं इसके घटते स्तर से
अनगिनत मर रहे
ऐसे में ‘विश्व जल दिवस’
जल सरंक्षण के नारे
और किये जा रहे काज 
महज़ खानापूर्ति साबित हो रहे
और हम आने वाले खतरे से
बेखबर मस्ती में जी रहे
लगता जब पानी सर के उपर से
निकल जायेगा तब जाकर ही
प्यास से तड़फते हमको होश आयेगा
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चाहे वो ‘विश्व गौरैया दिवस’ या ‘विश्व वानिकी दिवस’ या फिर ‘विश्व जल दिवस’ जो इसी महीने में एक के बाद एक आते और बकायदा बड़े भव्य तरीके से मनाये भी जाते लेकिन महज़ औपचारिकतावश फ़िज़ूल भाषणबाजी और सरकारी तौर पर तो इसे महज़ कागज़ी कार्यवाही भी कह सकते कर उसका निर्वहन प्रतिवर्ष बड़े कायदे से नियमानुसार किया जाता जिनको आधिकारिक तौर पर मनाते हुये अब तो लगभग दो दशक से अधिक हो गये ऐसे यदि वास्तव में उनका उसी तरह से जमीनी स्तर पर भी आयोजन किया जाता और जो हर साल वायदे या समाधान सुझाये जाते उन पर अमल भी किया जाता तो काफी हद तक इन समस्यायों पर नियंत्रण पा लिया जाता लेकिन हम तो महसूस कर रहे कि ये समस्यायें तो सुरसा के मुंह की तरह विकराल रूप धारण करती जा रही और हम ‘हनुमानजी’ की तरह अपने दिमाग का इस्तेमाल न करते हुये बस, उसका एक दिवसीय उत्सव मना अपने कर्तव्य से मुक्त हो जाते जो धीरे-धीरे हमारे लिये ही मौत का सबब बनता जा रहा ऐसे में निहायत जरूरी कि हम केवल बातें नहीं करे बल्कि कोई ठोस कदम भी उठाये और किसी समाजिक संगठन या स्वयंसेवियों के भरोसे न रहकर खुद अपनी क्षमता भर इस वैश्विक पावन यज्ञ में भले ही वो नन्ही ‘गिलहरी’ की भांति ही हो लेकिन अपना योगदान अवश्य दे फिर देखें किस तरह से इन दिनों को हम मायने देते हैं

यदि हम इन दिनों के भव्य स्तरीय आयोजनों पर नजर डाले तो पायेंगे कि जितना धन और श्रम केवल एक दिवस में कोरी बातों पर खर्च किया जाता वही यदि इसके बचाव हेतु किया जाता तो निश्चित तौर पर आज हम काफी हद तक इन आपदाओं को कम कर चुके होते क्योंकि ये किसी एक व्यक्ति या देश की नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व की समस्या बन चुकी तभी तो अब इनका वैश्विक स्तर पर आयोजन किया जाता पर, जिस तरह के आंकड़े एवं उपाय प्रस्तुत किये जाते उस तरह से उनको कार्यान्वित नहीं किया जाता अन्यथा ये घटने की बजाय बढती ही नहीं जाती तो अब वक़्त आ गया कि हम सब भी केवल बात नहीं बल्कि कुछ सार्थक करे क्योंकि हम सब ही इनके सरंक्षण हेतु कुछ न कुछ तरकीबें तो जानते ही जैसे कि व्यर्थ पानी न बहाये या कम से कम इस्तेमाल करे या बारिश के पानी को सरंक्षित करे या आवश्यकता से अधिक उपभोग न करे या प्राकृतिक संसाधनो को नष्ट न करे पर, उनको आजमाते नहीं तो बस, उसी जमीनी कार्यवाही की जरूरत शेष रह गयी जिस पर यदि अमल किया गया तो एक दिन इन दिनों को मनाने की कोई आवश्यकता ही शेष न रह जायेगी बस, उसी का इंतज़ार हैं तो चले हम सब अपने-अपने हिस्से की आहुति डाले इस सामूहिक जल सरंक्षण हवन में... और बोले इदं न मम... :) :) :) !!!                  
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२२ मार्च २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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